मनोविज्ञान का मूल्य अथवा उपयोगिता एवं महत्त्व
(Value or Utility and Importance of Psychology)
मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनोविज्ञान ने मूल्यवान योगदान प्रदान किया है। मनोविज्ञान के अध्ययन ने मानव-जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित किया है जिसके परिणामस्वरूप मानव के दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तनों का जन्म हुआ। इस शास्त्र के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान ने मानव की व्यक्तिगत तथा सामूहिक समस्याओं का समाधान खोजने में पर्याप्त सहायता दी है। इस भाँति मनोविज्ञान को मनुष्य के दैनिक जीवन में विशेष महत्त्व है। मानव-जीवन को सुखमय बनाने में | मनोविज्ञान की उपयोगिता निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णित है
(1) व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान में मनोविज्ञान की उपयोगिता – आधुनिक मानव स्वयं को गम्भीर समस्याओं से घिरा पाता है। ये समस्याएँ जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित हैं और मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक एवं आध्यात्मिक विकास में अवरोध उत्पन्न करती हैं। मनोविज्ञान का ज्ञान इन अवरोधों को हटाने में हमारी पर्याप्त सहायता करता है। बहुत-सी शारीरिक समस्याओं का समाधान मनोवैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा सम्भव है। अनुकूलन की समस्या भी मनोविज्ञान के ज्ञान द्वारा हल होती है। मनोविज्ञान के ज्ञान से विभिन्न मानसिक रोगों तथा समस्याओं को दूर करने में सहायता मिलती है। मानव व्यक्तित्व के सन्तुलन तथा विकास में मनोवैज्ञानिक निर्देशन की विशिष्ट भूमिका है। अच्छी आदतों तथा उत्तम चरित्र के निर्माण में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होते हैं। इस भाँति मनुष्य की व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान में मनोविज्ञान के ज्ञान की अनिवार्यता निर्विवाद है।
(2) शिक्षा के क्षेच्च में मनोविज्ञान की उपयोगिता – मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में आधारभूत परिवर्तनों को जन्म दिया है। मनोविज्ञान से सम्बन्धित खोजों ने सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया का दृष्टिकोण ही बदल दिया है। आधुनिक शिक्षा का केन्द्र-बिन्दु शिक्षक से हटकर ‘बालक’ हो गया है अर्थात् शिक्षा ‘बाल केन्द्रित हो गयी है। बालक को दण्ड का भय दिखाकर सीखने के लिए बाध्य नहीं किया जाता; अपितु उसकी भावनाओं को समझकर उसमें अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाये जाते हैं। बालक को मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर सीखने एवं शिक्षा के लिए प्रेरित किया जाता है। मनोविज्ञान ने शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों में क्रान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित किये हैं–पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधियाँ, शिक्षण-सहायक सामग्री, अभिप्रेरणा के तरीकों तथा सीखने के सिद्धान्तों में मनोविज्ञान का अपूर्व योगदान स्पष्ट है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं का समाधान सरल हो गया है।
(3) अपराधियों के सुधार तथा अपराधों के नियन्त्रण में मनोविज्ञान की उपयोगिता – मनोविज्ञान के ज्ञान ने अपराध जगत् को एक अभूतपूर्व सकारात्मक दिशा प्रदान की है। पहले अपराधियों को शारीरिक यन्त्रणाओं के माध्यम से सुधारने के प्रयास किये जाते थे, किन्तु आज मनोविज्ञान ने इस धारणा को मूलतः बदल दिया है। मनोविज्ञान की मान्यता है कि मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता, अपितु समाज की परिस्थितियाँ उसे अपराधी बना देती हैं। अपराध को जन्म देने वाली परिस्थितियों तथा कारणों का विश्लेषण कर अपराधी में सुधार हेतु प्रयास किये जाने चाहिए। अतः दण्ड के स्थान पर सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए तथा परिस्थितियों में सुधार का प्रयास किया जाना चाहिए। इसी कारण से आजकल सुधार-गृहों, खुले जेलखानों, बोस्टेल स्कूलों एवं प्रोबेशन की व्यवस्था की गयी है। मनोविज्ञान ने बाल-अपराधियों के लिए भी उदारवादी एवं सुधारात्मक समाधान प्रस्तुत किये हैं। मनोविज्ञान का ज्ञान समाज में अपराधों को नियन्त्रित करने में भी सहायक सिद्ध होता है। यदि पारिवारिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में सुधार कर लिया जाये तो निश्चित रूप से क्रमश: बाल-अपराधों एवं अपराधों में कमी आ सकती है।
