क्षेत्रीय कार्य को एक कठोर वैज्ञानिक पद्धति के रूप में स्वीकार किया जाता है। समाजशास्त्र तथा सामाजिक मानवशास्त्र में आज क्षेत्रीय कार्य पर आधारित अध्ययनों को प्राथमिकता दी जाने लगी है। पहले मानवशास्त्र में जो अध्ययन किए जाते थे वे क्षेत्रीय कार्य पर आधारित न होकर पुस्तकालय में उपलब्ध द्वितीयक स्रातों पर आधारित होते थे। इन स्रोतों के आधार पर किए गए अध्ययनों को पुस्तकीय दृष्टिकोण द्वारा किए गए अध्ययन कहा जाता है। अध्ययन का यह दृष्टिकोण आदर्शात्मक दृष्टिकोण, दर्शनशास्त्रीय दृष्टिकोण या भारतीय विद्याशास्त्रीय दृष्टिकोण भी कहा जाता है। क्षेत्रीय कार्य के आधार पर किए गए अध्ययनों को क्षेत्राधारित दृष्टिकोण द्वारा किए गए अध्ययन कहते हैं।
क्षेत्रीय कार्य का अर्थ
क्षेत्रीय कार्य अध्ययन की वह पद्धति है जो समाज की वर्तमान यथार्थता को क्षेत्र में जाकर समझने पर महत्त्व देती है। उदाहरणार्थ-यदि भारतीय समाज को समझने हेतु क्षेत्रीय वास्तविकता को आधार माना जाता है अर्थात् जिस प्रकार का समाज विद्यमान है उसका उसी यथार्थ रूप में चित्रण करने का प्रयास किया जाता है तो यह चित्रण क्षेत्रीय कार्य पर होगा। क्षेत्रीय कार्य में आनुभविक अनुसंधान पर आधारित अध्ययनों की महत्ता को स्वीकार किया जाता है। इसमें आनुभविक या प्रयोगसिद्ध अनुसंधान के आधार पर जो क्षेत्रीय आँकड़े संकलित किए जाते हैं जिन्हें प्राथमिक आँकड़े भी कहा जाता है। प्राथमिक आँकड़े वे सूचनाएँ होती हैं, जिन्हें अनुसंधानकर्ता प्रयोग में लाने के लिए पहली बार स्वयं एकत्रित करता है। ये आँकड़े मौलिक होते हैं। प्राथमिक आँकड़े अनुसंधानकर्ता द्वारा स्वयं अनुसंधान क्षेत्र में जाकर एकत्रित किए जाते हैं। अध्ययनकर्ता इस प्रकार के आँकड़ों का संकलन सहभागी एवं असहभागी अवलोकन, साक्षात्कार, अनुसूची तथा प्रश्नावली इत्यादि के माध्यम से करता है। प्राथमिक आँकड़े अधिक प्रमाणित एवं विश्वसनीय माने जाते हैं।
समाजशास्त्र में क्षेत्रीय कार्य का महत्त्व
समाजशास्त्र एवं सामाजिक मानवशास्त्र में बहुत-से समुदाय या भौगोलिक स्थान क्षेत्रीय कार्य के प्रतिष्ठित उदाहरणों से संबंधित होने के कारण इन विषयों में काफी लोकप्रिय बन गए हैं। क्षेत्रीय कार्य में सामान्यत: अनुसंधानकर्ता अध्ययनरत् समुदाय में रह रहे सभी लोगों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करता है। क्षेत्रीय कार्य की पद्धति को प्रतिस्थापित करने का श्रेय मैलिनोव्स्की को दिया जाता है जिन्होंने प्रथम युद्ध के समय ऑस्ट्रेलिया की जनजातियों तथा दक्षिणी प्रशांत के द्वीपों (मुख्य रूप से ट्रोबियाण्ड द्वीपों) के मूल निवासियों का अध्ययन किया। इसके पश्चात् रैडक्लिफ-ब्राउन ने अंडमान व निकाबोर द्वीपों का अध्ययन किया। ईवान्स प्रिचार्ड द्वारा सूडान में न्यूर, फ्रांज बोआस द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में विभिन्न मूल अमेरिकन जनजातियों, मारग्रेट मीड द्वारा समोआ तथा क्लीफोर्ड गीट्स द्वारा बाली में किए गए अध्ययन भी क्षेत्रीय कार्य के आधार पर किए गए अध्ययनों में प्रमुख माने जाते हैं। विलियम वाइजर, ऑस्कर लेविस जैसे विदेशी विद्वानों तथा एम०एन० श्रीनिवास एवं एस०सी० दुबे इत्यादि भारतीय समाजशास्त्रियों द्वारा भी गाँव के क्षेत्रीय कार्य पद्धति द्वारा अध्ययन किए गए हैं। इन अध्ययनों तथा मानवशास्त्री अध्ययनों में मूल अंतर यह है कि समाजशास्त्री अध्ययनों में असहभागी अवलोकन पद्धति अथवा अर्द्ध-सहभागी अवलोकन पद्धति को अपनाया गया है, जबकि मानवशास्त्री अध्ययनों में सहभागी अवलोकन की पद्धति को। समाजशास्त्र में क्षेत्रीय कार्य पर आधारित अध्ययन गाँव को समझने तथा उनको यथार्थ चित्र प्रस्तुत करने में काफी सहायक रहे हैं।