मनुष्य का जन्म समाज में होता है। समाज में जन्म लेने के पश्चात् वह धीरे-धीरे आस-पास के वातावरण के संपर्क में आता है और उससे प्रभावित होता है। प्रारंभ में मनुष्य एक प्रकार से जैविक प्राणी मात्र होता है; क्योंकि आहार, निद्रा आदि के अतिरिक्त उसे और किसी बात का ज्ञान नहीं होता। और उसकी अवस्था बहुत-कुछ पशुओं के समान होती है। इसके अतिरिक्त जन्म के समय बालक में सभी प्रकार के सामाजिक गुणों का भी अभाव होता है। सामाजिक गुणों के अभाव में बालक एक जैविक प्राणी मात्र ही होता है। माता-पिता के संपर्क में आकर वह मुस्कराना और पहचानना सीखता है। धीरे-धीरे वह अपने परिवार के अन्य सदस्यों के संपर्क में आता है और उनसे सामाजिक शिष्टाचार की अनेक बातें सीखता हैं। आगे चलकर और बड़े होने पर उसके सपंर्क का क्षेत्र और अधिक व्यापक हो जाता है तथा वह विभिन्न सामाजिक तरीकों से अपने कार्यों का संचालन करना सीख लेता है तथा उसका प्रत्येक व्यवहार समाज के नियमों के अनुसार होने लगता है। इस प्रकार, वह प्राणी से सामाजिक प्राणी बन जाता है और समाजशास्त्र में बच्चे के सामाजिक बनने की इस प्रक्रिया को ही समाजीकरण कहा जाता है।
समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
समाजीकरण सीखने की एक प्रक्रिया है। इसी के परिणामस्वरूप व्यक्ति समाज में रहना सीखता है। अर्थात् एक सामाजिक प्राणी बनता है। संस्कृति का हस्तांतरण भी इसी प्रक्रिया के माध्यम से होता है। विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रतिपादित समाजीकरण की परिभाषाएँ निम्नवर्णित हैं-
⦁ ऑगबर्न एवं निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार-“समाजीकरण से समाजशास्त्रियों का तात्पर्य है वह प्रक्रिया जिससे व्यक्ति का मानवीकरण होता है।”
⦁ ग्रीन (Green) के अनुसार--“समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चा अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं, आत्मपन और व्यक्तित्व प्राप्त करता है।”
⦁ जॉनसन (Johnson) के अनुसार–“समाजीकरण एक प्रकार का सीखना है जो सीखने वाले को सामाजिक कार्य करने योग्य बनाता है।”
⦁ बोगार्ड्स (Bogardus) के अनुसार–“समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति एक-दूसरे पर निर्भर रहकर व्यवहार करना सीखता है और इसके द्वारा सामाजिक आत्म-नियंत्रण सामाजिक उत्तरदायित्त्व तथा संतुलित व्यक्तित्व का अनुभव प्राप्त करता है।”
⦁ डेविस (Davis) के अनुसार-“परिवर्तन की इस प्रक्रिया के बिना, जिसे हम समाजीकरण कहते हैं, समाज एक पीढ़ी से भी आगे स्वयं को संतुलित नहीं कर सकता है और न ही संस्कृति जीवित रह सकती है। इसके बिना व्यक्ति सामाजिक प्राणी भी नहीं बन सकता है।’
⦁ कोनिग (Koenig) के अनुसार-“समीकरण से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें एक व्यक्ति अपने समाज, जिसमें वह जन्मा है, जो कार्यरत (या उपयोगी) सदस्य बनता है अर्थात् समाज | की जनरीतियों एवं रूढ़ियों के अनुसार व्यवहार एवं कार्य करता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समाजीकरण की प्रक्रिया जीवन भर किसी-न-किसी रूप में चलती रहती है। इसी प्रक्रिया के माध्यम से संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्सांतरित होती है।
समाजीकरण के प्रमुख अभिकरण
समाज की विभिन्न संस्थाएँ व्यक्ति के समाजीकरण में योगदान देती आई हैं। ये संस्थाएँ अथवा अभिकरण निम्नलिखित हैं-
