सांख्यिकी की सीमाएँ (Limitations of Statistics)
सांख्यिकी एक लाभप्रद विज्ञान है। यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को स्पर्श करता है। सामाजिक विज्ञान शिक्षा तथा मनोविज्ञान में सांख्यिकी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। कृषि, नियोजन, अर्थशास्त्र, राजस्व, राजनीतिशास्त्र आदि में भी इसका भरपूर प्रयोग होता है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि सांख्यिकी की कोई सीमाएँ (कमियाँ) ही नहीं हैं। वास्तविकता यह है कि सांख्यिकी जितना लाभदायक विज्ञान है, उतना ही यह ख़तरनाक भी है। इसका प्रयोग बहुत ही सोच-विचारकर, सावधानीपूर्वक तथा विशेषज्ञों द्वारा किया जाना चाहिए। यदि सांख्यिकी का प्रयोग अकुशल व्यक्तियों द्वारा किया जाता है तो यह बहुत हानिप्रद सिद्ध हो सकता है। इसकी सीमाओं पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। सांख्यिकी की प्रमुख सीमाएँ इस प्रकार हैं –
(1) सांख्यिकी केवल संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन करती है, न कि गुणात्मक तथ्यों का – सांख्यिकी की यह महत्त्वपूर्ण कमजोरी है। यह मानव-जीवन के केवल उसी पहलू का अध्ययन करती है जिसे संख्याओं द्वारा प्रस्तुत किया जा सके; जैसे-ऊँचाई, आयु, भार तथा आय आदि। जीवन के गुणात्मक पक्ष; जैसे—सुन्दरता, भावना, दुष्टता, बुद्धिमत्ता, कुटिलता आदि का अध्ययन सांख्यिकी द्वारा नहीं कर सकते हैं। गुणात्मक पहलू को संख्याओं में व्यक्त करके अप्रत्यक्ष रूप में अध्ययन कर सकते हैं। बुद्धिमत्ता का माप अनुमानित संख्याओं द्वारा व्यक्त कर सकते हैं, प्रत्यक्ष रूप में नहीं।
(2) सांख्यिकीय समंक सजातीय और एकरूप होने चाहिए – सांख्यिकी में विजातीय तथ्यों का अध्ययन नहीं किया जा सकता, सांख्यिकीय विधियों द्वारा समंकों की तुलना तभी सम्भव है जबकि वे सजातीय हों तथा उनमें एकरूपता पायी जाये।
(3) सांख्यिकी समूह का अध्ययन करती है, न कि व्यक्ति को प्रो० नीजवैगर के अनुसार, सांख्यिकी के निष्कर्ष समूह के सामूहिक व्यवहार का अनुमान करने में सहायक होते हैं, उस समूह की व्यक्तिगत इकाइयों फ़ा नहीं।” सांख्यिकी व्यक्तिगत इकाई की विशेषता पर ध्यान न देकर सामूहिक विशेषता या औसत पर ध्यान देती है। सांख्यिकी के परिणाम समूह से जुड़े होते हैं, न कि व्यक्ति से। किसी कक्षा के प्राप्तांकों का औसत यह नहीं बताता कि अमुक विद्यार्थी के प्राप्तांक उतने ही होंगे।
(4) बिना सन्दर्भ के सांख्यिकी के परिणाम असत्य और भ्रामक होते हैं – समस्या के बिना सन्दर्भ और पूर्ण जानकारी के सांख्यिकीय परिणाम भ्रामक और असत्य मालूम होते हैं। कुछ समंकों से प्राप्त निष्कर्ष किसी भी विषय पर तब तक लागू नहीं किये जा सकते जब तक कि परिस्थिति, सन्दर्भ व समस्या की पूर्ण जानकारी न हो।
(5) सांख्यिकी के प्रयोग के लिए सांख्यिकीय विधियों की जानकारी आवश्यक – सांख्यिकी विज्ञान की यह एक गम्भीर सीमा है कि इसके सही उपयोग करने के लिए सांख्यिकीय विधियों की पूर्ण व सही जानकारी अति आवश्यक है। जो व्यक्ति सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग की पूर्ण जानकारी नहीं रखते हैं, उनके द्वारा इनके प्रयोग से लाभ के स्थान पर नुकसान ही होता है। यूल और केण्डाल ने तो यहाँ तक कहा है, “अयोग्य व्यक्तियों के हाथों में सांख्यिकीय विधियाँ खतरनाक औजार हैं।”
(6) सांख्यिकी के परिणाम दीर्घकाल में तथा औसत रूप में सही होते हैं – प्राकृतिक विज्ञानों; जैसे-रसायनशास्त्र, भौतिकशास्त्र आदि के नियम और परिणाम सार्वभौमिक तथा सार्वकालिक होते हैं। ये अल्पकाल तथा दीर्घकाल सभी कालों में लागू होते हैं, परन्तु सांख्यिकी के परिणाम केवले दीर्घकाल में ही सही निकलते हैं तथा वे एक औसत प्रवृत्ति के परिचायक होते हैं। उनमें छोटे-छोटे उच्चावचन एवं कमियाँ विद्यमान रहती हैं। सांखियकी के नियम सम्भावना सिद्धान्त पर आधारित होते हैं। जिसके अनुसार यदि किसी सिक्के को 20 बार उछालें तो सम्भावना यह है कि 10 बार चित (Head) तथा 10 बार पट (Tail) आएगा; किन्तु ‘यथार्थ में हो सकता है 14 बार चित व 6 बार पट आये।
(7) सांख्यिकी एक साधन है, साध्य नहीं – सांख्यिकी का प्रमुख कार्य समस्या से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित कर उन्हें वर्गीकृत करके सारणीयन तथा रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुत करना है। बाउले के मत में सांख्यिकी का काम परिणाम या निष्कर्ष निकालना नहीं है। यदि सांख्यिकी परिणाम निकालेगी। भी, तो वे निष्पक्ष नहीं होंगे। परन्तु कुछ दूसरे सांख्यिकीवेत्ता यह मानते हैं कि बिना परिणाम के सांख्यिकी अनुपयोगी होगी; अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि समंकों के एकत्रीकरण में पूर्ण सावधानी रखकर तटस्थ रूप में उनका प्रयोग करना चाहिए। अनुसन्धानकर्ता के तटस्थ न रहने पर। परिणाम गलत और हानिकारक हो सकते हैं; अतः सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग साधन के रूप में बुद्धिमानीपूर्वक करना चाहिए।
(8) सांख्यिकीय विधि अनुसन्धान की एकमात्र विधि नहीं है – समस्याओं के अनुसन्धान की अनेक विधियाँ हैं, सांख्यिकीय विधि उन अनेक विधियों में से एक हैं। अत: सांख्यिकी से प्राप्त परिणामों को पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि अनुसन्धान की दूसरी विधियों से परिणामों की पुनः जाँच न कर ली जाए।
अंत में यह कह सकते हैं कि सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग में पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए। उपर्युक्त सीमाओं को ध्यान में रखकर निष्कर्ष निकालने चाहिए, अन्यथा इसके परिणाम भ्रामक और हानिकारक हो सकते हैं। यही कारण है कि यूल और केण्डाल यह कहने पर मजबूर हुए हैं कि सांख्यिकीय गीतियाँ अयोग्य व्यक्तियों के हाथों में खतरनाक औजार हो सकते हैं।