इस प्रकार के अवलोकन में अनुसंधानकर्ता उस समूह में जाकर बस जाता है, जिसका वह अध्ययन करता है। अनुसंधानकर्ता समूह की सभी क्रियाओं में सक्रिय भाग लेता है और अपने आप को समूह के सदस्य के रूप में स्वीकार होने योग्य बना देता है। इस प्रकार सहभांगी अवलोकन में अनुसंधानकर्ता अध्ययन किए जाने वाले समूह के लोगों से घुलमिलकर समूह की गतिविधियों व समस्या का अध्ययन करता है। किन्तु इस संबंध में अनुसंधानकर्ता को काफी सतर्क रहना पड़ता है। जिससे किसी भी स्तर पर समूह के सदस्यों को उस पर किसी प्रकार की शंका न होने पाए, अन्यथा समूह के सदस्यों के व्यवहार में औपचारिकता एवं कृत्रिमता आ जाएगी और अनुसंधानकर्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति करने में असफल रहेगा। गुड तथा हैट के अनुसार, “इस प्रविधि का प्रयोग तभी किया जा सकता है जबकि अवलोकनकर्ता अपने उद्देश्य को प्रकट किए बिना उसी समूह का सदस्य मान लिया जाता है।”