साक्षात्कार को सभी प्रकार के अनुसंधानों में मुख्य अथवा पूरक प्रविधि के रूप में अपनाया जाता है। यह इसके महत्त्व का द्योतक है परंतु सामग्री अथवा आँकड़े संकलन करने की अन्य पद्धतियों की भाँति साक्षात्कार के कुछ दोष भी हैं। इसके विभिन्न गुण-दोषों के आधार पर ही इसका मूल्यांकन किया जा सकता है।
साक्षात्कार का महत्त्व या गुण साक्षात्कार के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-
⦁ मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगी–इस पद्धति का सबसे बड़ा महत्त्व इसकी मनोवैज्ञानिक उपयोगिता है। इसमें व्यक्ति के मनोभावों का अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है। साक्षात्कारकर्ता सूचनादाता से समस्या से संबंधित सूचनाएँ ही प्राप्त नहीं करता अपितु वह साक्षात्कारदाता (उत्तरदाता या सूचनादाता) के मन के भावों को भी ‘पहचानने का प्रयास करता है और साथ ही उसके व्यवहार का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करता है। इसलिए इस प्रविधि को साक्षात्कारकर्ता द्वारा सूचनादाता, जो कि अपेक्षाकृत अपरिचित व्यक्ति है, के मन में प्रवेश करने की प्रविधि कहा गया है। अन्य किसी पद्धति द्वारा इस प्रकार का अध्ययन संभव नहीं है।
⦁ अमूर्त घटनाओं का अध्ययन–साक्षात्कार प्रविधि के अंतर्गत मूर्त तथा अमूर्त दोनों प्रकार की घटनाओं का अध्ययन किया जा सकता है। समाज में व्यक्ति की भावनाओं तथा उसके संवेगों एवं मनोवृत्तियों का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये भावनाएँ एवं संवेग अमूर्त होते हैं। इनका अध्ययन करने के लिए साक्षात्कार प्रविधि के अतिरिक्त अन्य कोई प्रविधि उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इस प्रविधि में साक्षात्कारकर्ता तथा साक्षात्कारदाता का प्रत्यक्ष संपर्क होता है, इसलिए दोनों एक-दूसरे के मनोभावों तथा संवेगों को जानने का प्रयास करते हैं। दोनों एक-दूसरे के व्यवहार को भी जानने का प्रयास करते हैं। साक्षात्कारकर्ता क्योंकि प्रशिक्षित होता है, इसलिए उत्तरदाता के मनोभावों तथा संवेगों का सरलता से अनुमान लगा सकता है।
⦁ मर्मभेदी अध्ययन–समस्या से संबंधित अनेक पहलू अथवा घटनाएँ ऐसी हो सकती हैं, जो मर्मभेदी होने के कारण नहीं देखी जा सकतीं। सामान्यतया सूचनादाता के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित अनेक बातों की जानकारी अवलोकन इत्यादि द्वारा प्राप्त नहीं हो सकती, अपितु ऐसे गोपनीय विषयों के बारे में सूचना प्राप्त करने की एकमात्र पद्धति साक्षात्कार ही है।
⦁ भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन–साक्षात्कार प्रविधि में भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन करना भी संभव है। साक्षात्कारदाता के जीवन में बहुत-सी घटनाएँ घटित होती हैं, जिनकी पुनरावृत्ति भी संभव नहीं है। इन घटनाओं का अध्ययन करने के लिए साक्षात्कार प्रविधि ही सर्वोत्तम है। साक्षात्कारदाता साक्षात्कारकर्ता से अपनी भूतकालीन घटनाओं का वर्णन कर सकता है। इस प्रकार के वर्णन से वह साक्षात्कारकर्ता को भूतकालीन घटनाओं से परिचित कराता है। यदि साक्षात्कारदाता इस प्रकार की घटनाओं से साक्षात्कारकर्ता को परिचित न कराए तो उन घटनाओं का अध्ययन करना ही अंसभव हो जाए; क्योंकि उन घटनाओं का अन्य किसी व्यक्ति को पता नहीं होता है और उनके पुनः घटित होने की संभावना भी बहुत कम होती है।
⦁ विस्तृत सूचनाओं की प्राप्ति–साक्षात्कार प्रविधि में व्यक्तियों से विस्तृत सूचनाएँ एकत्रित की जा सकती हैं, चाहे वे समाज के किसी भी वर्ग से संबंधित क्यों न हों। इसलिए इस प्रकार का अध्ययन शिक्षित, अशिक्षित, ग्रामीण, नगरीय सभी स्तर के लोगों में किया जा सकता है। साक्षात्कार प्रविधि विस्तृत सूचनाओं की प्राप्ति की सबसे सरल मार्ग है, क्योंकि जो सूचनादाता प्रश्नों को नहीं समझते, अनुसंधानकर्ता उन प्रश्नों को उन्हें समझाकर उनके उत्तर प्राप्त कर लेता है।
