समंकों की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को स्पष्ट करने के लिए सांख्यिकीय विश्लेषण में केन्द्रीय प्रवृत्ति (Central Tendency) की माप का महत्त्वपूर्ण स्थान है। समंकों के वर्गीकरण तथा सारणीयन से समंक सरल, सुबोध, व्यवस्थित तथा तुलनीय तो बन जाते हैं किन्तु इससे उनकी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ प्रकट नहीं होतीं; अत: एक ऐसी विधि की आवश्यकता है जिसके द्वारा एक ही संख्या से सभी संगृहीत आँकड़ों को प्रतिनिधित्व कराया जा सके। इसके लिए केन्द्रीय प्रवृत्ति की मापों या सांख्यिकीय माध्यमों का अध्ययन आवश्यक है।
केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : अर्थ (Definitions of Measures of Central Tendency or Average)
संगृहीत आँकड़ों के मध्य ऐसी संख्या, जो सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती हो, तो न तो समूह की न्यूनतम मान वाली संख्या होगी और न ही अधिकतम मान वाली। अवश्य ही, वह संख्या समूह के मध्य या उसके आस-पास की संख्या होगी। अत; आँकड़ों में से किस एक आँकड़े के पास पाये जाने की उनकी प्रवृत्ति को केन्द्रीय प्रवृत्ति (Central Tendency) कहा जाता है तथा इस माध्य या औसत को केन्द्रीय माप या केन्द्रीय प्रवृत्ति की मान कहते हैं।
इस भाँति केन्द्रीय प्रवृत्ति से तात्पर्य उस मान से है जो प्राप्त आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करता है। अर्थात् वह मान जो प्राप्त आँकड़ों में सबसे अधिक बार आया हो। साधारणत: केन्द्रीय प्रवृत्ति की मापों से हमारा अर्थ ‘सांख्यिकीय माध्य’ या ‘औसत (Average) से होता है; क्योंकि सांख्यिकी माध्यम के आस-पास सभी आँकड़े वितरित होते हैं।
वह संख्या, जो किसी समूह-विशेष के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, उस समूह का सांख्यिकीय माध्य से औसत कहलाती है।
केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप या सांख्यिकीय माध्य की परिभाषाएँ (Definitions of Measures of Central Tendency or Average)
सांख्यिकीय माध्य या केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –
(1) सिम्पसन और काक्का के अनुसार, “केन्द्रीय प्रवृत्ति का माप एक ऐसा प्रतिरूपी मूल्य है। जिसकी ओर अन्य संख्याएँ केन्द्रित होती हैं।”
(2) क्लार्क और शकाडे के मत में, “माध्ये सम्पूर्ण समंक समूह का विवरण देने वाली एकमात्र संख्या प्राप्त करने का प्रयत्न है।”
(3) क्रॉक्सटन और काउडेन के मतानुसार, “माध्य समंकों के विस्तार के अन्तर्गत स्थित एक ऐसा पद है। जिसका प्रयोग श्रेणी के सभी पदों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है। समंक माला के विस्तार के अन्तर्गत स्थित होने के कारण माध्य को कभी-कभी केन्द्रीय मूल्य का माप भी कहा जाता है।
समंक माला के कुछ पद (मूल्य) माध्य से छोटे तथा कुछ मूल्य बड़े होते हैं; अत: माध्य समंक श्रेणी की केन्द्रीय प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। अन्त में कह सकते हैं कि माध्य समंक श्रेणी का मध्य मूल्य होता है जो श्रेणी की बनावट वे महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को बतलाता है।
केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप या सांख्यिकीय माध्य के उद्देश्य (Objectives of Averages)
केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप या औसत या सांख्यिकीय माध्य के महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निम्नलिखित है।
(1) जटिल तथ्यों को सरल रूप में प्रस्तुत करना – जिससे वे आसानी से समझ में आ सकें।
(2) विस्तृत तथ्यों को संक्षिप्तता प्रदान करना – माध्य तथ्यों के विशाल समूह को एक संख्या के रूप में प्रस्तुत कर देता है। इससे विशाल समूह की जानकारी प्राप्त हो जाती हैं। मोरेनो के अनुसार, माध्य का उद्देश्य व्यक्तिगत मूल्यों के समूह का सरल और संक्षिप्त रूप में प्रतिनिधित्व करना है। जिससे मस्तिष्क समूह की इकाइयों के सामान्य आकार को असानी से समझ सके।”
(3) समग्र की रचना तथा विशेषताओं की जानकारी प्रदान करना – माध्य के द्वारा सारे समूह की सामान्य बनावट (रचना) की जानकारी मिल जाती है। सम्पूर्ण समूह की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं तथा गुणों की जानकारी भी मिलती है।
(4) तुलना में सहायता – माध्यों के द्वारा दो या दो से अधिक समूहों, प्रदेशों के कुछ खास लक्षणों का तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं। दो कक्षा के छात्रों के माध्य से उनके भार या ऊँचाई की जानकारी मिल जाती है।
(5) मार्गदर्शक के रूप में कार्य करना – सांख्यिकीय माध्यम मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। माध्य की जानकारी से समूह के विकास सम्बन्धी नीतियों के निर्धारण में सहायता मिलती है।
(6) सांख्यिकीय विश्लेषण का आधार – माध्यम विभिन्न वर्गों में गणितीय सम्बन्ध स्थापित करता है। माध्य से विभिन्न समूहों का सांख्यिकीय विश्लेषण किया जाता है।
(7) माध्य बहुत बड़े समूह या वार्ड के प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया करता है।
अन्त में कह सकते हैं कि माध्यों का विश्लेषण में महत्त्वपूर्ण स्थान है। डॉ० बाउले के शब्दों में, “माध्य का उद्देश्य जटिल समूहों तथा विशाल क्रियाओं को कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों में या संख्याओं में प्रस्तुत करना है।”