द्वितीयक समूह का अर्थ एवं परिभाषाएँ,
द्वितीयक समूह प्राथमिक समूह से पूर्णतया विपरीत होते हैं। प्राथमिक समूह के सदस्य संख्या में थोड़े होते हैं और एक-दूसरे से शारीरिक निकटता रखते हैं तथा नाम से भी एक-दूसरे से परिचित होते हैं, परंतु द्वितीयक समूह के सदस्यों की संख्या अधिक होती है और उनके संबंध प्रत्यक्ष न होकर परोक्ष या अप्रत्यक्ष होते हैं। इसके निर्माण के लिए आमने-सामने के संबंधों और घनिष्ठता की कोई आवश्यकता नहीं होती। इसके संबंध न तो व्यक्तिगत, न स्वयं साध्य और न संपूर्ण होते हैं। द्वितीयक समूह की सबसे महत्त्वपूर्ण बात यही होती है कि इसके सदस्यों के संबंधों का घनिष्ठता का अभाव होता है और उनमें ‘हम की भावना नहीं होती। अन्य शब्दों में, इन समूहों के सदस्यों के मध्य जो संबंध स्थापित होते हैं, वे अवैयक्तिक (Impersonal), आकस्मिक (Casual) तथा औपचारिक (Formal) होते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ, श्रमिक संघ, माध्यमिक शिक्षक संघ, छात्र संघ तथा मेडिकल एसोसिएशन द्वितीयक समूह के उदाहरण हैं।
द्वितीयक समूह की मुख्य परिभाषाएँ निम्नंवर्णित हैं-
ऑगर्बन एवं निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार-“वे समूह, जो घनिष्ठता की कमी का अनुभव प्रदान करते हैं, द्वितीयक समूह कहलाते हैं।”
कूले (Cooley) के अनुसार-“ये ऐसे समूह हैं जो कि घनिष्ठतारहित होते हैं और इनमें प्राय: अधिकतर अन्य प्राथमिक तथा अर्द्ध-प्राथमिक विशेषताओं का अभाव रहता है।’
लैडिंस (Landis) के अनुसार-“द्वितीयक समूह वे समूह होते हैं जो अपने संबंधों में आकस्मिक तथा अवैयक्तिक होते है; क्योंकि द्वितीयक समूह व्यक्ति से विशेष माँग करते हैं, वे उससे उसकी विश्वासपात्रता का थोड़ा-सा ही अंश प्राप्त करते हैं और उन्हें (द्वितीयक समूहों को) उसके (व्यक्ति के) थोड़े-से ही समय तक ध्यान की आवश्यकता होती है।”
डेविस (Davis) के अनुसार-“द्वितीयक समूह का आकार इतना बड़ा होता है कि इसके कोई भी दो सदस्य न तो एक-दूसरे से घनिष्ठ संपर्क में रहते हैं और न ही व्यक्तिगत रूप में एक-दूसरे को जानते हैं।”
लुडबर्ग (Lundberg) के अनुसार-“द्वितीयक समूह वे हैं, जिनमें सदस्यों के संबंध अवैयक्तिक, हितप्रधान तथा व्यक्तिगत योग्यता पर आधारित होते हैं।”
फेयरचाइल्ड (Fairchild) के अनुसार-“समूह का वह रूप, जो अपने सामाजिक संपर्क और औपचारिक संगठन की मात्रा में प्राथमिक सूमहों की तरह घनिष्ठता से भिन्न हो, द्वितीयक समूह कहलाता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि प्राथमिक समूहों के विपरीत विशेषताओं वाले समूहों को हम द्वितीयक समूह कहते हैं। ये आकार में बड़े होते हैं तथा इनमें घनिष्ठता का अभाव पाया जाता है। इन समूहों के सदस्यों के आपसी संबंध औपचारिक होते हैं।
द्वितीयक समूह की प्रमुख विशेषताएँ
द्वितीयक समूह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
⦁ कार्यों के अनुसार स्थिति–द्वितीयक समूह में प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति उसके कार्यों पर निर्भर होती है। इनमें व्यक्ति जन्म के आधार पर नहीं जाने जाते बल्कि कार्य के आधार पर जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए मजिस्ट्रेट होने पर अनुसूचित जाति का व्यक्ति और ब्राह्मण दोनों ही मजिस्ट्रेट कहलाते हैं।
⦁ सदस्यों में व्यक्तिवाद-द्वितीयक समूहों के सदस्यों में व्यक्तिवाद विकसित हो जाता है, | क्योंकि उनके संबंध स्वार्थ पर आधारित होते हैं। स्वार्थ पूरा हो जाने पर उसका समूह से कोई प्रयोजन नहीं रहता।।
⦁ सदस्यों में आत्म-निर्भरता—द्वितीयक समूह के सदस्यों में आत्म-निर्भरता होती है, क्योंकि प्रत्येक सदस्य को स्वयं अपने स्वार्थी की रक्षा करनी पड़ती है। द्वितीयक समूह का आधार अत्यधिक बड़ा होने के कारण उसके सदस्यों में आपसी संबंध अप्रत्यक्ष रहते हैं।
⦁ जानबूझकर स्थापना-कुछ विशेष हितों की पूर्ति के लिए व्यक्ति द्वितीयक समूहों की स्थापना जानबूझकर करता है अतः द्वितीयक समूहों का विकास स्वत: नहीं होता है।
