Use app×
Join Bloom Tuition
One on One Online Tuition
JEE MAIN 2025 Foundation Course
NEET 2025 Foundation Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
269 views
in Sociology by (52.9k points)
closed by

सामाजिक विज्ञान में विशेषकर समाजशास्त्र जैसे विषय में वस्तुनिष्ठता के अधिक जटिल होने के क्या कारण हैं?

1 Answer

+1 vote
by (55.1k points)
selected by
 
Best answer

समाजशास्त्रीय अध्ययनों में प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति प्रामाणिकता लाना कठिन है। समाज विज्ञानों के नियम प्राकृतिक विज्ञानों के नियमों की भाँति अटल नहीं होते, वे तो सामाजिक व्यवहार के संबंध में संभावित प्रवृत्ति को प्रकट करते हैं। ऐसी स्थिति के लिए अनेक कारक उत्तरदायी हैं; जैसे-सामाजिक प्रघटना का स्वभाव, ठोस मापदंडों को विकसित न होना आदि। इन्हीं कारणों में एक प्रमुख समस्या वस्तुनिष्ठता की भी है। किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसंधान की सफलता की। पूर्वापेक्षित शर्त वस्तुनिष्ठता है। इसके अभाव में अनुसंधान के द्वारा प्राप्त निष्कर्षों की विश्वसनीयता एवं प्रामाणिकता संदिग्ध हो जाती है। यही कारण है कि समाजशास्त्र में प्रारंभ से ही इस समस्या पर विचार किया जाता रहा है। वस्तुनिष्ठता का अभिप्राय घटना का यथार्थ या वास्तविक रूप में अर्थात् उसी रूप, में, जिसमें वे हैं, वर्णन करना है। यह एक तरह से वैज्ञानिक भावना है जो अनुसंधानकर्ता को उसके पूर्व दृष्टिकोणों से उसके अध्ययन को प्रभावित करने से रोकती है। यदि कोई अनुसंधानकर्ता किसी घटना का वर्णन उसी रूप में करता है जिसमें कि वह विद्यमान है, चाहे उसके बारे में अनुसंधानकर्ता के विचार कुछ भी क्यों न हों, तो हम इसे वस्तुनिष्ठ अध्ययन कह सकते हैं।

सामाजिक विज्ञान में; विशेषकर समाजशास्त्र जैसे विषय में ‘वस्तुनिष्ठता के अधिक जटिल होने के अनेक कारण हैं। एक तो अनुसंधानकर्ता स्वयं अपने मूल्य रखता है तथा उसका अध्ययन उसके मूल्यों एवं पूर्वाग्रहों द्वारा प्रभावित होता है। दूसरे, सामाजिक घटनाएँ जटिल होती हैं तथा उनका तटस्थ रूप से अध्ययन करना सम्भव नहीं है। कुछ विद्वानों (जैसे-मैक्स वेबर) , का कहना है कि सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं की प्रकृति ही ऐसी है कि इनका पूर्ण रूप से वस्तुनिष्ठ अध्ययन किया। ही नहीं जा सकता, जबकि अनेक अन्य विद्वानों (जैसे-दुखम) का विचार है कि समाजशास्त्रीय अध्ययनों में वस्तुनिष्ठता रखना सम्भव है। दुर्णीम ने इस बात का दावा ही नहीं किया अपितु धर्म, श्रम-विभाजन एवं आत्महत्या जैसे सामाजिक तथ्यों का वस्तुनिष्ठ अध्ययन करने में सफलता भी प्राप्त की; परंतु फिर भी आज अनेक विद्वान यह मानते हैं कि सामाजिक घटनाओं की प्रकृति प्राकृतिक घटनाओं की प्रकृति से भिन्न है जिसके कारण इनको पूर्ण वस्तुनिष्ठ अध्ययन सम्भव नहीं है। हाँ, अनुसंधानकर्ता अनेक सावधानियों का प्रयोग कर अपने विचारों के प्रभावों अर्थात् व्यक्तिनिष्ठता या व्यक्तिपरकता को कम-से-कम करने का प्रयास कर सकता है।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...