डी०पी० मुकर्जी के अनुसार जीवंत परंपरा से तात्पर्य उस परंपरा से है जो भूतकाल से कुछ ग्रहण कर एक ओर उससे अपने संबंध बनाए रखती है तो दूसरी ओर नई चीजों को भी ग्रहण करती है। अत: एक जीवंत परंपरा पुराने तथा नए तत्त्वों का मिश्रण है। जीवंत परंपरा के उदाहरण हमउम्र के बच्चों द्वारा खेले जाने वाले खेलों, पुरुषों एवं स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाले पहनावों, जाति एवं धर्म जैसी संस्थाओं में स्पष्ट रूप में देखे जा सकते हैं। आज से 50-60 वर्ष (लगभग दो पीढ़ी) पहले हमउम्र के बच्चे अपने परिवार में ही खेलते थे क्योंकि परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होती थी तथा परिवार ही मनोरंजन का एक साधन होता था। आज से 25-30 वर्ष पहले हमउम्र के बच्चे पड़ोसी बच्चों के साथ खेलते थे परंतु इस बात का ध्यान रखा जाता था कि लड़कों के साथ लड़के ही खेलें तथा लड़कियों के साथ लड़कियाँ ही खेलें। आज खेलों में इस प्रकार के प्रतिबंध शिथिल हो गए हैं। न केवल खेल के रूप बदल गए हैं, अपितु लिंग जैसे निषेध समाप्त हो गए हैं। बहुत-से-बच्चों ने अपने मनोरंजन का साधन टेलीविजन के प्रोग्राम अथवा कंप्यूटर गेम्स को बना लिया है जिसमें उन्हें हमउम्र साथियों की आवश्यकता ही नहीं रहती।
जाति जैसी संस्था जीवंत परंपरा का प्रमुख उदाहरण है। आज की जाति व्यवस्था तथा आज से 50 वर्ष पूर्व की जाति व्यवस्था में काफी अंतर है। खान-पान एवं सामाजिक सहवास पर आधारित जातीय निषेध समाप्त हो चुके हैं। अंतर्जातीय विवाह होने लगे हैं तथा जाति का अपने परंपरागत व्यवसाय से संबंध काफी सीमा तक टूट गया है। यद्यपि जाति की अधिकांश विशेषताएँ बदल गई हैं, तथापि जाति आज भी एक नए रूप में हमारे सामने है। जाति ने अपने इस रूप को बनाए रखने के लिए राजनीति जैसे आधुनिक पहलुओं को अपना लिया है। राजनीति में आगे आने तथा सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने अथवा इसे बढ़ाने हेतु जातीय एकता तथा समान स्तर की जातियों में एकीकरण की भावना का विकास हुआ है।