जब अनुसंधानकर्ता किन्हीं प्राकृतिक अवस्थाओं का अध्ययन करने हेतु कुछ क्रियाओं का निरीक्षण करता है तो वह अपने निरीक्षण कार्य में पूर्ण स्वतंत्र होता है। उसके इस कार्य में किसी बाह्य शक्ति या आंतरिक भावना का कोई प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता। इस प्रकार की स्वतंत्र निरीक्षण विधि में अनुसंधानकर्ता को आंतरिक या बाह्य किसी भी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं होता। इसलिए इस अवलोकन को समाजशास्त्रियों ने ‘अनियंत्रित अवलोकन’ की संज्ञा दी है। इस प्रकार क अवलोकन से अनुसंधानकर्ता अध्ययन-वस्तु से संबंधित सम्पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर लेता है। पी०वी० यंग ने लिखा है। कि “अनियंत्रित अवलोकनों में जीवन की वास्तविक दशाओं को सावधानीपूर्वक परीक्षा की जाती है। तथा अवलोकित घटना की यथार्थता की जाँच करने अथवा यथार्थता के परीक्षण-हेतु यंत्रों के प्रयोग करने का कोई प्रयत्न नहीं किया जाता।” अनियंत्रित अवलोकन में घटना का वास्तविक रूप में अध्ययन किया जाता है तथा उस घटना पर अथवा अवलोकनकर्ता पर किसी प्रकार का नियंत्रण रखने का प्रयास नहीं किया जाता है।