(4) चिकित्सा के क्षेत्र में मनोविज्ञान का महत्त्व – शिक्षा एवं अपराध के अतिरिक्त-मभोविज्ञान का चिकित्सा के क्षेत्र में भी विशेष महत्त्व है। दुर्भाग्य से, पहले मन्द बुद्धि वाले व्यक्तियों तथा मानसिक रोगियों के साथ समाज का व्यवहार अच्छा नहीं था। विक्षिप्त अथवा पागल व्यक्तियों के रोग को भूत-प्रेत आदि की आपदाओं का शिकार माना जाता था। उन्हें जंजीरों से बाँधकर रखा जाता था और उन पर अमानवीय अत्याचार किये जाते थे। इस प्रकार के अन्धविश्वासों का खण्डन करके मनोविज्ञान ने इस प्रकार के रोगों के कारणों का पता लगाकर समुचित चिकित्सा की पद्धति विकसित की है। इस भाँति, मनोविज्ञान मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की सहायता से मनोरोगियों के उपचार की व्यवस्था करता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार कुछ शारीरिक रोगों का कारण भी मनोवैज्ञानिक ही होता है तथा उनका उपचार भी मनोवैज्ञानिक उपायों द्वारा किया जा सकता है।
(5) उद्योग तथा व्यापार के क्षेत्र में उपयोगिता – मनोविज्ञान ने उद्योग तथा व्यापार के क्षेत्र को नये आयाम दिये हैं। औद्योगिक मनोविज्ञान’ नामक मनोविज्ञान की एक शाखा तो विशेषत: औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं का अध्ययन करती है तथा उनका समाधान प्रस्तुत करती है। उद्योगों में हड़ताल तथा तालाबन्दी की समस्याएँ, मजदूर तथा मिल-मालिकों के आपसी सम्बन्ध, कर्मचारियों के कार्य की दशाओं में सुधार और कर्मचारियों की भर्ती सम्बन्धी समस्याएँ आदि ऐसे विषय हैं जिन्हें मनोवैज्ञानिक आधार की आवश्यकता है। मनोविज्ञान ने मानवीय क्षमताओं तथा कौशल के आधार पर श्रम विभाजन का विचार किया, जिससे कम श्रम तथा समय में बेहतर उत्पादन की युक्तियाँ विकसित की गईं। मनोवैज्ञानिक खोजों ने प्रचार तथा विज्ञापन के क्षेत्र को अत्याधुनिक और सर्वाधिक उपयोगी बना दिया है।
(6) मनोविज्ञान स्वयं तथा दूसरों को समझने में सहायक – मनोविज्ञान का अध्ययन मनुष्य के निजी व्यक्तित्व को समझने में सहायता देता है। मनोविज्ञान के ज्ञान से व्यक्ति अपनी शक्तियों, योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों तथा स्वभाव से परिचित होता है और उनके समुचित विकास हेतु प्रयास करता है। मनोविज्ञान के अध्ययन से व्यक्ति अपने व्यवहार-सम्बन्धी कमियों का ज्ञान प्राप्त कर उनमें संशोधन करने की चेष्टा करता है। इस भाँति वह स्वयं को सहज ही वातावरण से समायोजित कर लेता है। इसके अतिरिक्त मनोविज्ञान के जोन से दूसरे लोगों से भिन्न व्यवहार के कारणों तथा स्वभाव का पता चलता है जिससे उनके साथ समायोजन में सहायता मिलती है। इस प्रकार से मनोविज्ञान का अध्ययन मात्र स्वयं को समझने में ही सहायक नहीं है बल्कि इससे दूसरों को समझने में भी सहायता मिलती है।
(7) राजनीतिक क्षेत्र में मनोविज्ञान का महत्त्व – आधुनिक राजनीति में मनोविज्ञान का सक्रिय योगदान है। जनता की इच्छा के विरुद्ध चलने वाली सरकारें स्थायी नहीं होतीं तथा थोड़े समय में ही गिर जाती हैं। चुनाव के दौरान प्रत्याशियों को अपने प्रचार में मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाने होते हैं। चुनाव-प्रचार जितना अधिक मनोवैज्ञानिक होगा, चुनाव में उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त होगी। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत शासन प्रबन्ध चलाने, कानून बनाने तथा सुधारवादी प्रस्तावों के लिए भी मनोवैज्ञानिक समझ होनी चाहिए। देश के नेतागण अपने पद तथा राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा हेतु मनोविज्ञान का सहारा लेते हैं। वे जनता के प्रति मनोवैज्ञानिक ढंग से अपना प्रेम, सहानुभूति, सम्मान या अपनी उपलब्धियाँ प्रस्तुत करते हैं। जनक्रान्ति को रोकने तथा जनसमूह पर नियन्त्रण रखने के लिए भी मनोविज्ञान का ज्ञान आवश्यक है। इस प्रकार, राजनीतिक क्षेत्र में मनोविज्ञान का अध्ययन मूल्यवान समझा जाता है। आज वही नेता लोकप्रिय हो सकता है जो जन-साधारण के मनोविज्ञान का ज्ञाता है।
