‘समाजशास्त्र’ शब्द का शाब्दिक अर्थ ही समाज का अध्ययन या समाज का विज्ञान है। विज्ञान अनुसंधान की पद्धति है। यह किसी भी विषय के बारे में क्रमबद्ध ज्ञान है। इसीलिए ओडम, वार्ड, जिंसबर्ग की परिभाषाएँ समाज पर ही केंद्रित हैं। उदाहरणार्थ–गिडिंग्स के शब्दों में, “समाजशास्त्र समग्र रूप से समाज का क्रमबद्ध वर्णन तथा व्याख्या है। इसी प्रकार, जिंसबर्ग के अनुसार, समाजशास्त्र को समाज के अध्ययन के रूप में पभिाषित किया जा सकता है।” यह पूर्णतः सही भी है, क्योंकि समाजशास्त्र आज निश्चित रूप से एक विज्ञान है। इस संदर्भ में निम्नांकित बातें महत्त्वपूर्ण हैं-
⦁ समाज एवं सामाजिक जीवन के अध्ययन में भी अनुभव, परीक्षण, प्रयोग व वर्गीकरण जैसे वैज्ञानिक चरणों का प्रयोग किया जाता है।
⦁ व्यक्ति के सामूहिक जीवन का अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किया जाता है।
⦁ समाज के विभिन्न पहलुओं को वैज्ञानिक पद्धति द्वारा समझा जा सकता है।
⦁ समाज की संरचना एवं प्रकार्यों का अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किया जा सकता है।
⦁ समाजशास्त्रीय पद्धति स्वयं वैज्ञानिक है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक पद्धति के सभी चरणों को अपनाया जाता है।
समाज की सबसे बड़ी इकाई मानव और उसके अन्य मानवों के साथ संबंधों का अध्ययन समाजशास्त्र में ही होता हैं। राज्य, वर्ग, जाति, समितियाँ, समुदाय, संस्थाएँ इत्यादि समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं तथा इन्हीं से मिलकर समाज की संरचना का निर्माण होता है। समाजशास्त्र इन सबकी उत्पत्ति एवं विकास का अध्ययन करता है। इसमें यह ज्ञात करने का भी प्रयास किया जाता है कि सामाजिक जीवन तथा समाज कौन-से प्राकृतिक एवं भौगोलिक तथा सांस्कृति तत्त्वों से प्रभावित होता है। इसी दृष्टिकोणों से यह कहा जाता है कि समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गिडिंग्स तथा वार्ड की परिभाषाएँ, जिनमें समाजशास्त्र को समाज के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया है, पूर्णः सही है।