समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र ऐसे सामाजिक विज्ञान हैं जिनमें घनिष्ठ संबंध पाया जाता है। प्रमुख राजनीतिशास्त्री कैटलिन एवं अनेक अन्य विद्वानों ने इस बात पर बल दिया है कि “समाजशास्त्र व राजनीतिशास्त्र को अलग-अलग करना संभव नहीं है और वास्तव में ये दोनों एक ही चित्र के दो पहलू हैं।” समाजशास्त्र के लिए राजनीतिशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र के लिए समाजशास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है। इसी संबंध में गिडिंग्स का कथन है, “समाजशास्त्र के प्रारंभिक सिद्धांतों से अनभिज्ञ लोगों को राज्य के सिद्धांतों को पढ़ाना वैसे ही व्यर्थ है, जैसे न्यूटन द्वारा बताए गए गति-नियमों को न जानने वाले व्यक्ति को खगोलशास्त्र अथवा ऊष्मा विज्ञान पढ़ाना।” कोई भी राज्य समाज से पहले जन्म नहीं ले सकता, जबकि यह तो संभव है कि समाज हो और राज्य न हो। समाज ही राज्य को जन्म देता है और राज्य समाज के ढाँचे में कानूनों द्वारा परिवर्तन करता रहता है। समाजशास्त्र ने जिस सामाजिक विज्ञान को सर्वाधिक प्रभावित किया है वह राजनीतिशास्त्र ही है। इसी का एक परिणाम यह निकला है। कि आज राजनीतिशास्त्र में राजनीतिक व्यवस्था की बजाय राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर अधिक बल दिया जा रहा है जिसके बारे में सामान्यीकरण भी किया जा सकता है।