तालाबन्दी में उद्योगपति उद्योग को बन्द रखता है जिससे श्रमिक व कर्मचारी काम पर नहीं जा पाते हैं। इससे श्रमिकों को वेतन नहीं मिल पाता और वे बेरोजगार हो जाते हैं। उनके पास अपना कोई संचित धन तो होता है नहीं, वे तो शाम तक श्रम करते हैं और प्राप्त पारिश्रमिक से दो जून की रोटी खाते हैं; अतः उनकी दशा खराब होती जाती है और वे भूखों मरने लगते हैं। इसके विरोध-स्वरूप वे प्रदर्शन, जुलूस तथा अनशन आदि का सहारा लेते हैं। कभी-कभी यह विरोध उग रूप धारण कर तोड़फोड़, आगजनी तथा हिंसात्मक घटनाओं में बदल जाता है। इसमें प्रशासन, पुलिस तथा राजनेताओं को भी हस्तक्षेप करमा पड़ता है। इसके अलावा तालाबन्दी के परिणामस्वरूप उत्पादित वस्तुओं की बाजार में कमी हो जाती है जिससे मुनाफाखोरी व जमाखोरी जैसी आर्थिक दुष्प्रवृत्तियों का जन्म होता है। इससे सम्बन्धित अन्य उद्योग, कारखाने या व्यावसायिक संस्थान भी बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं। जिससे अन्ततः राष्ट्र की आर्थिक हानि होती है।