Use app×
Join Bloom Tuition
One on One Online Tuition
JEE MAIN 2025 Foundation Course
NEET 2025 Foundation Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
1.1k views
in Psychology by (55.1k points)
closed by

मनोवैज्ञानिक अध्ययनों के लिए अपनायी जाने वाली अन्तर्दर्शन विधि का अर्थ स्पष्ट कीजिए। इस विधि के गुण-दोषों का भी उल्लेख कीजिए।

या

अन्तर्दर्शन विधि द्वारा अध्ययन करते समय प्रस्तुत होने वाली कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए तथा स्पष्ट कीजिए कि इन कठिनाइयों को किस प्रकार दूर किया जा सकता है।

या

मनोविज्ञान की अध्ययन विधियों से आप क्या समझते हैं? अन्तर्दर्शन विधि के गुण अथवा दोष बताइए।

या

अन्तर्दर्शन विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए तथा वर्तमान में इसकी उपयोगिता स्पष्ट कीजिए।

2 Answers

+1 vote
by (52.9k points)
selected by
 
Best answer

मनोविज्ञान के अध्ययन की प्रमुख पद्धतियाँ
(Main Methods of the Study of Psychology)

मनोविज्ञान एके क्रमबद्ध विज्ञान है जिसके अन्तर्गत मानव-व्यवहार को अध्ययन वैज्ञानिक विधियों के आधार पर किया जाता है। गार्डनर मर्फी ने उचित ही कहा है, “मनोविज्ञान अपने अध्ययन (विकास) के लिए बहुत-सी विधियों का प्रयोग करता है।”

आधुनिक मनोविज्ञान अपनी विषय-वस्तु अर्थात् व्यवहार तथा मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए जिन प्रमुख विधियों को अपनाता है, उनमें से चार प्रमुख विधियाँ निम्न प्रकार हैं
⦁    अन्तर्दर्शन विधि (Introspection Method)
⦁    निरीक्षण विधि (Observation Method)
⦁    प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method) तथा
⦁    नैदानिक विधि (Clinical Method)

अन्तर्दर्शन विधि (Introspection Method)
अन्तर्दर्शन विधि, मनोवैज्ञानिक अध्ययन की सबसे प्राचीन एवं विशिष्ट विधि है, जिसे ‘अन्तर्निरीक्षण’ या ‘आन्तरिक प्रत्यक्षीकरण के नाम से भी जाना जाता है। इस विधि का प्रयोग प्रारम्भ में मनोवैज्ञानिकों द्वारा किसी नयी मनोवैज्ञानिक घटना की खोज के लिए किया जाता था।

अन्तर्दर्शन का अर्थ – अन्तर्दर्शन का अर्थ है-‘अपने अन्दर झाँककर देखना’ या अपनी मन:-स्थिति को गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करना।’ अन्तर्दर्शन विधि के माध्यम से कोई व्यक्ति स्वयं की मानसिक क्रियाओं, अनुभवों अथवा व्यवहारों का आत्म-निरीक्षण कर सकता है तथा उनका वर्णन प्रस्तुत कर सकता है। उदाहरण के लिए—कोई व्यक्ति चिन्ता या शंकाग्रस्त है या आनन्द का अनुभव कर रहा है, इन तथ्यों का विवरण व्यक्ति स्वयं अन्तर्दर्शन द्वारा ही प्रस्तुत करता है।
अन्तर्दर्शन की परिभाषा – मनोवैज्ञानिकों द्वारा अन्तर्दर्शन को अग्र प्रकार परिभाषित किया गया है –
(1) टिचनर के मतानुसार, “अन्तर्दर्शन अन्दर झाँकना है।”
(2) मैक्डूगल के शब्दों में, “अन्तर्दर्शन करने का अर्थ है-क्रमबद्ध रूप से अपने मन की कार्य-प्रणाली का सुव्यवस्थित अध्ययन करना।”
(3) स्टाउट ने लिखा है, “क्रमबद्ध रीति से अपने मस्तिष्क के कार्य व्यापारों का निरीक्षण करना ही अन्तर्निरीक्षण (अन्तर्दर्शन) है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि अन्तर्दर्शन विधि में व्यक्ति अपने अन्दर की क्रियाओं का स्वयं ही निरीक्षण करता है। निरीक्षण के उपरान्त वह क्रिया-प्रतिक्रिया की अनुभूति का प्रकटीकरण भी स्वयं ही करता है। अन्तर्दर्शन विधि का एक सही अर्थ विस्तारपूर्वक वुडवर्थ ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है-“जब कोई व्यक्ति हमें अपने विचारों, भावनाओं तथा उद्देश्यों के विषय में आन्तरिक सूचना प्रदान करती है कि वह क्या देखता है, सुनता है। जानती है तो वह अपनी प्रतिक्रियाओं का अन्तर्दर्शन कर रहा होता है।” स्पष्ट है कि अन्तर्दर्शन विधि में किसी बाहरी अध्ययनकर्ता या उपकरण आदि की आवश्यकता नहीं होती है।

