औपचारिक एवं अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण का अर्थ कुछ विद्वानों ने सामाजिक नियंत्रण के दो प्रकारों औपचारिक (Formal) और अनौपचारिक (Informal) का उल्लेख किया है तथा सामाजिक नियंत्रण के समस्त अभिकरणों को इन्हीं दो वर्गों में विभक्त किया है। औपचारिक नियंत्रण स्पष्ट रूप से परिभाषित होता है। इसमें व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए जानबूझकर प्रयास हेतु कुछ नियम निर्धारित किए जाते हैं तथा उनका कठोरता से पालन करवाया जाता है। इनका उल्लंघन करने पर दंड का विधान होता है। इस प्रकार, जब नियंत्रण के संहिताबद्ध, व्यवस्थित एवं अन्य औपचारिक साधन प्रयोग किए जाते हैं तो यह औपचारिक सामाजिक नियंत्रण कहलाता है। राज्य, सरकार, पुलिस एवं कानून आदि इसके साधन एवं अभिकरण है। आधुनिक समाजों में सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधनों और माध्यमों पर जोर दिया जाता है।
औपचारिक नियंत्रण के विपरीत, अनौपचारिक नियंत्रण व्यक्तिगत, अशासकीय एवं असंहिताबद्ध होता है। यह अलिखित होता है तथा उसका विकास समाज में धीरे-धीरे तथा अपने आप हो जाता है। इसमें मुस्कान, चेहरे बनाना, शारीरिक भाषा, आलोचना, उपहास, हँसी आदि सम्मिलित होते हैं। हमारे विश्वास, धर्म, नैतिक नियम, परंपराएँ तथा प्रथाएँ आदि अनौपचारिक नियंत्रण के ही साधने हैं। इस प्रकार के नियंत्रण का उल्लंघन करने पर प्रत्यक्ष रूप से किसी दंड का विधान नहीं होता।
औपचारिक एवं अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण में अंतर
औपचारिक एवं अनौपचारिक नियंत्रण में निम्नलिखित प्रमुख अंतर पाए जाते हैं-
⦁ औपचारिक नियंत्रण अत्यधिक स्पष्ट होता है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण अलिखित एवं अस्पष्ट होता है।
⦁ औपचारिक नियंत्रण सचेत रूप से लागू होता है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण अचेतन रूप से लागू होता है।
⦁ औपचारिक नियंत्रण संगठित एवं कठोर होता है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण असंगठित एवं नरम होता है।
⦁ औपचारिक नियंत्रण तथा इसके अभिकरणों का विकास सचेत रूप से किया जाता है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण तथा इसके अभिकरणों का विकास स्वत: धीरे-धीरे होता है।
⦁ औपचारिक नियंत्रण में न रहने पर बल प्रयोग किया जाता है या दंड दिया जाता है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण में दंड इत्यादि का किसी प्रकार का प्राबधान नहीं होता है।
⦁ औपचारिक नियंत्रण मुख्यतः आधुनिक समाजों की प्रमुख विशेषता है, जबकि अनौपचारिक ”नियंत्रण परंपरागत एवं प्राचीन समाजों में ही पाया जाता है।
⦁ औपचारिक नियंत्रण में आवश्यकताओं एवं प्रस्थितियों के अनुसार बदलने की क्षमता होती है, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण को बदलना सरल कार्य नहीं है।
⦁ औपचारिक नियंत्रण से संबंधित नियम राज्य या इसके द्वारा अधिकृत किसी प्रशासनिक संगठन द्वारा बनाए जाते हैं, जबकि अनौपचारिक नियंत्रण संबंधी सभी नियम एवं व्यवहार संहिताएँ समाज द्वारा निर्मित होती हैं।
सामाजिक नियंत्रण के साधन अथवा अभिकरण
सामाजिक नियंत्रण के साधनों का तात्पर्य उन नियमों, विधियों, परंपराओं, विचारों तथा शक्तियों आदि से होता है, जिनके द्वारा समाज के सदस्यों के व्यवहारों को नियंत्रित किया जाता है। सामाजिक नियंत्रण के साधन देश, काल और परिस्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं। यहाँ हम प्रमुख साधनों का संक्षेप में उल्लेख करेंगे। (अ) सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन अथवा अभिकरण