1. परिवार–बालक का समाजीकरण करने वाली प्रथम तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संस्था परिवार है। परिवार में ही बच्चे का जन्म होता है तथा सबसे पहले वह माता-पिता व अन्य परिवारजनों के ही संपर्क में आता है। परिवार के सदस्य बालक के समाजीकरण में अपना प्रथम तथा स्थायी योगदान प्रदान करते हैं। परिवार के सदस्यों का परस्पर सहयोग और प्रेम-भाव बालक को समाजीकरण के लिए प्रेरित करता है। किम्बाल यंग (Kimball Young) के शब्दों में, “समाज के अंतर्गत समाजीकरण की भिन्न-भिन्न संस्थाओं में परिवार’ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।” प्रत्येक बालक अपने माता-पिता से रीति-रिवाज, सामाजिक परंपराओं तथा सामाजिक शिष्टाचार का ज्ञान प्राप्त करता है। वह परिवार में ही रहकर आज्ञाकारिता, सामाजिक अनुकूलन तथा सहनशीलता की प्रवृत्ति को विकसित करता है। संभवतः इसलिए परिवार को बच्चे की प्रथम पाठशाला कहा गया है जो कि ठीक भी है। समाजीकरण में परिवार के महत्त्व को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
⦁ माता-पिता के व्यवहार का प्रभाव-बच्चों के साथ माता-पिता का क्या और कैसा व्यवहार है, इस बात से ही बच्चे के सामाजिक जीवन का अनुमान लगाया जा सकता है। माता-पिता के व्यवहार को बालक के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अधिक लाड़-प्यार में पला बालक प्रायः बिगड़ जाता है। इसके साथ ही साथ माता-पिता से प्यार न मिलने पर बालक में हीन भावना ग्रन्थियाँ बनने लगती हैं और उसका व्यक्तित्व ठीक प्रकार से विकसित नहीं हो पाता।
⦁ माता-पिता के चरित्र का प्रभाव-समाजीकरण में माता-पिता के चरित्र का विशेष प्रभाव पड़ता है। चरित्रहीन माता-पिता के बालकों के व्यक्तित्व के संतुलित होने की कोई संभावना नहीं होती। जुआरी व शराबी माता-पिता की संतान नियंत्रणहीन हो जाती है और वह समाज-विरोधी कार्य करने लगती है। इसके विपरीत, चरित्रवान माता-पिता की संतान पर रीति-रिवाजों और प्रतिमानों द्वारा सामाजिक नियंत्रण की संभावना बनी रहती है।
⦁ भाई-बहनों का प्रभाव-परिवार में रहने वाले भाई-बहनों को भी बालक के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भाई-बहनों में बालक का जो स्थान होता है उससे बालक का व्यक्तित्व प्रभावित होता है। यदि उसका स्थान परिवार में सबसे प्रथम है तो वह अपने आचरण को संतुलित रखने का प्रयास करता है ताकि उसके छोटे भाई-बहन उसका सम्मान करें। एक ही पीढ़ी के होने के कारण भाई-बहनों का प्रभाव समाजीकरण में अत्यधिक पड़ता है।
⦁ पारिवारिक नियंत्रण का प्रभाव-माता-पिता के निंयत्रण का भी बच्चों अथवा परिवार के युवक-युवतियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। नियंत्रणहीन परिवार में युवक-युवितयों के बिगड़ने की संभावना अधिक बनी रहती है। इसके विपीरत, जो परिवार नियंत्रित रहते हैं। उनके बच्चे पूर्ण से सुयोग्य एवं नियंत्रित रहते हैं।
⦁ परिवार की आर्थिक स्थिति का प्रभाव-परिवार की आर्थिक स्थिति भी बच्चे के समाजीकरण को प्रभावित करती है। यदि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है तो बच्चे की संभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर दी जाती है जिससे बच्चा अपराधों की ओर आकर्षित नहीं होता। इसके विपरीत, निर्धन परिवार के बच्चों की आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती। इन परिवारों के बच्चों में हीन-भावना ग्रथियों का निर्माण हो जाता है और वे समाज-विरोधी कार्य करने लगते हैं।
⦁ नागरिक गुणों की पाठशाला—परिवार को ही नागरिक गुणों की प्रथम पाठशाला कहो गया है। परिवार में रहकर ही बच्चा सर्वप्रथम सहानुभूति, प्रेम, त्याग, सहिष्णुता, आज्ञापालन आदि गुणों को सीख जाता है। इन्हीं से व्यक्ति का समाजीकरण संभव होता है।
2. पड़ोस-परिवार के पश्चात् बालक अपने पड़ोस के संपर्क में आता है। पड़ोस के वातावरण से बालक पर्याप्त प्रभावित होता है। पड़ोसियों का परस्पर प्रेम, सहयोग तथा सद्भाव बालक के समाजीकरण में विशेष योगदान करता है। पड़ोस के बालक परस्पर मिलकर खेलते हैं। इस खेल में या तो बालक अन्य बालकों का नेतृत्व करता है या किसी बालक के नेतृत्व में कार्य करता है।
इस प्रकार, बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया चलती रहती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए अच्छे पड़ोस में रहना पसंद किया जाता है। यदि पड़ोस अच्छा नहीं है तो बच्चों के समाजीकरण की प्रक्रिया भी दूषित हो जाती है।