अन्तर्दर्शन विधि के गुण या लाभ(Merits of Introspection Method)
मनोवैज्ञानिक अध्ययन की पद्धतियों में अन्तर्दर्शन विधि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह मनोवैज्ञानिक अध्ययन की एक मौलिक विधि है। इस विधि के गुण अथवा लाभों को निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है

(1) मानसिक क्रियाओं के ज्ञान में सहायक – मनोवैज्ञानिक अध्ययन के लिए पात्र (व्यक्ति) की मानसिक क्रियाओं का ज्ञान होना आवश्यक है। पात्र की विभिन्न मानसिक क्रियाओं; जैसे– कल्पना, स्मृति, अवंधान एवं चिन्तन का सुव्यवस्थित ज्ञान प्राप्त करने में अन्तर्दर्शन विधि ही सर्वाधिक उपयुक्त विधि मानी जाती है।
(2) अनुभवों तथा भावनाओं के ज्ञान में सहायक – किसी व्यक्ति के अनुभवों तथा भावनाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अन्तर्दर्शन विधि का सहारा लिया जाता है। मनुष्य के जीवन से जुड़ी अनेक समस्याओं के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तथा समाधान तक पहुँचने के लिए उसके निजी अनुभवों तथा भावनाओं को जानना आवश्यक है। निजी अनुभव तथा भाव नितान्त व्यक्तिगत एवं आन्तरिक तथ्य हैं। जिन्हें निरीक्षण अथवा प्रयोग विधि के माध्यम से ज्ञात नहीं किया जा सकता, केवल अन्तर्दर्शन विधि ही इन्हें जानने की एकमात्र उपयुक्त उपाय है।
(3) अतृप्त इच्छाओं तथा कुण्ठाओं के ज्ञान में सहायक – मनुष्य की इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है और इच्छाओं की सन्तुष्टि के साधन सीमित हैं। इस प्रकारे मनुष्य की कुछ इच्छाएँ सन्तुष्ट हो जाती हैं तो बहुत-सी इच्छाएँ अतृप्त रह जाती हैं। इन अतृप्त इच्छाओं या दमित इच्छाओं का ज्ञान अन्तर्दर्शन विधि के द्वारा ही सम्भव है। ठीक उसी प्रकार अन्तर्दर्शन की सहायता से विषयपात्र में पायी जाने वाली कुण्ठाओं को भी ज्ञान हो जाता है।
(4) मितव्ययी, सरल तथा परीक्षणहीन विधि – अन्तर्दर्शन विधि मितव्ययी समझी जाती है, क्योकि इस विधि में निरीक्षक, अध्ययन-सामग्री या किसी बाहरी उपकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके अतिरिक्त इस विधि के द्वारा अध्ययन हेतु किसी विशेष परीक्षण की भी आवश्यकता नहीं होती। इसका प्रयोग भी सरलता से किया जा सकता है।
(5) तुलनात्मक अध्ययन एवं सामान्यीकरण के लिए उपयोगी – अन्तर्दर्शन विधि के माध्यम से किसी विशिष्ट समस्या का तुलनात्मक अध्ययन सम्भव है। साथ-ही-साथ, यदि दो प्रणालियों को अध्ययन करके उनसे प्राप्त परिणामों की तुलना की जाए तो प्रयोगकर्ता एक विश्वसनीय सामान्यीकरण पर पहुँच सकता है। सामान्यीकरण की प्रक्रिया हमें मनोविज्ञान के सर्वमान्य नियम यो सिद्धान्त प्रदान करती है।
(6) मौलिक एवं अपरिहार्य विधि – अन्तर्दर्शन विधि मनोविज्ञान की एक मौलिक विधि है। इसमें निहित विशिष्टताएँ अन्य पद्धतियों में दृष्टिगोचर नहीं होतीं। आलोचकों द्वारा अन्तर्दर्शन विधि की भले ही कितनी भी आलोचनाएँ प्रस्तुत की गयी हों, किन्तु अन्तर्दर्शन विधि मनोवैज्ञानिक अध्ययन के लिए अपरिहार्य है और इसे नकारा नहीं जा सकता।

