अंत:समूह वह है जिसे हम अपना मानते हैं, जबकि बाह्य समूह वह होता है जिसे हम अपना न मानकर पराया मानते हैं। उदाहरणार्थ–एक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अंत:समूह का निर्माण करते हैं। तथा दूसरे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से अपने को भिन्न मानते हैं अथवा उन्हें बाह्य समूह के रूप में देखते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि अंत:समूह एवं बाह्य समूह में अंत:क्रियाएँ इतनी अधिक बढ़ जाती हैं कि उनमें अपने-पराए की सीमाएँ टूटने लगती हैं तथा संबंधों में घनिष्ठता बढ़ने लगती है। इससे बाह्य समूह के कुछ सदस्य अंत:समूह के सदस्य बन जाते हैं।