समाजशास्त्र का उद्गम एवं विकास पश्चिमी यूरोप की सामाजिक परिस्थितियों की देन है। औद्योगिक क्रांति, फ्रांस की क्रांति तथा ज्ञानोदय की इसके विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इनके परिणामस्वरूप न केवल पश्चिमी समाजों में एक नवीन आर्थिक क्रियाकलाप की पद्धति (जिसे पूँजीवाद कहा जाता है) विकसित हुई अपितु इनसे इन देशों की सामाजिक संरचना पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। गाँव से शहरों की ओर प्रवर्जन, सामाजिक गतिशीलता, शिक्षा एवं रोजगार में वृद्धि, लौकिक दृष्टिकोण के विकास के साथ-साथ अनेक सामाजिक समस्याएँ भी विकसित होने लगीं। औद्योगिक मजदूरों एवं खेतिहर मजदूरों की संख्या में वृद्धि हुई तथा उत्पादन कार्यों में इनका शोषण होने लगा। पूँजीवाद की सेवा हेतु सत्रहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में बड़ी संख्या में अफ्रीकियों को दास बनाया गया। यद्यपि उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में दास प्रथा कम होने लगी, तथापि अनेक उपनिवेशवादी देशों में यह बँधुआ मजदूरों के रूप में आज भी प्रचलित है।
समाजशास्त्र के उद्गम और विकास के अध्ययन का महत्त्व
समाजशास्त्र के उद्गम और विकास के अध्ययन के महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत स्पष्ट किया जा सकता है-
1. पारिभाषिक महत्त्व-समाजशास्त्र के अध्ययन से समाजशास्त्र के पारिभाषिक शब्दों, अध्ययन विषयों और धारणाओं का ठीक-ठीक परिचय प्राप्त हो जाता है। इन शब्दों का वैज्ञानिक अध्ययन समाज के स्वरूप को समझने में सहायक होता है। समाजशास्त्र में अनेक पारिभाषिक शब्द होते हैं, जिनको हम नित्यप्रति बोलचाल की भाषा में प्रयोग करते हैं। लेकिन समाजशास्त्र के अंतर्गत उन शब्दों का विशेष स्थान होता है, जिनको समझ लेने के पश्चात् अनेक प्रमों का निवारण हो जाता है। रीति-रिवाज, जाति, संस्था, समाज, संस्कृति, प्रजाति तथा समूह ऐसे ही अनेक शब्द हैं, परंतु समाजशास्त्र में इनका सामान्य अर्थ न होकर विशेष अर्थ होता है। समाजशास्त्र के अध्ययन से इन शब्दों का सही-सही ज्ञान प्राप्त होता है तथा इनमें हो रहे परिवर्तनों का भी ज्ञान हो जाता है।
2. समाज का वैज्ञानिक ज्ञान–समाजशास्त्र के अध्ययन द्वारा समाज के विषय में वैज्ञानिक ज्ञान
प्राप्त होता है। समाजशास्त्र के अंतर्गत समाज संबंधी सभी बातों का अध्ययन किया जाता है। समाज क्या है? समाज का स्वरूप क्या है? समाज का विकास किस प्रकार हुआ है? सामाजिक परिवर्तन के क्या कारण हैं? आदि प्रश्नों का उत्तर समाजशास्त्र वैज्ञानिक ढंग से देता है। समाज के विषय में वैज्ञानिक ज्ञान होना समाज के लिए तथा इसे एक निश्चित दिशा प्रदान करने के लिए अनिवार्य है।
3. सामाजिक जीवन की समस्याओं का ज्ञान–समाजशास्त्र हमें सामाजिक जीवन की सामान्य समस्याओं की जानकारी प्रदान करता है। समाज की विभिन्न समस्याओं; जैसे-अपराध, किशोर अपराध, श्वेतवसन अपराध, जनसंख्या की समस्या, निर्धनता और बेकारी आदि का ज्ञान तथा इनके प्रचलन के कारणों का पता हमें समाजशास्त्र के अध्ययन द्वारा ही होता है। समाजशास्त्र के उद्गम और विकास ने सामाजिक समस्याओं को समझने तथा उनका समाधान खोजने में राजनीतिज्ञों, समाज-सुधारकों तथा नीति-निर्धारकों को सहायता प्रदान की है।