अन्तर्दर्शन विधि के दोष अथवा कठिनाइयाँ तथा उनके निवारण के उपाय(Demerits of Introspection Method and their Remedies)
नि:सन्देह अन्तर्दर्शन विधि मनोवैज्ञानिक अध्ययन की एक मौलिक एवं विशिष्ट विधि है, परन्तु व्यक्ति के व्यवहार के अध्ययन के लिए इस विधि को अपनाते समय कुछ कठिनाइयों का सामना अवश्य करना पड़ता है। अन्तर्दर्शन विधि की इन कठिनाइयों को इस विधि के दोष भी कहा जाता है। विभिन्न विद्वानों ने अन्तर्दर्शन विधि की कठिनाइयों के निवारण के उपायों का भी उल्लेख किया है। अन्तर्दर्शन विधि की मुख्य कठिनाइयों तथा उनके निवारण के उपायों का विवरण निम्नलिखित है –

(1) मानसिक क्रियाओं पर पूर्ण रूप से ध्यान केन्द्रित नहीं किया जा सकता – मानव-मन को किसी एक बिन्दु या लक्ष्य पर केन्द्रित करना अत्यन्त कठिन कार्य है। परिवर्तनशील एवं गतिमान मन की क्रियाएँ भी अपनी प्रकृति के कारण नितान्त परिवर्तनशील, अमूर्त तथा अप्रत्यक्ष होती हैं। मन की क्रियाओं को स्वरूप जड़ वस्तुओं या प्रघटनाओं से सर्वथा भिन्न होता है। अत: मानसिक क्रियाओं के अध्ययन करने वाले के लिए यह सम्भव नहीं होता कि वह अपना ध्यान पूर्ण रूप से केन्द्रित रख सके। यही कारण है कि अन्तर्दर्शन विधि द्वारा मानसिक क्रियाओं का अध्ययन एक बहुत ही कठिन कार्य समझा जाता है।
कठिनाई निवारण के उपाय – निरन्तर अभ्यास के माध्यम से उपर्युक्त कठिनाई को दूर किया जा सकता है। अन्तर्दर्शन विधि की सफलता पर्याप्त प्रशिक्षण पर निर्भर करती है। निरन्तर अभ्यास एवं प्रशिक्षण से अमूर्तकरण की क्षमता में वृद्धि होगी और इस भाँति मन की एकाग्रता उत्तरोत्तर बढ़ती जायेगी। मन की अधिकाधिक एकाग्रता मानसिक क्रियाओं के अध्ययन में सहायक होगी।
(2) मानसिक प्रक्रियाओं की प्रकृति गत्यात्मक एवं चंचल होती है – मानव की अनुभूतियाँ, मनोवृत्तियाँ, भावनाएँ, विचार एवं इच्छाएँ हर समय एकसमान नहीं रहतीं। इन प्रक्रियाओं की तीव्रता में लगातार उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। निरीक्षण के लिए निरीक्षण के विषय का स्थिर होना पहली और आवश्यक शर्त है। हम अपने चारों ओर विभिन्न स्थिर वस्तुएँ पाते हैं जिनका निरीक्षण सहज रूप से सम्भव है। किन्तु मानसिक प्रक्रियाएँ तो निरन्तर बदलती रहती हैं, जिनका निरीक्षण एक दुष्कर कार्य है। और इनका अन्तर्दर्शन के माध्यम से ज्ञान भी पर्याप्त रूप से कठिन है। उदाहरण के लिए माना एक व्यक्ति किसी कारणवश भयभीत हो उठा। मनोवैज्ञानिक उस व्यक्ति के भय की दशा का ज्ञान अन्तर्दर्शन विधि से करना चाहेंगे, परन्तु यह एक कठिन कार्य है। क्योंकि व्यक्ति का भय के कारण पर नियन्त्रण नहीं था; अत: एक तो वह चाहकर भी पुन: उसी कारण से भयभीत नहीं हो सकता और दूसरे भय की यह दशा हमेशा बनी नहीं रह सकती। इसलिए सम्भव है कि निरीक्षण करते-करते भय की अवस्था ही समाप्त हो जाए अथवा उसकी तीव्रता में हास आ जाए। भय की ऐसी परिवर्तनशील अवस्था में कोई उचित निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। इस भाँति चंचल एवं परिवर्तनशील मानसिक प्रक्रियाओं का अन्तर्दर्शनएक कठिन समस्या है।
कठिनाई निवारण के उपाय – अन्तर्दर्शन विधि में मानसिक प्रक्रियाओं की चंचल प्रकृति सम्बन्धी कठिनाई पर स्मृति के माध्यम से अंकुश लगाया जा सकता है। स्मृति की मदद से किसी समय-विशेष की मानसिक दशा का विश्लेषण करना सम्भव होता है। इसके अतिरिक्त; अभ्यास, प्रशिक्षण, मानसिक सावधानी तथा विविध अभिलेखों की तुलना द्वारा अन्तर्दर्शन के अन्तर्गत मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जा सकता है।