सामाजिक नियंत्रण के प्रमुख अनौपचारिक साधन निम्नांकित हैं-
1. विश्वास–सामाजिक नियंत्रण में विश्वासों की प्रमुख भूमिका होती है। प्रत्येक व्यक्ति समाज में प्रचलित विश्वासों के आधार पर समाज-विरोधी कार्य करने से हिचकता है। प्रारंभ से ही मनुष्य प्रकृति में ऐसी सर्वशक्तिमान सत्ता का आभास करता आया है जिसके नियमों का उल्लंघन करना एक अपराध है। मनुष्यों का विश्वास रहा है कि पारलौकिक सत्ता की आज्ञा पालन करने से उन्हें सुख और समृद्धि मिलेगी तथा अवज्ञा करने पर दण्ड प्राप्त होगा। व्यक्ति कोई भी कार्य करते समय सोचता है कि यदि उसे कोई अन्य व्यक्ति नहीं तो कम-से-कम भगवान तो उसके कार्य को देख रहा है तथा इसी भावना से कई बार वह अनुचित काम करने से रुक जाता है।
2. धर्म-धर्म सामाजिक नियंत्रण का एक प्रमुख अनौपचारिक साधन है तथा नियंत्रण करने की शक्ति के रूप में इसका अपना अलग स्थान है। धर्म के कारण ही व्यक्ति अनैतिक और समाज-विरोधी कार्यों को करने से संकोच करते हैं। मनुष्य को उचित कार्य करने के लिए धर्म सदा प्रेरक रहा है। प्रत्येक धर्म के अपने कुछ प्रमुख और सिद्धांत, नियम तथा व्यवहार होते हैं, जिन पर चलना प्रत्येक धर्मावलंबी के लिए आवश्यक होता है। ये नियम और सिद्धांत ही सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में कार्य करते हैं। वास्तव में मानव-आचरण को नियंत्रित करने में धर्म का अपना अलग स्थान रहा है। धर्म ने मनुष्य को सदा यह बताया है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
3. सामाजिक आदर्श सामाजिक व्यवहारों को नियंत्रित करने में समाज के आदर्शों की भी | विशेष भूमिका रहती है। ये व्यक्तियों के कार्यों को परिभाषित करते हैं तथा उन्हें इनका पालन करने हेतु प्रेरित करते हैं। उदाहरण के लिए–प्रजातंत्र व्यक्तियों को समानता के आदर्शों को अपनाने पर बल देता है। उसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव को उचित नहीं ठहराया जाता। प्रत्येक व्यक्ति से आशा की जाती है कि वह अपने अधिकारों के साथ-साथ दूसरे के अधिकारों का भी सम्मान करें।
4. सामाजिक सुझाव–सन्त, महात्मा तथा धार्मिक नेता आदि सामाजिक सुझावों द्वारा सामाजिक नियंत्रण रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। ये लोग जनसाधारण के सम्मुख मौखिक और लिखित रूप में कुछ सुझाव प्रस्तुत करते हैं। इन सुझावों द्वारा सामाजिक कार्यों को करने के लिए तथा असामाजिक कार्यों को न करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस प्रकार सुझावों द्वारा लागू किया गया नियंत्रण अधिक प्रबल होता है।
5 सामाजिक उत्सव–समाज में उत्सवों तथा पर्यों का प्रमुख स्थान होता है। प्रत्येक समाज में विभिन्न उत्सव मनाए जाते हैं। इन उत्सवों के प्रति सर्वसाधारण में विशेष श्रद्धा और भक्ति की भावना होती है। ये उत्सव व्यक्तियों को उनके उत्तरदायित्व का ज्ञान कराते हैं। इसमें भाग लेकर व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों का पालन करना सीखता है और व्यवहारों को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए–विवाह उत्सव में भाग लेकर व्यक्ति अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व को निभाना सीखता है।
