जाति की कुछ परिभाषाएँ ऐसी हैं जो जाति के साथ-साथ जनजाति पर भी लागू होती हैं। इन परिभाषाओं को ही जाति की सामाजिक मानवशास्त्रीय परिभाषा कहते हैं। उदाहरणार्थ-रिजले ने अपनी पुस्तक ‘दि पीपुल ऑफ इंडिया’ में जाति को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “यह परिवार या कई परिवारों का संकलन है जिसको एक सामान्य नाम दिया गया है, जो किसी काल्पनिक पुरुष या देवता से अपनी उत्पत्ति मानता है तथा पैतृक व्यवसाय को स्वीकार करता है और जो लोग विचार कर सकते हैं उन लोगों के लिए एक सजातीय समूह के रूप में स्पष्ट होता है। यह एक ऐसी परिभाषा है। जो दी तो गई है जाति के संदर्भ में, परंतु जनजाति पर भी लागू होती है। जनजाति भी अनेक परिवारों का एक समूह है जिसका एक विशिष्ट नाम होता है। जनजाति के लोग भी अपनी उत्पत्ति किसी देवी-देवता से मानते हैं, निश्चित व्यवसाय करते हैं तथा सजातीय समूह का निर्माण करते हैं।