+1 vote
by (52.9k points)

(3) अन्तर्दर्शन में मन विभाजित हो जाता है – मनुष्य एक ‘मनप्रधान प्राणी है और मनोविज्ञान के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक मन की क्रियाओं का अध्ययन करते हैं। किन्तु यदि मन ही विभाजित हो गया हो तो क्या ऐसे विभाजित मन द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन सम्भव है-यह आरोप अन्तर्दर्शन विधि के विरुद्ध लगाया जाता है। सच तो यह है कि अन्तर्दर्शन’ विधि में मन अपनी क्रियाओं का निरीक्षण स्वयं ही करता है। इस प्रकार कार्य करने के कारण वह दो भागों में बँट जाता है – एक मन जो निरीक्षण कार्य करता है तथा दूसरो मन जिसका निरीक्षण किया जाता है। किसी विशिष्ट समर्थ में एक ही मन ज्ञाता और ज्ञेय’ दोनों नहीं हो सकता। इस स्थिति में अन्तर्दर्शन विधि द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन कैसे सम्भव हो सकता है?
कठिनाई निवारण के उपाय – व्यावहारिक दृष्टि से उपर्युक्त कठिनाई का निराकरण भी सम्भव है। अवधान को इस प्रकार अभ्यस्त एवं प्रशिक्षित बनाया जा सकता है कि मनुष्य बाह्य वस्तुओं के अनुरूप अपनी आन्तरिक प्रवृत्तियों का भी सही-सही निरीक्षण कर सके। मन एक साक्षी सत्ता है। और यह साक्षी सत्ता विभक्त होते हुए भी सुख-दुःख, प्रेम-घृणा, काम और क्रोध आदि भावनाओं का अनुभव कर सकती है। प्रत्येक मनुष्य का मन अपने ही अन्दर इस प्रकार की भावनाओं का अनुभव करता है। फलतः वह ज्ञाता भी बनता है और ज्ञेय भी।
(4) कई मनोवैज्ञानिक एक ही मानसिक प्रक्रिया का अध्ययन नहीं कर सकते – वैज्ञानिक अध्ययन की एक आधारभूत मान्यता यह है कि सम्बन्धित विषय अथवा घटना का एक से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा एक ही समय में अवलोकन किया जाए। मनोविज्ञान की अन्तर्दर्शने विधि इस शर्त को पूरा नहीं करती, क्योंकि किसी व्यक्ति की आन्तरिक दशाओं का अध्ययन अन्य व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जा सकता। इस प्रकार अन्तर्दर्शन विधि पर अवैज्ञानिकता का आरोप लगाया जाता है।
कठिनाई निवारण के उपाय – अन्तर्दर्शन, विधि के विरुद्ध यह आरोप निराधार है। उक्त कठिनाई के निराकरण के लिए मनोवैज्ञानिकों को चाहिए कि वे परस्पर सहयोग से कार्य करें। सर्वप्रथम, प्रत्येक मनोवैज्ञानिक किसी मानसिक प्रक्रिया का अलग से अध्ययन करेगा और फिर इस सन्दर्भ में अपने अनुभवों को एक-दूसरे से कहेगा। जब कई मनोवैज्ञानिक अपने-अपने अनुभवों की परस्पर तुलना करेंगे तो वे इस भाँति प्राप्त निष्कर्षों से एक सामान्य नियम तक पहुँच सकते हैं। सामान्यीकरण की पद्धति पर आधारित ऐसे नियम सार्वभौमिक (Universal) होते हैं।
