सामाजिक नियंत्रण समाजशास्त्र में सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली संकल्पनाओं में से एक है। इसका कारण यह है कि कोई भी समाज बिना नियंत्रण के.अपना अस्तित्व अधिक देर तक नहीं बनाए रख सकता है। मनुष्य को मनचाहा व्यवहार करने से रोकने तथा समाज को व्यवस्थित रखने में सामाजिक नियंत्रण का विशेष योगदान होता है।
सामाजिक नियंत्रण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सामान्य शब्दों में प्रत्येक व्यक्ति को समाज द्वारा मान्य आदर्शों व प्रतिमानों के अनुसार अपने को ढालना पड़ता है तथा उसी के अनुसार वह व्यवहार और आचरण करने के लिए बाध्य होता है। यह बाध्यता ही सामाजिक नियंत्रण कहलाती है। यह वह विधि है, जिसके द्वारा एक समाज अपने सदस्यों एवं समूहों के व्यवहार का नियमन करता है तथा उदंड या-उपद्रवी सदस्यों को पुनः राह पुर् लाने का प्रयास करता। है। सामाजिक नियंत्रण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है–
गिलिन एवं गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार-“सामाजिक नियंत्रण सुझाव, अनुनय, प्रतिरोध और प्रत्येक प्रकार के बल प्रयोग; जिसमें शारीरिक बल भी सम्मिलित है; जैसे उपायों की राह व्यवस्था है, जिसके द्वारा समाज अपने अतंर्गत उपसमूहों वे सदस्यों ने स्वीकृत आदर्शों के माने हुए प्रतिमानों के अनुसार ढाल लेता है।”
मैकाइवर एवं पेज (Maclver and Page) के अनुसार-“सामाजिक नियंत्रण से आशय उस ढंग से हैं जिसमें कि समस्त सामाजिक व्यवस्था समन्वित रहती है और अपने को बनाए रखती है अथवा वह जिसमें संपूर्ण व्यवस्था एक परिवर्तनशील संतुलन के रूप में क्रियाशील रहती है।” प्रकार्यवादी दृष्टिकोण के अनुसार सामाजिक नियंत्रण का अर्थ व्यक्तियों और समूहों के व्यवहार को नियमित करने के लिए बल प्रयोग करना तथा समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए मूल्यों और प्रतिमानों को लागू करना है। संघर्षवादी दृष्टिकोण के समर्थक सामाजिक नियंत्रण को प्रभावी वर्ग के बाकी समाज पर नियंत्रण के साधन के रूप में देखते हैं।
शारीरिक बल प्रयोग को सामाजिक नियंत्रण का अन्तिम एवं प्राचीनतम साधन माना जाता है। इसलिए कोई भी राज्य पुलिस बल या इसके समान किसी अन्य सशस्त्र बल के बिना नहीं रह सकता। दैनिक जीवन में वास्तविक बल प्रयोग कम किया जाता है तथा इसक’ भय ही काफी होता है। उदाहरणार्थ-समवयस्क समूहों में एक बच्चा किसी अन्य पर यह कहकर ही नियंत्रण रखने में सफल हो जाता है कि जो तुम कर रहे हो उसे मैं तुम्हारे बड़े भाई या माता-पिता को बता दूंगा। बड़े समूहों में कई बार नियंत्रण हेतु वास्तविक बल प्रयोग भी करना पड़ता है।
समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक नियंत्रण के साधन
सामाजिक नियंत्रण का तात्पर्य ऐसी सामाजिक प्रक्रियाओं, तकनीकों और रणनीतियों से है जिनके द्वारा व्यक्ति या समूह के व्यवहार को नियमित किया जाता है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक नियंत्रण के भिन्न-भिन्न साधन होते हैं। यह साधन अनौपचारिक या औपचारिक हो सकते हैं। जब नियंत्रण के संहिताबद्ध, व्यवस्थित एवं अन्य औपचारिक साधन प्रयोग किए जाते हैं तो यह औपचारिक नियंत्रण कहलाता है। शिक्षा, राज्य तथा कानून सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन माने जाते हैं। आधुनिक समाजों में इन्हीं औपचारिक साधनों पर जोर दिया जाता है।
अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण व्यक्तिगत, अशासकीय एवं अंसहिताबद्ध होता है। यह अलिखित होता है तथा उसका विकास समाज में धीरे-धीरे तथा अपने आप हो जाता है। इसमें मुस्कान, चेहरे बनाना, शारीरिक भाषा, आलोचना, उपहास, हँसी आदि सम्मिलित होते हैं। परिवार, धर्म, जनरीतियाँ, रूढ़ियाँ, प्रथाएँ, नैतिक आदर्श, पुरस्कार इत्यादि अनौपचारिक नियंत्रण के प्रमुख साधन हैं। प्राथमिक समूह तथा सरल समाजों में सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं।