समाजशास्त्र तथा अन्य सभी सामाजिक विज्ञानों में कुछ पद्धतियों (Method) एवं यंत्रों (Tool or Technique) का प्रयोग किया जाता है। पद्धति हमारे अनुसंधान को दृष्टिकोण प्रदान करती है तथा अनुसंधान के सभी चरणों में सहायता प्रदान करती है। यह अनुसंधान करने वाले का मार्गदर्शन करती है। तथा उसे वास्तविकता को देखने तक एक विशिष्ट नजरिया प्रदान करती है। इसके विपरीत, यंत्र अथवा तकनीक केवल आँकड़ों के संकलन का एक माध्यम मात्र है। यह केवल अनुसंधान के एक चरण अर्थात् तथ्यों या आँकड़ों के संकलन से संबंधित है।
पद्धति का अर्थ एवं परिभाषाएँ
पद्धति वह तरीका है, जिसको अपनाकर एक अनुसंधानकर्ता अपना अध्ययन करता है। विभिन्न विद्वानों ने पद्धति को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है–
वुल्फ (Wolfe) के मतानुसार-“विस्तृत अर्थ में कोई भी अनुसंधान पद्धति, जिसके द्वारा विज्ञान का निर्माण हुआ हो अथवा उसका विस्तार किया जा रहा हो, वैज्ञानिक पद्धति कहलाती है।”
लुडबर्ग (Lundberg) के विचारानुसार-“वैज्ञानिक पद्धति में समंकों का क्रमबद्ध अवलोकन, वर्गीकरण तथा निर्वाचन सम्मिलित है। हमारे प्रतिदिन के निष्कर्षों तथा वैज्ञानिक पद्धति में अंतर; उसके स्वरूप, दृढ़ता, सत्यापन किए जाने की शक्ति, योग्यता तथा विश्वसनीयता के आधार हैं।”
‘एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका’ (Encyclopaedia Britanica) के अनुसार-“वैज्ञानिक पद्धति एवं विभिन्न प्रक्रियाओं का संकेत करने वाला एक समूहवाचक पद है, जिसकी सहायता से विज्ञान बनाए गए हैं। विस्तृत अर्थों में खोज की कोई भी विधि वैज्ञानिक पद्धति कहला सकती है, जिसके द्वारा वैज्ञानिक तटस्थ और व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त कर सकता है।”
बर्टेड (Bertrand) के अनुसार-“प्रकृति में नियमितता के निर्धारण और वर्गीकरण में प्रयुक्त प्रणाली को वैज्ञानिक पद्धति कहा जाता है।”
गुड एवं हैट (Goode and Hatt) के अनुसार–“जब विज्ञान की आधारभूत बातों को समाजशास्त्र के क्षेत्र में लागू किया जाता है तो उसे समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति कहते हैं।’
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि पद्धति एक ऐसा उपकरण या माध्यम है, जिसके द्वारा वैज्ञानिक अपना अध्ययन करता है। यह संपूर्ण अध्ययन को दृष्टिकोण प्रदान करती है।
पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ
पद्धति में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ पायी जाती हैं-
⦁ सत्यापन तथा उसकी परीक्षा-वैज्ञानिक पद्धति द्वारा जो भी निष्कर्ष निकाले जाते हैं, वे सत्य होते हैं। किसी भी प्रकार का संदेह होने पर भविष्य में भी उनकी सत्यता की परीक्षा की जाती है।
⦁ सुनिश्चितता–वैज्ञानिक पद्धति पूर्णत: सुनिश्चित होती है और उसका प्रयोग कोई भी व्यक्ति कर सकता है। इसके सुस्पष्ट चरण हैं, जिनके बारे में किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं पाया जाता है।
⦁ निष्पक्षता–वैज्ञानिक पद्धति में अध्ययनकर्ता अपने स्वयं के विचारों से प्रभावित नहीं होता वरन् वह निष्पक्ष भाव से अपने अवलोकन के आधार पर ही निष्कर्षों का निर्माण करता है।
⦁ सार्वभौमिकता-वैज्ञानिक पद्धति तथ्य विशेष पर लागू नहीं होती बल्कि वह वर्ग विशेष परे लागू होती है, इसलिए वह सार्वभौमिक होती है। दूसरे शब्दों में, वैज्ञानिक पद्धति का रूप सभी विषयों में एक समान होता है।
⦁ निष्कर्षों का पूर्वानुमान-वैज्ञानिक पद्धति में जिन निष्कर्षों को प्राप्त किया जाता है उनके संबंध में पूर्व अनुमान लगा लिया जाता है। उपकल्पना का निर्माण एक प्रकार से पूर्वानुमान ही है। यदि यह (पूर्वानुमान) प्रमाणित हो जाता है तो निष्कर्ष बन जाता है।
⦁ भविष्यवाणी–वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत किसी तथ्य के संबंध में भविष्यवाणी की जा सकती है। क्योंकि इसमें कार्य-कारण संबंधों का पता चल जाता है इसलिए आने वाले समय में अनुमान भी लगाया जा सकता है।
समाजशास्त्र में प्रयुक्त प्रमुख पद्धतियाँ
आज समाशास्त्र में निम्नलिखित पद्धतियों का मुख्यत: प्रयोग किया जाता ह-
