मध्यांक के मुख्य दोष या सीमाएँ निम्नलिखित हैं –
⦁ सीमान्त मूल्यों की उपेक्षा – सामान्यत: मध्यांक निर्धारण में श्रेणी के सीमान्त पदों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इस तरह मध्यांक में सभी पदों को समान महत्त्व नहीं देते हैं।
⦁ आवश्यक क्रियाएँ – श्रेणी को आरोही या अवरोही आधार पर व्यवस्थित करने का कार्य अनिवार्य रूप से करमा पड़ता है।
⦁ निर्धारण में कठिनाई – यदि मध्य पद दो मूल्यों के बीच आता है, तब मध्यांक मूल्य बिल्कुल ठीक नहीं होता है। केन्द्रीय मूल्यों के औसत को मध्यांक लिया जाता है। इसी तरह सतत श्रेणी में भी यह इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक वर्ग में आवृत्तियाँ समान हैं।
⦁ कभी-कभी मध्यांक एक प्रतिनिधि माप नहीं होता है विशेषकर पदों की संख्या कम होने पर।
⦁ मध्यांक बीजगणितीय विवेचन में अनुपयोगी रहता है। मध्यांक मूल्य को पदों की संख्या से गुणा करने पर पदों के मूल्यों का योग मालूम नहीं कर सकते हैं।