प्रतिदर्श प्रतिनिधित्व से अभिप्राय किसी विस्तृत समूह के एक अपेक्षाकृत लघु प्रतिनिधि से है। यह वह प्रतिदर्श है जिसमें समान संभावना या संयोग को महत्त्व दिया जाता है। दैव प्रतिदर्श (Random Sampling) संभावित प्रतिदर्श का प्रमुख प्रकार है। दैव प्रतिदर्श वह प्रतिदर्श है जिसमें समग्र की प्रत्येक इकाई के चुने जाने की संभावना या संयोग (Chance) एक समान होता है; अत: यह प्रतिदर्श पक्षपातरहित एवं समग्र का प्रतिनिधित्व करने वाला होता है। गुड एवं हैट (Goode and Hatt) के अनुसार, “दैव प्रतिदर्श में समग्र की इकाइयों को इस प्रकार से क्रमबद्ध किया जाता है कि चुनाव प्रक्रिया समग्र की प्रत्येक इकाई को चयन का समान अवसर प्रदान करती है। प्रतिदर्श प्रतिनिधित्व चयन के प्रमुख आधार अग्रांकित हैं-
⦁ लाटरी पद्धति–यदि समग्र का आकार छोटा है तो सभी इकाइयों, को एक-से काजज की छोटी-छोटी पर्चियों पर लिखकर किसी ड्रम इत्यादि में डालकर हिलाया जाता है ताकि, पर्चियाँ आपस में इस प्रकार मिल जाएँ कि पक्षपात की कोई संभावना न रहे। फिर आँख बंद करके या किसी बच्चे की सहायता से एक-एक पर्ची निकाली जाती है। जितनी निदर्शने चाहिए उतनी पर्चियाँ एक-एक करके निकाल ली जाती हैं। कार्ड या निकट पद्धति भी इसी को ही कहते हैं, परंतु इसमें प्रत्येक पर्ची निकालने के बाद डुम को काफी हिलाया जाता है।
⦁ ग्रिड पद्धति–इसे भौगोलिक क्षेत्र के किसी भाग को चुनने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। प्रस्तावित क्षेत्र पर एक पारदर्शी प्लेट रखी जाती है जिस पर विभिन्न भागों को संख्याओं के रूप में दिखाया जाता है। निदर्शन द्वारा संख्या एवं क्षेत्र का चयन किया जाता है।
⦁ दैव संख्या सारणी पद्धति-जब समग्र का आकार बड़ा होता है तो लाटरी पद्धति को अपनाना एक कठिन कार्य हो जाता है; अतः दैव संख्या सारणी का प्रयोग किया जाता है। इन संख्याओं को वैज्ञानिक पद्धति द्वारा निर्धारित किया जाता है। सामान्यतः टिप्पेट (Tippet) अथवा फिशर | एवं येट्स (Fisher and Yates) की देव संख्या सारणी का प्रयोग किया जाता है। इस सारणी द्वारा निर्धारित संख्या इकाईयों का चयन किया जाता है। इसमें भी प्रत्येक इकाई चुने जाने की बराबर संभावना होती है।