6. कला-कला सामाजिक नियंत्रण का एक प्रमुख शक्तिशाली अनौपचारिक साधन है। कानून और अन्य औपचारिक साधनों द्वारा जो नियंत्रण नहीं हो पाता, वह काव्य, चित्रकला, स्थापत्य कला तथा संगीत आदि द्वारा सरलता तथा सफलता से हो जाता है। विभिन्न कलाएँ मानव हृदय को प्रभावित करती हैं, जिससे उनका व्यवहारं नियंत्रित होता है। वर्तमान युग में मनुष्यों के दृष्टिकोण को परिष्कृत करने में विभिन्न कलाओं का विशेष योगदान रहा है।
7. नेतृत्व-समाज के प्रतिभाशाली व्यक्तियों का अन्य व्यक्ति अनुसरण करते हैं और उनके बताए। गए मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं। ये व्यक्ति नेता होते हैं। नेता अपनी कुशाग्र बुद्धि के कारण जनता को प्रभावित करते हैं तथा उसके व्यवहारों में परिवर्तन करते हैं। नेतृत्व जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में होता है; जैसे-राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र। राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा गाँधी आदि ऐसे नेता थे, जिन्होंने तत्कालीन सर्वसाधारण के व्यवहारों को पर्याप्त प्रभावित किया।
8. जनरीतियाँ–समनर (Sumner) के अनुसार जनरीतियाँ सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख साधन है। प्रयास और भूल (Trial and Error) के नियम के अनुसार समाज में स्वत: इनका विकास होता है। नमस्कार करना, तिलक लगाना, सिर पर टोपी पहनना, कॉटे-छुरी से भोजन करना आदि जनरीतियों के उदाहरण हैं। समाज का प्रत्येक सदस्य जनरीतियों के अनुकूल ही आचरण करता है। इनका विरोध करने वाले को समाज में अपमानित होना पड़ता है।
9. प्रथाएँ–प्रथाओं की परिभाषा देते हुए मैकाइवर लिखते हैं-“कार्य करने के समाज द्वारा अनुमोदित ढंग ही समाज की प्रथाएँ है।” व्यक्ति जन्म से अनेक प्रथाओं के मध्य पलता है अतः प्रथाओं को भंग करने का साहस वह सरलता से नहीं कर सकता। जो व्यक्ति प्रथाओं को नहीं मानते, समाज में उन्हें अनादर की दृष्टि से देखा जाता है। इसलिए प्रथाएँ सामाजिक नियंत्रण का महत्त्वपूर्ण अनौपचारिक अभिकरण हैं। जनजातीय समाजों में प्रथाओं को कानून से भी अधिक शक्तिशाली माना जाता है।
10. रूढ़ियाँ-जब प्रथाओं को समूह की स्वीकृति प्राप्त होती है तो वे रूढ़ियाँ कहलाती हैं। समनर के शब्दों में, “जब जनरीतियाँ उचित जीवन-निर्वाह, दर्शन और कल्याण की नीति का रूप ले लेती हैं तो वे रूढ़ियाँ कहलाती है।” रूढ़ियों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य होता है। यदि कोई व्यक्ति रूढ़ियों का पालन नहीं करता तो समाज द्वारा उसका बहिष्कार कर दिया जाता है।”
11. नैतिक आदर्श-प्रत्येक समाज के कुछ-न-कुछ आदर्श होते हैं, जो समाज के सदस्यों को बताते हैं कि कौन-सा काम उचित है और कौन-सा अनुचित। सत्य बोलना, अहिंसा का पालन करना, परोपकार आदि इसी प्रकार के नैतिक आदर्श है, जिनका पालन करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं।
12. परिवार–परिवार सामाजिक नियंत्रण का महत्त्वपूर्ण अनौपचारिक साधन है। बच्चों को अच्छे या बुरे कार्यों का ज्ञान प्रारंभ से ही परिवार कराता है तथा समाज की मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है। यह बच्चे की प्रथम पाठशाला है, जो समाजीकरण तथा सामाजिक नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।
(ब) सामाजिद नियंत्रण के औपचारिक साधन अथवा अभिकरण
