ए० आर० देसाई ने ‘दि मिथ ऑफ दि वेलफेयर स्टेट’ नामक लेख में कल्याणकारी राज्य की विसतृत विवेचना की है। कल्याणकारी राज्य जनता के कल्याण के लिए नीतियों को बनाता तथा लागू करता है। ऐसा राज्य गरीबी, सामाजिक भेदभाव से मुक्ति तथा अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखता है तथा असमानताओं को दूर करने के लिए तथा सबके लिए रोजगार उपलब्ध कराने हेतु हर संभव कदम उठाता है। देसाई ने कल्याणकारी राज्य की निम्नलिखित तीन प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया है –
⦁ कल्याणकारी राज्य सकारात्मक राज्य होता है अर्थात् वह कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने के न्यूनतम कार्य ही नहीं करता, अपितु हस्तक्षेपीय राज्य होने के नाते समाज की बेहतरी के लिए सामाजिक नीतियों को तैयार करने तथा लागू करने हेतु भी अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है।
⦁ कल्याणकारी राज्य लोकतांत्रिक राज्य होता है। बहुदलीय चुनाव इस प्रकार के राज्य की पारिभाषिक विशेषता है। इसी दृष्टि से समाजवादी तथा साम्यवादी राज्यों से भिन्न है।
⦁ कल्याणकारी राज्य ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था’ वाला राज्य होता है अर्थात् ऐसे राज्य की अर्थव्यवस्था में निजी पूँजीवादी कंपनियाँ तथा सार्वजनिक कंपनियों दोनों एक साथ कार्य करती हैं। एक कल्याणकारी राज्य न तो पूँजीवादी बाजार को ही खत्म करना चाहता है और न ही यह उद्योगों तथा दूसरे क्षेत्रों में जनता को निवेश करने से रोकता है। यह जरूरत की वस्तुओं और सामाजिक अधिसंरचना पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि उपभोक्ता वस्तुओं पर निजी उद्योगों का वर्चस्व होता है।
ए०आर० देसाई कल्याणकारी राज्य के द्वारा दिए गए दावों की आलोचना करते हैं। उनका मत है कि ब्रिटेन, अमेरिका तथा यूरोप के अधिकांश राज्य अपने आप को कल्याणकारी राज्य कहते हैं परंतु वे अपने नागरिकों को निम्नतम आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षा देने में असफल रहे हैं। वे आर्थिक असमानताओं को कम करने में भी विफल रहे हैं। तथाकथित कल्याणकारी राज्य बाजार के उतार-चढ़ाव से मुक्त स्थायी विकास करने में भी असफल रहे हैं। अतिरिक्त धन की उपस्थिति तथा अत्यधिक बेरोजगारी इसकी कुछ अन्य असफलताएँ हैं। अपने इन तक के आधार पर देसाई ने यह निष्कर्ष निकाला कि कल्याणकारी राज्य द्वारा मानव कल्याण हेतु किए जाने वाले दावे खोखले हैं तथा कल्याणकारी राज्य की सोच एक भ्रम है।