4. सांस्कृतिक लाभ-सांस्कृतिक विकास, सामाजिक विकास में विशेष सहायक होता है। सांस्कृतिक विकास के बिना समाज का विकास असम्भव है; अतः सामाजिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि इसके अर्थों, स्वरूपों तथा क्रियाओं के नियमों को भली प्रकार समझा जाए। समाजशास्त्र संस्कृति के पूर्ण स्वरूप पर प्रकाश डालने का कार्य करता है। उसके अध्ययन से संस्कृति के महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को सरलता से समझा जा सकता है। समाजशास्त्र के अध्ययन से ही हम समझते हैं कि संस्कृति क्या है, विभिन्न संस्कृतियाँ किस प्रकार समानता रखती हैं और उनमें क्या-क्या भिन्नताएँ हैं।
5. पारिवारिक जीवन को सफल बनाने में सहायक–व्यक्ति और परिवार का अटूट संबंध है। व्यक्ति परिवार में जन्म लेता है और उसका लालन-पालन भी परिवार में ही होता है। इस प्रकार वह परिवार के अन्य सदस्यों से अनेक प्रकार से संबंधित होता है। प्रत्येक व्यक्ति का परिवार में अपना-अपना स्थान होता है और साथ-ही-साथ उसके अधिकार और कर्तव्य होते हैं। इन अधिकारों और कर्तव्यों के उचित संतुलन पर ही परिवार का सुख-दु:ख निर्भर करता है। समाजशास्त्र के अध्ययन द्वारा विभिन्न परिवारिक समस्याओं का ज्ञान होता है तथा संतुलन स्थापित करने में सहायता मिलती है।
6. सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन में सहायक-समाजशास्त्र हमें समाज के स्वरूप की । विस्तृत जानकारी कराता है। इसके अध्ययन से हम सामाजिक वातावरण तथा विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों को सरलता से समझ जाते हैं। समाजशास्त्र का अध्ययन व्यक्ति के दृष्टिकोण को अधिक व्यापक बना देता है। वर्तमान युग औद्योगिक युग है। औद्योगीकरण और यंत्रीकरण के कारण सामाजिक जीवन अत्यधिक जटिल हो गया है और प्रतिदिन नवीन परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहे हैं। समाजशास्त्र द्वारा इन जटिलताओं और परिवर्तनों का ज्ञान होता है, जिससे सामाजिक परिस्थितियों से अनुकूलन करने में बड़ी सहायता मिलती है।
7. अंतर्राष्ट्रीय जीवन को सुखद बनाने में सहायक-समाजशास्त्र के अध्ययन से केवल अपने समाज का ही ज्ञान नहीं होता वरन् विश्व समाज को भी ज्ञान प्राप्त होता है। समाजशास्त्र विश्व के विभिन्न भागों में निवास करने वाले व्यक्तियों की जीवन-शैली और रहन-सहन के ढंगों को भी ज्ञान प्रदान करता है। आज यातायात के साधनों तथा संचार साधनों की अपूर्व प्रगति ने हमारे जीवन को अंतर्राष्ट्रीय बना दिया है। ऐसी दशा में समाजशास्त्र का अध्ययन अत्यंत रोचक एवं लाभकारी सिद्ध होता है। समाजशास्त्र के अध्ययन से जब हम दूसरे समाजों के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करते हैं तो विश्व के अन्य निवासियों के रीति-रिवाजों, परम्पराओं और प्रवृत्तियों में होने वाले संघर्ष के कारण हमें ज्ञात हो जाते हैं। इन्हें समझकर संघर्ष के स्थान पर सहानुभूति, सहिष्णुता और उदारता की भावनाओं का प्रसार हो सकता है। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय जीवन को सुखद बनाने तथा अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष को समझने में समाजशास्त्र विशेष रूप से सहायक होता है।