दंड वह साधन है जिसके द्वारा अवांछनीय कार्य के साथ दु:खद भावना को संबंधित करके उसको दूर करने का प्रयास किया जाता है। सर्भी समाजों में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में दंड-व्यवस्था का प्रचलन है। सामाजिक नियंत्रण में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सभ्यता के आदिकाल में प्रतिशोध की अग्नि को शांत करने के लिए ही दंड दिया जाता था या दंड देने का उद्देश्य प्रतिशोध की भावना को समाप्त करना ही था। व्यक्ति सोचता है कि अगर वह गलत कार्य करेगा तो समाज प्रतिशोध की दृष्टि से उसे दंड देगा। आज अपराधी और बाल अपराधों को दंड देने के पीछे उस अपराधी को सुधारने का उद्देश्य होता है। दंड का भय नागरिकों को गलत कार्य करने से रोकता है। अनेक समाज-मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि दंड का उद्देश्य मनोवैज्ञानिक ढंग से लोगों के मस्तिष्क पर प्रभाव डालना तथा उन्हें समाज की मान्यताओं के अनुकूल व्यवहार करने हेतु प्रेरित करना है। प्रत्येक समाज कानून के अनुसार दंड का भय देकर नागरिकों में अनुशासन स्थापित करने का प्रयास करता है। सामाजिक नियंत्रण की दृष्टि से नागरिकों में अनुशासन होना जरूरी है।