संस्कृति को सीखे हुए व्यवहार प्रतिमानों तथा सामाजिक विरासत के आधार पर समझाने का प्रयास किए गया है। प्रत्येक समाज की अपनी भिन्न संस्कृति होती है। संस्कृति वह संपूर्ण जटिलता है। जिसमें वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित हैं जिन पर हम विचार करते हैं, कार्य करते हैं और समाज का सदस्य होने के नाते अपने पास रखते हैं। संस्कृति पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांरित होती रहती है। प्रत्येक पीढ़ी ने अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान एवं कला का और अधिक विकास किया है। अन्य शब्दों में, प्रत्येक पीढी ने अपने पूर्वजों के ज्ञान को संचित किया है। और इस ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान और अनुभव का भी। ज्ञान अर्जन किया है। इस प्रकार के ज्ञान व अनुभव के अंतर्गत यंत्र, प्रविधियाँ, प्रथाएँ, विचार और मूल्य आदि आते हैं। ये मूर्त और अमूर्त वस्तुएँ संयुक्त रूप से संस्कृति’ कहलाती हैं। इस प्रकार वर्तमान पीढ़ी ने अपने पूर्वजों तथा स्वयं के प्रयासों से जो अनुभव व व्यवहार सीखा है वहीं संस्कृति है।
मैकाइवर एवं पेज के शब्दों में, “संस्कृति हमारे दैनिक व्यवहार में कला, साहित्य, सीखा है वहीं संस्कृति है। मैकाइवर एवं पेज’ के शब्दों में, “संस्कृति हमारे दैनिक व्यवहार में कला, साहित्य, धर्म, मनोरंजन और आनंद में पाए जाने वाले रहन-सहन और विचार के ढंगों से हमारी प्रकृति की अभिव्यक्ति है।”