पहले जब मानव सभ्यता का विकास प्रारंभ नहीं हुआ था तो व्यक्ति प्राकृतिक जीवन व्यतीत करता था। मानव सभ्यता के शनैः शनैः विकास के परिणामस्वरूप मानव ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पर्यावरण से छेड़छाड़ करना प्रारंभ कर दिया। जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास होता गया, मानव की आवश्यकताएँ बढ़ती गईं तथा पर्यावरण से छेड़छाड़ भी उसी अनुपात में अधिक होने लगा। इसी का परिणाम प्रदूषण के रूप में सामने आया है। इसीलिए पर्यावरणीय प्रदूषण को एक नवीन संकल्पना माना जाता है।
भौतिक विकास को अत्यधिक महत्त्व दिया जाने लगा जिसके परिणामस्वरूप फ्रकृति का भंडार समाप्त होने लगा। मानव सभ्यता के विकास के फलस्वरूप ही भारी उद्योगों एवं बड़े-बड़े बाँधों के निर्माण में तेजी आई तथा इनसे प्रकृति के घटकों का संतुलन बिगड़ना प्रारंभ हो गया। ऐसा लगता है कि प्रदूषण वह कीमत है जो मानव सभ्यता के विकास हेतु सभी समाजों को चुकानी पड़ती है। ऊर्जा के स्रोतों के रूप में आज आणविक एवं ताप बिजलीघरों का निर्माण किया जा रहा है जिनसे निकलने वाली गैसें अधिक खतरनाक होती हैं। भोपाल गैस कांड जैसे कई कांड इसके दुष्परिणामों के उदाहरण हैं। कई विद्वान ऐसा भी मानते हैं कि पर्यावरण प्रदूषण मानव सभ्यता के विकास की वह कीमत है जो उसे विकास के नाम पर चुकानी पड़ती है।