संसार में कोई भी समाज ऐसा नहीं है जिसमें सभी व्यक्ति एकसमान हों अर्थात् ऊँच-नीच की भावना प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में पायी जाती है। धन-दौलत, प्रतिष्ठा तथा सत्ता का वितरण प्रत्येक समाज में असमान रूप में पाया जाता है तथा इसी असमान वितरण के लिए समाजशास्त्र में सामाजिक स्तरीकरण’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। यदि विभिन्न श्रेणियों में ऊँच-नीच का आभास होता है तो वह स्तरीकरण है।
किंग्स्ले डेविस के अनुसार, “जब हम जातियों, वर्गों और सामाजिक संस्तरण के विषय में सोचते हैं। तब हमारे मन में वे समूह होते हैं जो कि सामाजिक व्यवस्था में भिन्न-भिन्न स्थान रखते हैं और भिन्न-भिन्न मात्रा में आदर का उपयोग करते हैं।’ इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सामाजिक स्तरीकरण समाज का विभिन्न श्रेणियों में विभाजन है। जिनमें ऊँच-नीच की भावनाएँ पायी जाती हैं। सामाजिक स्तरीकरण विभेदीकरण की एक विधि है। समाज के विभिन्न स्तरों या श्रेणियों में पायी जाने वाली असमानता व ऊँच-नीच ही सामाजिक स्तरीकरण कही जाती है।