⦁ ऐतिहासिक पद्धति-इस पद्धति के द्वारा अध्ययन की विषय-वस्तु के इतिहास तथा उसके विकास का पूर्ण अध्ययन किया जाता है और उस अध्ययन के आधार पर ही विषय-वस्तु के संबंध में अनेक नवीन खोजें की जाती हैं। यह विधि अतीत का अध्ययन करने की सर्वोत्तम पद्धति है।
⦁ तुलनात्मक पद्धति–इस पद्धति के द्वारा विभिन्न विषयों पर परस्पर तुलना की जाती है। इस तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर विषयों से संबंधित अनेक नवीन तथ्यों की खोज की जाती है।
⦁ आगमन तथा निगमन पद्धति-आगमन पद्धति में विशिष्ट इकाइयों का अध्ययन करके सामान्य सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है और निगमन पद्धति में सामान्य सिद्धांतों को विशिष्ट इकाइयों पर लागू किया जाता है।
⦁ संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक पद्धति–संरचनात्मक पद्धति में किसी विषय की संरचना का विश्लेषण करके उन तत्त्वों की खोज की जाती है, जो विषय की संरचना में मुख्य रूप से योगदान देते हैं। प्रकार्यात्मक पद्धति में किसी समग्र के किसी एक विशेष अंग या भाग का अध्ययन किया जाता है। वह अंग उस समग्र को बनाए रखने में जो योगदान देता है,उसे ही उसका प्रकार्य कहते हैं।
इन पद्धतियों के अतिरिक्त, समाजशास्त्र में संघर्ष पद्धति, व्यवस्थात्मक पद्धति, व्यवहारात्मक पद्धति, अंत-क्रियात्मक पद्धति इत्यादि का भी प्रयोग किया जाता है।
यंत्र या तकनीक का अर्थ एवं परिभाषा
यंत्र एक प्रकार से एक ऐसी युक्ति है, जिसका सहारा लेकर एक वैज्ञानिक अथवा समाजशास्त्री अपनी अध्ययन-वस्तु के संबंध में अनेक तंथ्यों का संकलन करता है। इसलिए गुड तथा हैट ने कहा है कि यंत्रों में वे विशिष्ट प्रणालियाँ सम्मिलित हैं जिनके द्वारा समाजशास्त्री अपने समंकों को एकत्रित और व्यवस्थित करता है। इस प्रकार यंत्र शोध कार्य में सहायता देने वाले तथ्यों को संकलन करने की एक प्रणाली का नाम है।
यंत्र यो तकनीक की प्रमुख विशेषताएँ
यंत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
⦁ विषय-सामग्री के संकलन में सहायता-यंत्र एक उपकरण का नाम है, जिसके द्वारा एक समाजशास्त्री अपने क्षेत्र की विषय-सामग्री को संकलित एवं व्यवस्थित करता है। प्रश्नावली, अनुसूची, अवलोकन, साक्षात्कार, वैयक्तिक अध्ययन, समाजमिति इत्यादि ऐसे ही कुछ उपकरण हैं।
⦁ अध्ययन की विषय-वस्तु के अनुसार भिन्नता–यंत्र भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न प्रकार का भी हो सकता है। सामाजिक परिस्थितियों के आधार पर यह निर्णय लेना पड़ता है कि कौन-से यंत्र द्वारा तथ्यों का संकलन किया जाए। उदाहरणार्थ-जनजातियों के अध्ययन में सहभागी अवलोकन यंत्र उपयुक्त माना गया है, जबकि शिक्षित लोगों के अध्ययन में प्रश्नावली सर्वाधिक उपयुक्त यंत्र है।
⦁ सामाजिक विज्ञानों से भिन्नता–भौतिक विज्ञानों की पद्धतियों और सामाजिक विज्ञानों के यंत्रों में अंतर पाया जाता है। क्योंकि सामाजिक-सांस्कृतिक तथा भौतिक घटनाओं की प्रकृति में अंतर है अतः दोनों की अध्ययन पद्धतियाँ भी भिन्न हैं।
⦁ अंतर की कम संभावना-सामाजिक विज्ञानों में प्रयोग किए जाने वाले यंत्रों में बहुत कम अंतर देखने को मिलता है। परस्पर संबंधित विषय होने के कारण इनमें प्रयुक्त यंत्रों में समानता होना स्वाभाविक ही है।
⦁ अनिश्चित प्रकृति-यंत्र अनिश्चित होते हैं। नई-नई समस्याओं का अध्ययन करने के लिए नए-नए यंत्रों का विकास होता है।
⦁ असार्वभौमिकता-यंत्रों का प्रयोग सभी विज्ञानों में नहीं किया जाता और यंत्रों के स्वरूपों में अंतर पाया जाता है।
⦁ सामग्री का संकलन-यंत्र का उद्देश्य केवल सामग्री को एकत्रित करना ही नहीं है अपितु उसको व्यवस्थित करना भी है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यंत्र एक ऐसा उपकरण है जो अनुसंधान में आँकड़े एकत्रित करने में सहायता प्रदान करता है।
पद्धति और यंत्र में अंतर
कुछ लोग पद्धति तथा यंत्र को एक ही समझ लेते हैं जोकि उचित नहीं है। दोनों में निम्नलिखित प्रमुख अंतर पाए जाते हैं-
निष्कर्ष–उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि पद्धति तथा यंत्र दो भिन्नं संकल्पनाएँ हैं। पद्धति अनुसंधान को दृष्टिकोण प्रदान करती है तथा अनुसंधान के सभी चरणों में सहायक होती है। यंत्र का संबंध केवल आँकड़ों के संकलन के उपकरण से है।