सामाजिक स्तरीकरण सार्वभौमिक है अर्थात् ऊँच-नीच की यह व्यवस्था प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में पायी जाती है। इसका अर्थ यह है कि स्तरीकरण समाज की किसी-न-किसी आवश्यकता की पूर्ति करता है। समाज में सभी पद एक समान नहीं होते। कुछ पद समाज के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं और कुछ कम। महत्त्वपूर्ण पदों पर पहुँचने के लिए व्यक्तियों को कठिन परिश्रम करना पड़ता है और इसलिए समाज इन पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को अधिक सम्मान की दृष्टि से देखता है। डेविस एवं मूर का विचार है, “सामाजिक असमानता अचेतन रूप से विकसित एक ढंग है जिसके द्वारा समाज अपने सदस्यों को विश्वास दिलाता है कि आधुनिक महत्त्वपूर्ण पद पर अधिक योग्य व्यक्ति ही काम कर रहे हैं।”
यदि समाज में सामाजिक स्तरीकरण न हो तो व्यक्ति में आगे बढ़ने एवं विशेष पद पाने की इच्छा तथा अपने पद के अनुकूल भूमिका निभाने की इच्छा समाप्त हो जाएगी। जब उसे पता होगा कि योग्य और अयोग्य व्यक्ति में समाज कोई भेद नहीं कर रही है तो वह कठिन परिश्रम करना छोड़ देगा और इस प्रकार समाज का विकास रुक जाएगा। अतः समाज की निरंतरती एवं स्थायित्व के लिए व्यक्तियों को उच्च पदो पर आसीन होने के लिए प्रेरणा देना अनिवार्य है और इसके लिए प्रदों में संस्तरण एवं सामाजिक ऊँच-नीच होना अनिवार्य है।