(8) सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु मनोविज्ञान की उपयोगिता – प्रत्येक सामाजिक समस्या का अपना मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है। आज भारतीय समाज विभिन्न कुरीतियों, विषमताओं तथा समस्याओं का शिकार है; उदाहरण के लिए-दहेज-प्रथा, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, आतंकवाद, बेरोजगारी तथा हिंसा की प्रवृत्तियाँ। इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास करते समय उनके मनोवैज्ञानिक पक्ष की अनदेखी नहीं की जा सकती। ये समस्याएँ समाज के व्यक्तियों से सम्बन्ध रखती हैं। और समाज के व्यक्तियों की भावनाओं, रुचियों, अभिरुचियों, प्रथाओं एवं परम्पराओं का अध्ययन करके ही उनकी मनोवृत्तियों में परिवर्तन सम्भव है। समाज मनोविज्ञान, सामाजिक समस्याओं के मनोवैज्ञानिक पक्ष को समझकर उनके समाधान का प्रयास करता है। इस प्रकार सामाजिक समस्याओं को हल करने में मनोविज्ञान के अध्ययन की अत्यधिक आवश्यकता प्रतीत होती है।
(9) युद्धकाल में मनोविज्ञान की उपयोगिता – भले ही युद्ध एक बुराई तथा सभ्य मानव समाज के लिए कलंक है, परन्तु प्रत्येक देश-काल में युद्ध होते रहे हैं तथा भविष्य में भी होते रहेंगे। इस स्थिति में प्रत्येक देश सम्भावित युद्धों में विजय प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। युद्धों में सफलता के दृष्टिकोण से भी मनोविज्ञान का ज्ञान उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है। मनोविज्ञान के ज्ञान ने युद्ध-कार्यों में भारी सहायता प्रदान की है। शीत-युद्ध मनोवैज्ञानिक प्रचार पर आधारित होते हैं। जल, स्थल और वायु सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए आवश्यक है कि उनका चुनाव वांछित योग्यतानुसार किया जाये। भर्ती से पूर्व उन्हें मनोवैज्ञानिक परीक्षाएँ देनी होती हैं। जो अभ्यर्थी इन परीक्षणों में सफलता प्राप्त कर लेते हैं उन्हें सेवाओं में प्रवेश मिल जाता है। युद्धकाल में आक्रमण से पूर्व तथा युद्ध घोषित होने के पश्चात् जनता की प्रतिक्रियाओं का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। सैनिकों को प्रेरित करने की दृष्टि से देश के नेतागण सीमा पर जाते हैं। इससे सैनिकों का हौसला बढ़ता है और वे बड़े-से-बड़े बलिदान करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। इसके विपरीत, विभिन्न मनोवैज्ञानिक उपायों द्वारा शत्रुपक्ष की सेना के मनोबल को गिराने का भी प्रयास किया जाता है। यदि शत्रुपक्ष की सेना का मनोबल टूट जाए तो युद्ध में अनिवार्य रूप से विजय प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि युद्धकाल में मनोविज्ञान का महत्त्व सर्वाधिक रूप से सिद्ध होता है।
(10) विश्व-शान्ति की स्थापना में मनोविज्ञान का योगदान – विश्व-शान्ति की स्थापना हेतु मानव सम्बन्धों में उचित सामंजस्य की आवश्यकता है। मनोविज्ञान के अध्ययन से ही सामंजस्य या अनुकूलन की समस्या का समाधान सम्भव है। वैयक्तिक भिन्नता की जानकारी प्राप्त करके ही विभिन्न राष्ट्रों के मध्य पारस्परिक तनाव कम किया जा सकता है। विश्व-स्तर पर तनाव एवं अशान्ति के कारणों को खोजकर उनको मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है तथा पहले से ही इस प्रकार के संघर्ष का निवारण सम्भव हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय तनाव तथा राष्ट्रों की आक्रमणकारी प्रवृत्तियों को अन्तर्राष्ट्रीय खेलकूद, व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से कम किया जा सकता है। इस प्रकार मनोविज्ञान का ज्ञान वसुधैव कुटुम्बकम् एवं विश्व-बन्धुत्व की भावना को जाग्रत करता है, जिससे विश्व-शान्ति की स्थापना सम्भव है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मानव-जीवन के प्रत्येक पक्ष में मनोविज्ञान की उपयोगिता एवं महत्त्व स्वयंसिद्ध है। मनोविज्ञान का ज्ञान मनुष्य की दैनिक आवश्यकताओं में बहुमूल्य योगदान प्रदान कर रहा है। आधुनिक युग में मनोविज्ञान के अध्ययन की महती आवश्यकता है और इसकी उपेक्षा करके जन-कल्याण का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता।