सामाजिक नियंत्रण का अर्थ समाज द्वारा विविध प्रकार के साधनों द्वारा व्यक्तियों के व्यवहार में अनुरूपता लाना है। वास्तव में, सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रत्येक समाज यह चाहता है कि उसके सदस्य ठीक प्रकार से आचरण एवं कार्य करें। अत: व्यक्तियों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए प्रत्येक समाज के कुछ सामान्य नियम होते हैं। प्रथाएँ, परंपराएँ, रूढ़ियाँ, प्रतिमान, रीति-रिवाज, धर्म इत्यादि कुछ ऐसे प्रमुख साधन हैं जो व्यक्तियों के आचरण पर नियंत्रण रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि कोई व्यक्ति सामाजिक मान्यताओं का उल्लंघन करता है तो समाज उसकी निंदा करता है तथा राज्य के संविधान के अनुसार उसे दंड देता है। रॉस के अनुसार, समूह नियंत्रण का अभिप्राय उन सब साधनों से है जिनके द्वारा समाज सदस्यों को अपने आदर्शों के अनुरूप बनाता है।”