भारतीय संस्कृति तथा समाज का एक लंबा इतिहास है। इसे बनाए रखने में इसकी संरचनात्मक विशिष्टताओं एवं प्रमुख परपंराओं का विशेष योगदान रहा है। प्राचीनता, स्थायित्व, सहिष्णुता, अनुकूलनशीलता, सर्वांगीणता, ग्रहणशीलता एवं आशावादी प्रकृति भारतीय संस्कृति तथा समाज की प्रमुख विशिष्टताएँ हैं। हजारों वर्षों में हुए परिवर्तन के बावजूद ये विशिष्टताएँ यथावत् बनी। हुई हैं। विभिन्न विद्वानों ने भारतीय संस्कृति तथा समाज की अलग-अलग विशिष्टताओं का उल्लेख किया हैं एम०एन० श्रीनिवास ने सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता पर बल दिया है तो ड्युमो ने श्रेणीबद्धता को प्रमुख माना है। योगेन्द्र सिंह ने श्रेणीबद्धता, समग्रवाद, निरंतरता तथा लोकातीतत्व को प्रमुख माना है।
मैंडलबानी ने भारतीय संस्कृति तथा समाज को समझने के लिए दो संकल्पनाओं को। इसकी कुंजी के समान माना है- जाति तथा धर्म। जाति तथा धर्म ने परिवर्तनों के बावजूद न केवल । अपने स्वरूप को बनाए रखा है, अपितु नवीन गुण भी ग्रहण किए हैं। इसी को डी०पी० मुकर्जी ने ‘जीवंत परंपरा’कहा है। भारतीय संस्कृति तथा समाज की विशिष्टताएँ समय के साथ-साथ परिवर्तन की संवेदनशीलता से जुड़ी रही हैं। इसीलिए भारतीय समाज की सभी संरचनात्मक विशिष्टताएँ आज भी किसी-न-किसी रूप में विद्यमान हैं।