(5) मनोदशा और वस्तु का एक साथ निरीक्षण नहीं किया जा सकता – यदि अन्तर्दर्शन में किसी ऐसी मानसिक अवस्था या वृत्ति पर ध्यान केन्द्रित करना पड़े जो किसी बाह्य वस्तु के कारण उत्पन्न हुई हो तो उस परिस्थिति में अन्तर्दर्शन सम्भव नहीं होता। इसका कारण यह है कि व्यक्ति द्वारा मनोदशा पर ध्यान लगने से उसका ध्यान वस्तु से हट जाता है। यदि वह वस्तु पर ध्यान लगाता है तो उसका ध्यान मनोदशा से हट जाता है। फलतः दोनों पर एक साथ ध्यान नहीं लग पाता। व्यक्ति का ध्यान एक समय में एक ही स्थान पर केन्द्रित हो सकता है।
कठिनाई निवारण के उपाय – इस कठिनाई पर अभ्यास के माध्यम से विजय प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए ध्यान के अभ्यास एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। कुछ देर तक वस्तु पर तथा कुछ देर तक मानसिक क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। अभ्यास का यह कार्य बारी-बारी से लगातार करने पर वस्तु और उससे उत्पन्न मनोदशा का एक साथ निरीक्षण करना सम्भव हो सकता है।
(6) अन्तर्दर्शन द्वारा प्राप्त ज्ञान आत्मगत एवं व्यक्तिगत होता है – अन्तर्दर्शन में एक कठिनाई यह है कि इस विधि के द्वारा जो भी अध्ययन किये जाते हैं वे नितान्त व्यक्तिगत तथा आत्मगत (Subjective) होते हैं, वस्तुनिष्ठ (Objective) नहीं। यही कारण है कि अन्तर्दर्शन से प्राप्त परिणामों में वैज्ञानिकता तथा विश्वसनीयता का प्रायः अभाव रहता है; अतः इस विधि के माध्यम से सामान्य निष्कर्ष निकालना कठिन है।
कठिनाई निवारण के उपाय – इसके लिए परामर्श दिया जाता है कि अन्तर्दर्शन को अभ्यास एवं प्रशिक्षण के माध्यम से अधिकाधिक वस्तुनिष्ठ बनाया जाये ताकि इसके ज्ञान पर आधारित कुछ सामान्य नियम प्रतिपादित हो सकें। इसके अतिरिक्त विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुभवों की तुलना करके सामान्यीकरण की विधि से सर्वमान्य सिद्धान्त भी बनाये जा सकें।
(7) अन्तर्दर्शन में तथ्यों को छिपाने की सम्भावना है – अन्तर्दर्शन विधि में एक मुख्य कठिनाई यह आती है कि विषय-पात्र उन तथ्यों को सरलता से छिपा सकता है जो सच्चाई के अधिक निकट होते हैं, क्योंकि प्रयोगकर्ता के पास विषय-पात्र के अतिरिक्त कोई अन्य ऐसा स्रोत नहीं होता जिससे तथ्यों की प्रामाणिकता सिद्ध हो सके; अत: इस पद्धति के माध्यम से सत्यान्वेषण का कार्य नहीं हो सकता।
कठिनाई निवारण के उपाय – विषय-पात्र को यह विश्वास दिलाकर कि उससे प्राप्त सूचनाओं को गुप्त रखा जाएगा, यथार्थ स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों के अन्तर्दर्शनं विवरण से मिलान करके ही तथ्यों की प्रामाणिकता पुष्ट की जानी चाहिए।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...