फिल्मों या टेलीविजन पर दिखाए गए गाँवों अथवा कस्बों को यथासंभव वास्तविक गाँव अथवा कस्बे के रूप में दर्शाने का प्रयास किया जाता है। फिर भी, अनेक फिल्मों में अधिकांश दृश्य स्टूडियों में फिल्माए जाते हैं इसलिए कृत्रिम रूप से गाँव एवं कस्बे के दृश्यों को भी दिखाया जा सकता है। इसीलिए अधिकांशतः फिल्मों या टेलीविजन पर दिखाए गए गाँवों अथवा कस्बों को जिस रूप में दर्शाया जाता है वह वास्तविक गाँवों एवं कस्बों के वास्तविक रूप से भिन्न होता है। वस्तुत: भारत में गाँव एवं कस्बे भी एक जैसे नहीं हैं। आकार की दृष्टि से वे बड़े, मध्यम अथवा छोटे हो सकते हैं तथा सुविधाओं की दृष्टि से पूर्ण सुविधायुक्त, आंशिक सुविधायुक्त अथवा असुविधायुक्त भी हो सकते हैं। बहुत-से-गाँव नगरीकृत अथवा अर्द्ध-नगरीकृत भी हो सकते हैं। इन गाँवों में अन्य गाँवों की तुलना में अधिक साफ-सफाई एवं सुविधाएँ हो सकती हैं। ऐसे ही खेतों के आकार में भी अंतर हो सकता है। इसी भाँति, कस्बे भी आकार में बड़े, मध्यम एवं छोटे तथा सुविधाओं से दृष्टि से पूर्ण सुविधायुक्त, आंशिक सुविधायुक्त अथवा असुविधायुक्त हो सकते हैं। फिल्मों या टेलीविजन पर दिखाए गए गाँवों अथवा कस्बों में प्राय: वास्तविक गाँवों एवं कस्बों से अधिक साफ-सफाई एवं सुविधाएँ दिखाई जाती हैं। कोई भी ग्राम या कस्बे में रहने वाला व्यक्ति यह सोच सकता है कि काश उसका गाँव या कस्बा भी फिल्मों या टेलीविजन पर दिखाए गए गाँवों अथवा कस्बों की भाँति होता। न रहने वाला व्यक्ति भी फिल्म से प्रोत्साहित होकर वहाँ रहने की इच्छुक हो सकता है। इस प्रकार, फिल्मों या टेलीविजन पर दिखाए गए गाँव अथवा कस्बे संदर्भ भी भूमिका भी निभाते हैं।