प्रत्येक विज्ञान अपनी विषय-वस्तु का अध्ययन वस्तुनिष्ठ रूप से करने का प्रयास करता है, परंतु सामाजिक घटनाओं की प्रकृति के कारण समाजशास्त्र जैसे विषय में वस्तुनिष्ठता रख पाना एक कठिन कार्य है। इसमें आने वाली प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
⦁ समस्या का चयन मूल्य-निर्णयों द्वारा प्रभावित–सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता न रख पाने का सर्वप्रथम कारण अनुसंधान समस्या का चयन है जो कि अंवेषणकर्ता के मूल्यों तथा रुचियों द्वारा प्रभावित होता है। समस्या का चयन सदैव मूल्यों से संबंधित होता है और इसीलिए सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं को पूर्ण रूप से वस्तुनिष्ठ अथवा वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव नहीं है।
⦁ अध्ययन से तटस्थता असंभव–सामाजिक अनुसंधान में जब हम व्यक्तियों एवं समूहों का अध्ययन करते हैं तो स्वयं एक सामाजिक प्राणी होने के कारण हम अध्ययन से अपने आप को तटस्थ अथवा पृथक् नहीं रख पाते। प्राकृतिक विज्ञानों में ऐसा इसलिए संभव हो जाता है क्योंकि उनमें जड़ या निर्जीव वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। स्वयं सामाजिक समूह, विशेष जाति एवं संप्रदाय का सदस्य होने के कारण अनुसंधानकर्ता का पक्षपात या किसी विशेष बात की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही है; अतः सामाजिक विज्ञानों में निष्कर्षों के अनुसंधानकर्ता की मनोवृत्तियों या मूल्यों द्वारा प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है।
⦁ बाह्य हितों द्वारा बाधा–सामाजिक विज्ञानों में वस्तुनिष्ठता से संबंधित तीसरी बाधा अनुसंधानकर्ता के बाह्य हित हैं। जब वह अपने समूह का अध्ययन करता है तो बहुत-सी बातों की, जिन्हें वह अनुचित मानता है, उपेक्षा कर देती है। दूसरी ओर, जब वह किसी दूसरे समूह को अध्ययन करता है तो वह ऐसी बातों की ओर अधिक ध्यान देता है। इससे अध्ययन की वस्तुनिष्ठता प्रभावित होती है।
⦁ सामाजिक घटनाओं की प्रकृति-सामाजिक घटनाओं की प्रकृति भी सामाजिक विज्ञानों में वस्तुनिष्ठ अध्ययनों में एक बाधा है, क्योंकि इनकी प्रकृति गुणात्मक होती है और कई बार अनुसंधानकर्ता को समूह के सदस्यों की मनोवृत्तियों, मूल्यों एवं आदर्शों आदि का अध्ययन करना पड़ता है। इसीलिए उसके लिए परिशुद्ध एवं यथार्थ रूप में घटनाओं का निष्पक्ष अध्ययन . करना सम्भव नहीं रह पाती।
⦁ संजातिकेंद्रवाद–अनुसंधानकर्ता स्वयं एक सामाजिक प्राणी है तथा वह किसी विशेष जाति, प्रजाति, वर्ग, लिंग समूह का सदस्य होने के नाते विभिन्न मानवीय क्रियाओं एवं सामाजिक पहलुओं के बारे में अपने विचार एवं मूल्ये रखता है। उसके ये विचार एवं मूल्य उसके अध्ययन को प्रभावित करते हैं। कुंडबर्ग (Lundberg) के अनुसार अनुसंधानकर्ता के नैतिक मूल्य का उसके अध्ययन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।
उपर्युक्त बाधाओं के अतिरिक्त अनेक अन्य ऐसे कारण भी हैं जो समाजशास्त्र जैसे सामाजिक विज्ञानों में होने वाले अध्ययनों में पक्षपात या अभिनति (Bias) लाते हैं। अभिनति के ऐसे प्रमुख स्रोत निम्नांकित हैं—
⦁ अनुसंधानकर्ता के अपने मूल्यों से संबंधित अभिनति,
⦁ सूचनादाता की अभिनति,
⦁ निदर्शन के चुनाव में अभिनति,
⦁ सामग्री संकलन करने की दोषपूर्ण प्रविधियाँ तथा
⦁ सामग्री के विश्लेषण एवं निर्वचन में अभिनति।