किसी समिति के ज्ञापन में उस समिति के लक्ष्य, उद्देश्य, सदस्यता के नियम, सदस्यों को नियंत्रित करने वाले नियम स्पष्ट रूप से परिभाषित होते हैं। उदाहणार्थ-यदि आपके मुहल्ले में कोई कल्याण समिति, स्पोट्र्स क्लब या महिला संघ है तो निश्चित रूप से इनके संचालन हेतु ज्ञापन होगा जिसमें सभी प्रकार के नियमों का समावेश होगा। ऐसी समिति के सदस्य औपचारिक रूप से समिति की सभाओं एवं सम्मेलनों में ही मिलते हैं तथा उनमें संबंध भी अधिकतर औपचारिक ही होते हैं। इसके विपरीत, यदि हम किसी बड़ी पारिवारिक सभा को देखें तो उसमें सम्मिलित सदस्य एक-दूसरे से। परिचित होते हैं तथा उनमें संबंध परिवार और मित्रों की भाँति होते हैं। सदस्य एक-दूसरे से खुलकर बातचीत करते हैं तथा वे एक-दूसरे के सुख-दुःख में भी भागदीर हो सकते हैं। यदि कल्याण समिति, स्पोट्र्स क्लब या महिला संघ के सदस्य औपचारिक अंतःक्रिया के बावजूद समय बीतने के साथ-साथ अपने संबंध घनिष्ठ एवं अनौपचारिक बना लेते हैं तो इनकी प्रकृति भी बड़ी पारिवारिक सभा की भाँति हो सकती है। इन दोनों उदाहरणों से हमें यह पता चलता है कि समाजशास्त्र में संकल्पनाएँ अडिग और स्थिर नहीं होती हैं। वे केवल समाज और उसके परिवर्तनों को समझने की चाबियाँ अथवा साधन हैं।