⦁ सभी स्तर के व्यक्तियों का अध्ययन–विस्तृत सूचनाओं की प्राप्ति के साथ-साथ साक्षात्कार * सभी प्रकार के सूचनादाताओं से सूचना एकत्रित करने की एक प्रमुख प्रविधि है। क्योंकि इसमें साक्षात्कारकर्ता को ही साक्षात्कार से प्राप्त सूचनाएँ अंकित करनी होती हैं, इसलिए सूचनादाताओं को पढ़ा-लिखा होना अनिवार्य नहीं है। यह प्रविधि वास्तव में सभी स्तर के तथा सभी प्रकार की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों से सूचना संकलित करने में अत्यंत उपयोगी है।
⦁ विचारों के आदान-प्रदान की सुविधा-साक्षात्कार प्रविधि में साक्षात्कारकर्ता तथा साक्षात्कारदाता के बीच विचारों का आदान-प्रदान होता है। सूचनाओं की प्राप्ति में जो भी विलंब यो शंका होती है, उसका समाधान साथ-ही-साथ हो जाता है। विचारों के आदान-प्रदान से इस प्रकार के संत्य सामने आ जाते हैं, जिनका परिचय अन्य किसी प्रविधि से नहीं हो सकता है। इस प्रकार साक्षात्कार प्रविधि में द्वंद्ववाद के माध्यम से साक्षात्कारदाता तथा साक्षात्कारकर्ता एक-दूसरे के विचारों से अवगत होते हैं और विचार-विमर्श करके किसी एक निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं।
⦁ सूचनाओं की विश्वसनीयता-साक्षात्कार प्रविधि में साक्षात्कारदाता से जो सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं उनकी विश्वसनीयता की परीक्षा भी की जा सकती है। इन सूचनाओं की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से विभिन्न के अन्वेषक प्रश्न पूछता है और उनके उत्तरों से पूर्व दिए गए उत्तरों की जाँच कर लेता है। साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता के मन के भाव को पहचानकर सूचनाओं की सत्यता की परीक्षा कर सकता है। साथ ही वह साक्षात्कार के समय थोड़ा-बहुत अवलोकन करके सूचनाओं की विश्वसनीयता को परख लेता है।
⦁ पारस्परिक प्रेरणा—नए तथ्यों की प्राप्ति के लिए पारस्परिक प्रेरणा का तत्त्व महत्त्वपूर्ण होता है। साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता सूचनादाता के सामने होता है, इसलिए वह निरंतर सूचनादाता को वार्तालाप की प्रेरणा देकर विषय से संबंधित सूचनाएँ प्राप्त करता है। सूचनादाता भी साक्ष्ज्ञात्कारकर्ता को अनेक ऐसे पहलुओं की जानकारी देता है, जिनके बारे में हो सकता है कि वह पहले से न जानता हो। अतः यह पारस्परिक प्रेरणा पर आधारित होने के कारण एक अत्यंत उपयोग प्रविधि है।
साक्षात्कार की सीमाएँ या दोष
सामाजिक अनुसंधान में साक्षात्कार पद्धति अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हुए भी पूर्णतया दोषमुक्त नहीं है। इसकी कुछ अपनी ही सीमाएँ हैं, जो निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत स्पष्ट की जा सकती हैं-
⦁ दोषपूर्ण स्मरण-शक्ति–साक्षात्कार पद्धति में सामान्यतः साक्षात्कार के परिणामों को घटनास्थल पर ही नहीं लिखा जाता। यदि अनौपचारिक व गहन अध्ययन के उद्देश्य से साक्षात्कार किया जा रहा है तो वार्तालाप को उसी समय नहीं लिखा जाता। जब साक्षात्कारकर्ता बाद में इन्हें लिखने बैठता है तो हो सकता है कि दोषपूर्ण स्मरण-शक्ति के कारण वह महत्त्वपूर्ण तथ्यों को लिखना ही भूल जाए।
⦁ अप्रमाणित सूचनाएँ—यदि साक्षात्कारदाता गलत सूचनाएँ देता है तो उन्हें प्रमाणित करने का कोई उपाय नहीं है। कई बार साक्षात्कारकर्ता भी सूचनादाता के साथ पक्षपात करने के कारण उसके द्वारा दी गई सूचनाओं को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करता है।