⦁ विस्तृत आकार-द्वितीयक समूह आकार में विस्तृत होते हैं तथा इनके सदस्य संपूर्ण विश्व में भी फैले हो सकते हैं। उदाहरणार्थ ट्रेड यूनियन एवं संयुक्त राष्ट्र संघ द्वितीयक समूह के उदाहरण है।
⦁ अप्रत्यक्ष संबंध–विस्तृत आकार के कारण द्वितीयक समूहों के सदस्यों में शारीरिक निकटता आवश्यक नहीं है अत: इसके सदस्यों में अप्रत्यक्ष संबंध पाए जाते हैं।
⦁ व्यक्ति पर आंशिक प्रभाव-द्वितीयक समूह व्यक्ति के व्यक्तित्व के किसी एक पक्ष को प्रभावित करते हैं, उसके संपूर्ण व्यक्तित्व से उनका कोई संबंध नहीं होता।
⦁ सीमित उत्तरदायित्व-अप्रत्यक्ष संबंध होने के कारण द्वितीयक समूहों के सदस्यों का उत्तरदायित्व भी सीमित होता है। इसलिए. इनमें संपूर्ण जीवन की व्यवस्था का अभाव होता है।
⦁ घनिष्ठता का अभाव-इन समूहों के सदस्यों के संबंधों में घनिष्ठता का अभाव पाया जाता है। | यहाँ व्यक्ति के बीच ‘छुओ और जाओ’ (Touch and go) के संबंध होते हैं।
द्वितीयक समूहों का महत्त्व
समाज में प्राथमिक समूहों की तुलना में द्वितीयक समूहों की संख्या व महत्त्व में वृद्धि होती जा रही है। द्वितीयक समूहों का महत्त्व निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
⦁ आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक–आधुनिक जटिल समाजों में व्यक्तियों की आवश्यकताएँ इतनी अधिक हैं कि उनकी पूर्ति के लिए केवल प्राथमिक समूह ही पर्याप्त नहीं है; उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए द्वितीयक समूहों की भी आवश्यकता होती है।
⦁ सामाजिक प्रगति में सहायक–द्वितीयक समूह समाज में इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि ये समूह सामाजिक परिवर्तन के माध्यम से सामाजिक प्रगति में भी योगदान देते हैं। ये समूह व्यक्ति को प्रतिस्पर्धा की ओर प्रेरित करते हैं, उसे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करते हैं।
⦁ विशेषीकरण में सहायक–द्वितीयक समूह व्यक्ति के व्यक्तित्व का विशेषीकरण करने में भी योगदान देते हैं। ये समूह नवीन प्रेरणाओं को जन्म देते हैं, जिससे नित्य नए आविष्कार होते रहते हैं।
⦁ व्यवहार को नियंत्रित करने में सहायक–द्वितीयक समूह व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित ,करने में भी योगदान देते हैं। इस विषमतापूर्ण समाज में परंपराओं व प्रथाओं द्वारा नियंत्रण नहीं किया जा सकता, इसलिए व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस, न्यायालय जैसे द्वितीयक समूहों की आवश्यकता होती है।
⦁ उद्देश्यों की पूर्ति द्वारा संतोष प्रदान करने में सहायक-द्वितीयक समूहों में आदान-प्रदान का क्षेत्र विस्तृत होने के कारण अधिक संतोष प्राप्त होता है। ये मनुष्यों के विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।
⦁ व्यक्तिगत ज्ञान एवं कुशलता को बढ़ाने में सहायक–द्वितीयक समूह श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण को महत्त्व देते हैं, जिससे व्यक्ति के ज्ञान एवं कुशलता में वृद्धि होती है।
⦁ तार्किक दृष्टिकोण के विकास में सहायक–द्वितीयक समूह व्यक्ति और समाज में जागरूकता उत्पन्न करने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये व्यक्ति में विवेक को जाग्रत करते हैं, तार्किक दृष्टिकोण अपनाने में उसकी सहायता करते हैं।
⦁ योग्यताओं के विकास में सहायक–द्वितीयक समूह व्यक्ति की योग्यताओं का विकास करने में अपना योगदान देते हैं। लोग समूह में सदस्यता प्राप्त करने के लिए अधिक-से-अधिक योग्य
बनने का प्रयत्न करते हैं। अप्रत्यक्ष संबंध होते हुए भी द्वितीयक समूहों का मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण स्थान होने के कारण ही उन्हें ‘शीत जगत के प्रतिनिधि’ कहा जाता है।
प्राथमिक एवं द्वितीयक समूहों में अंतर
प्राथमिक एवं द्वितीयक समूहों में निम्नलिखित प्रमुख अंतर पाए जाते हैं-