विरोधों को दूर करने हेतु दो तरीके हो सकते हैं—एक तो विरोधियों को चुप कराने हेतु दंड देने को तथा दूसरा उनके विचार सुनकर एक स्वच्छ चर्चा कर सहमति पर पहुँचने का। पहला तरीका किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है क्योंकि इसमें जिसके पास शक्ति है वह अन्यों को वास्तविक दंड देकर या दंड का भय दिखाकर उनसे अपनी बात मनवा सकता है अथवी’उनसे अनुपालन सुनिश्चित कर सकता है। यदि दंड देने की बजाए विरोधियों की राय भी सुन ली जाए अथवा उनसे विवादित मुद्दे पर खुली चर्चा की जाए तो हो सकता है बीच का कोई ऐसी सर्वसम्मत रास्ता निकल आए कि जिसमें बल प्रयोग करने की आवश्यकता ही न रहे। इसलिए यह दूसरा रास्ता अधिक अच्छा माना जाता है। किसी भी समाज में विभिन्न व्यक्तियों के विचारों में मतभेद होना स्वाभाविक है। इस मतभेद पर चर्चा द्वारा मतैक्य पर पहुँचना ही एक अच्छे समाज के निर्माण में सहायक होता है।