⦁ अवैज्ञानिक पद्धति–साक्षात्कार को ‘अनेक विद्वान वैज्ञानिक पद्धति स्वीकार नहीं करते हैं। एक तो इसमें अमूर्त तत्त्वों; जैसे सूचनादाता के संवेगों व भावनाओं का विश्लेषण किया जाता है। जो कि वैज्ञानिक नहीं हो सकता। दूसरे, साक्षात्कार करने तथा प्रतिवेदन तैयार करने में होने वाली देरी भी इसे अवैज्ञानिक बना देती है; क्योंकि कई बार महत्त्वपूर्ण तथ्य छूट जाते हैं। तीसरे, इसमें सूचनादाता की इधर-उधर की बातें ज्चादा सुननी पड़ती हैं।
⦁ कुशल साक्षात्कारकर्ताओं का अभाव–साक्षात्कार पद्धति का एक अन्य दोष कुशल साक्षात्कारकर्ताओं का अभाव है। एक तो अच्छे व प्रशिक्षित साक्षात्कारकर्ता मिलते ही नहीं हैं। और दूसरे यदि उन्हें प्रशिक्षण देकर कुशल बनाया भी जाता है तो वे बची में ही अपना काम छोड़कर चले जाते हैं। इससे एकत्रित सूचनाओं की विश्वसनीयता कम हो जाती है।
⦁ साक्षात्कारदाता की हीनता-कई बार साक्षात्कारकर्ता का व्यक्तित्व सूचनादाताओं पर इस प्रकार का प्रभाव छोड़ता है कि उनमें हीनता की भावना आ जाती है। इस हीनता की भावना के कारण वे बहुत-सी बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। इससे सूचनाओं की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
⦁ सामाजिक स्थिति में अंतर–सामाजिक अनुसंधान में साक्षात्कारकर्ता तथा साक्षात्कारदाता की सामाजिक स्थिति में यदि समानता है तो उत्तर ही सरलता से प्राप्त नहीं हो जाते, अपितु वे अधिक विश्वसनीय भी होते हैं। परंतु अधिकतर साक्षात्कारकर्ता और साक्षात्कारदाता की सामाजिक स्थिति में अत्यधिक अंतर पाया जाता है, इसके कारण उपयुक्त स्तर पर वार्तालाप करने में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ पैदा हो जाती हैं।
⦁ महत्त्वपूर्ण अनुभवों की उपेक्षा–साक्षात्कार द्वारा अध्ययन करने में अनुसंधानकर्ता को सूचनादाताओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है। वे कई बार महत्त्वपूर्ण पक्षों पर सूचना ही नहीं देते और कई बार साक्षात्कारकर्ता ही प्रशिक्षित व अनुभवी न होने के कारण महत्त्वपूर्ण तथ्यों की उपेक्षा कर देता है। इससे निष्कर्ष प्रभावित होते हैं।
⦁ अधिक समय-साक्षात्कार पद्धति में साक्षात्कारकर्ता को प्रत्येक सूचनादाता से प्रत्यक्ष एवं व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करना पड़ता है। अनेक बार एक सूचनादाता के पास जाने के बाद वह साक्षात्कार के लिए राजी हो पाता है। कई बार तो निर्धारित समय पर वह मिलता ही नहीं है। इस सारी प्रक्रिया में अनुसंधानकर्ता का अत्यधिक समय बरबाद हो जाता है।
⦁ अधिक खर्चीली-अत्यधिक समय के साथ-साथ साक्षात्कार पद्धति अधिक खर्चीली भी है, क्योंकि प्रत्येक सूचनादाता से सम्पर्क स्थापित करने के लिए बार-बार जाने में पैसा भी काफी खर्च हो जाता है। निदर्शन के लिए जिस स्रोत का प्रयोग किया गया है, उसमें लिखे पते भी कई बार बदल गए होते हैं; अर्थात् कई सूचनादाता अपना निवास बदल लेते हैं, जिससे उनके साथ संपर्क स्थापित करने में काफी पैसा लग जाता है।
⦁ सूचनादाता द्वारा अनुपयोगी भाषण–साक्षात्कार पद्धति में अनुसंधानकर्ता पूरी तरह से सूचनादाताओं पर निर्भर रहता है। कई सूचनादाता अनुपयोगी भाषण अधिक देते हैं और काम की बात कम करते हैं।
निष्कर्ष–उपर्युक्त दोषों का अर्थ यह कदापि नहीं है कि साक्षात्कार एक अनुपयोगी पद्धति है। यदि अनुसंधानकर्ता प्रशिक्षित व कुशल है, सूचनादाता से ठीक प्रकार से संपर्क स्थापित करता है तो इसके अनेक दोष स्वत: ही दूर हो जाते हैं। साक्षात्कार आज तक अत्यंत उपयोगी पद्धति मानी जाती रही है।