समाजशास्त्र एक विज्ञान है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जाता है। समाजशास्त्र में वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग का प्रश्न इसलिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कुछ विद्वान् इस विषय को विज्ञान मानने से इंकार करते हैं। वे समझते हैं कि समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के बारे में उन्हें अपने अनुभवों के द्वारा ही काफी ज्ञान प्राप्त है। वास्तव में ऐसा नहीं है। जो ज्ञान हमें अपने अनुभवों से मिलता है जरूरी नहीं है कि वह वैज्ञानिक ज्ञान ही हो।
उदाहरणार्थ-मित्रता या धर्म या बाजारों में मोल-भाव करने जैसी सामाजिक प्रघटनाओं का अध्ययन करते समय समाजशास्त्री केवल दर्शकों का अवलोकन ही नहीं करते अपितु इसमें सम्मिलित लोगों की भावनाओं तथा विचारों को भी जानना चाहते हैं। समाजशास्त्री विश्व को उनकी आँखों से देखना चाहते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में लोगों के लिए मैत्री का अर्थ क्या है? जब कोई व्यक्ति विशेष अनुष्ठान करता है तो किस प्रकार के धार्मिक विचार उसके मन में आते हैं? एक दुकानदार तथा ग्राहक बेहतर मूल्य पाने के लिए शब्दों तथा भावभंगिमाओं को परस्पर कैसे समझते हैं? ऐसे प्रश्नों का उत्तर केवल वैज्ञानिक पद्धति द्वारा ही दिया जा सकता है।