यद्यपि सामाजिक नियंत्रण में अनौपचारिक साधन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं, तथापि सामाजिक नियंत्रण की प्रक्रिया में अनौपचारिक साधन भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मुख्य औपचारिक साधन निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षा-शिक्षा मनुष्य में विवेक जाग्रत करती है और उचित तथा अनुचित का ज्ञान कराती है। किसी कानून या सामाजिक परंपरा के पालन करने से क्या लाभ या हानि हो सकती है, इसका ज्ञान शिक्षा द्वारा ही होता है। रस्किन (Ruskin) के शब्दों में, “शिक्षा मनुष्यों को नम्र बना देती है जो कि उन्हें होना चाहिए।” एक शिक्षित व्यक्ति कोई भी समाज विरोधी कार्य करने में संकोच करता है, क्योंकि वह उसका परिणाम समझता है। इस कारणं ही गिलिन एवं गिलिन (Gillin and Gillin) ने लिखा है कि “अतः शिक्षा का प्रयोग केवल इसी अर्थ में सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में किया जाता है कि व्यक्तियों को सत्य तक पहुँचने की शिक्षा प्राप्त हो जाती है। यह उनकी बुद्धि-प्रयोग का परीक्षण देती है और भावनाओं, प्रथा और परंपराओं की अपेक्षा तर्क द्वारा नियंत्रण का क्षेत्र विस्तृत करती है।”
2. प्रचार–वर्तमान युग विज्ञान का युग है। विज्ञान ने विभिन्न प्रचार-साधनों द्वारा जनसाधारण के मस्तिष्क को प्रभावित किया है। रेडियो, टेलीविजन, चलचित्र, प्रेस, समाचार-पत्र आदि चार के मुख्य साधन हैं। इन साधनों द्वारा व्यक्तियों के विचारों, विश्वासों और धारणाओं को सरलता से प्रभावित किया जा सकता है। आधुनिक युग में प्रचार-साधनों के बढ़ जाने के फलस्वरूप यह युग प्रचार-युग कहलाता है। इन साधनों द्वारा जनता के दृष्टिकोण तथा धारणाओं को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है।
3. कानून-कानून सामाजिक व्यवस्था को नियंत्रित करने में सबसे अधिक योगदान प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति कानून का उल्लंघन करने का प्रयास करता है, उसे राज्य द्वारा दंडित किया जाता है। मैकाइवर तथा पेज (Maclver and Page) के शब्दों में, “कानून राज्य द्वारा समर्थित संहिता है और सब पर समान रूप से लागू होने के कारण इस प्रकार स्वंय राज्य का संरक्षक है।” रॉस (Ross) के अनुसार, “कानून समाज द्वारा लगाया गया सामाजिक नियंत्रण का सबसे विशिष्ट और पूर्ण साधन है।” वास्तव में, कानून व्यक्तियों के आचरणों पर पूर्ण नियंत्रण रखता है। वह उन्हें कुछ कार्य करने की छूट देता है तो कुछ अवांछित कार्य करने पर प्रतिबंध लगाता है। कानून समाज के अपराधियों के आगे उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कानून के विरुद्ध आचरण करने वाले किस प्रकार दंडित होते हैं। इस प्रकार कानून द्वारा अपराधियों के कार्य सीमित हो जाते हैं और असामाजिक व्यवहारों पर नियंत्रण लग जाता है।
4. राज्य–सामाजिक नियंत्रण का एक साधन भौतिक शक्ति का प्रयोग है। जो व्यक्ति अत्यधिक स्वार्थी, लालची तथा पदलोलुप होते हैं, उन्हें शक्ति एवं सत्ता द्वारा ठीक कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता है। न्यायालय द्वारा इस कारण ही अपराधियों को कठोर दंड दिया जाता है। जब भीड़ अराजकता की दशा में पहुँच जाती है तो पुलिस तथा सेना द्वारा उस पर नियन्त्रण स्थापित किया जाता है। न्यायालय में पुलिस के पास नियंत्रण के लिए राज्य द्वारा प्रदत्त औपचारिक शक्ति होती है। राज्य को सर्वोच्च शक्तिशाली संस्था माना जाता है। मृत्यु-दंड तक देने का अधिकार भी राज्य न्यायालयों को दे सकता है।