भारत में समाजशास्त्र का एक संस्थागत विषय के रूप में विकास 1919 ई० में हुआ जबकि प्रो० शैट्रिक गेडिस नामक अंग्रेज समाजशास्त्री की अध्यक्षता मे बंबई विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर स्तर पर समाजशास्त्र का अध्यापन कार्य प्रारंभ हुआ। भारत में समाजशास्त्र का विकास उपनिवेशवाद, आधुनिक पूँजीवाद एवं औद्योगीकरण का परिणाम माना जाता है। अंग्रेज समाजशास्त्रियों ने 19वीं शताब्दी के भारत में यूरोपीय समाजों का अतीत देखा। यद्यपि भारत में औद्योगीकरण का प्रभाव उतना नहीं था जितना कि पश्चिमी समाजों पर, तथापि पश्चिमी समाजशास्त्रियों ने पूँजीवाद एवं आधुनिक समाजों पर लिखे अपने लेखों को भारत में हो रहे सामाजिक परिवर्तनों को समझने के लिए प्रांसगिक माना। उनके एवं भारतीय समाजशास्त्रियों द्वारा आदिम समूहों, ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में अध्ययनों से भारत में समाजशास्त्र की नींव मजबूत होती गई।