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शिक्षा की परिभाषा निर्धारित कीजिए तथा शिक्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

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शिक्षा एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसका घनिष्ठ सम्बन्ध सम्पूर्ण मानव-जीवन से है। शिक्षा के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से शिक्षा की परिभाषाएँ प्रतिपादित की हैं।

शिक्षा की परिभाषाएँ (Definitions of Education)
पाश्चात्य एवं भारतीय शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है, जिनमें कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं का विवेचन निम्नलिखित हैसुकरात के अनुसार, “शिक्षा का अर्थ संसार के उन सर्वमान्य विचारों को प्रकाश में लाना है जो व्यक्तियों के मस्तिष्क में स्वभावतः निहित होते हैं।”

⦁    प्लेटो के अनुसार, “शिक्षा एक शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास की प्रक्रिया है।”

⦁    अरस्तू के अनुसार, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास ही शिक्षा है।”

⦁    फ्रॉबेल के अनुसार, “शिक्षा छह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियाँ बाहर प्रकट होती हैं।”

⦁    काण्ट के अनुसार, “शिक्षा व्यक्ति की उस सब पूर्णता का विकास है, जिसकी उसमें क्षमता है।”

⦁    पेस्टालॉजी के अनुसार, “शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक, सामंजस्यपूर्ण तथा प्रगतिशील विकास है।”

⦁    टी० पी० नन के अनुसार, “शिक्षा बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है, जिसके द्वारा यह यथाशक्ति मानव-जीवन को मौलिक योगदान कर सके।”

⦁    जेम्स के अनुसार, “शिक्षा कार्य-सम्बन्धी अर्जित आदतों का संगठन है, जो व्यक्ति को उसके भौतिक और सामाजिक वातावरण में उचित स्थान देती है।”

⦁    टी० रेमण्ट के अनुसार, “शिक्षा विकास का वह क्रम है, जिसके द्वारा मनुष्य स्वयं को शैशवावस्था से परिपक्वावस्था तक आवश्यकतानुसार भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है।”

बटलर के अनुसार, “शिक्षा प्रजाति की आध्यात्मिक निष्पत्ति के साथ व्यक्ति का क्रमिक अनुकूलन है।”
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, “शिक्षा मानव के अन्तर में निहित दैवीय भाव की अभिव्यक्ति है।”
रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, “उच्चतम शिक्षा वह है जो हमें केवल सूचना ही नहीं देती, वरन् हमारे जीवन को प्रत्येक अस्तित्व के अनुकूल बनाती है।”
महात्मा गांधी के अनुसार, “शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक एवं मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क एवं आत्मा के सर्वोत्तम अंश का प्रकटीकरण है।”
एस० राधाकृष्णन के अनुसार, “शिक्षा को मनुष्य और समाज का निर्माण करना चाहिए।”
परिभाषाओं की समीक्षा उपर्युक्त परिभाषाओं में विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित करने का प्रयास किया है। कुछ परिभाषाएँ शिक्षा को जन्मजात शक्तियों को व्यक्त करने की प्रक्रिया बताती हैं, कुछ के अनुसार यह बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करती है। कुछ विचारकों ने शिक्षा को समूह में परिवर्तन उत्पन्न करने के अर्थ में, तो कुछ ने वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने की दृष्टि से परिभाषित किया है। प्रत्येक परिभाषा शिक्षा के एक विशेष पक्ष पर बल देती है, जिसके फलस्वरूप इन परिभाषाओं में अत्यधिक विविधता दृष्टिगोचर होती है। वस्तुतः शिक्षा के विस्तृत अर्थ, दृष्टिकोण एवं कार्यों की तुलना में ये सभी परिभाषाएँ अधूरी दिखलायी पड़ती हैं। शिक्षा की सर्वमान्य परिभाषा मानव-जीवन के समस्त पक्षों को समाहित करती है। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डॉ० अदावल ने शिक्षा की एक आदर्श परिभाषा इस प्रकार दी है, “शिक्षा वह सविचार प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के विचार तथा व्यवहार में परिवर्तन होता है उसके अपने तथा समाज के कल्याण के लिए। इसमें व्यक्ति, समाज तथा वातावरण सभी के आदर्श सम्मिलित हैं।”

शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ(Main Features of Education)

आधुनिक विद्वानों ने शिक्षा की प्रक्रिया का विश्लेषण करके शिक्षा के वैज्ञानिक अर्थ को स्पष्ट किया है। इस अर्थ के अनुसार शिक्षा, वैज्ञानिक पद्धति का अंनुसरण करके व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होती है। वैज्ञानिक अर्थ की स्पष्टता शिक्षा-प्रक्रिया की निम्नलिखित विशेषताओं से होती है

⦁    आजीवन चलने वाली प्रक्रिया-शिक्षा जीवन-पर्यन्त चलने। शिक्षा की प्रमुख विशेषता प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति नये अनुभवी आजीवन चलने वाली प्रक्रिया से अपने ज्ञान में अभिवृद्धि करता है।

⦁    अन्तर्निहित शक्तियों का विकास-शिक्षा के माध्यम से दिमखी प्रक्रिया बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास होता है।

⦁    द्विमुखी प्रक्रिया-कुछ विद्वानों के अनुसार शिक्षा एक सामाजिक विकास द्विमुखी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत दो महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व शिक्षा परिवर्तनशीलता प्रदान करने वाला (शिक्षक) और शिक्षा प्राप्त करने वाली (विद्यार्थी), त्रिपक्षीय प्रक्रिया सम्मिलित हैं। ये दोनों व्यक्तित्व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

⦁    गतिशीलता- शिक्षा कोई जड़ वस्तु नहीं, अपितु जीवन की गतिशील प्रक्रिया है। इसके द्वारा शिक्षार्थी प्रतिक्षण प्रगति करता हुआ अपने व्यक्तित्व का विकास करता है।
⦁    सामाजिक विकास- शिक्षा द्वारा मनुष्य का सामाजिक विकास होता है। वह समाज के प्राणियों के बीच रहकर नये अनुभवों द्वारा सीखता है। वस्तुतः सामाजिक प्रगति उचित शिक्षा पर ही निर्भर है।
⦁    परिवर्तनशीलता-व्यक्ति के व्यवहार में वांछित परिवर्तन शिक्षा के माध्यम से ही लाये जा सकते हैं। अतः शिक्षा में परिवर्तनशीलता का गुण निहित है।
⦁    त्रि-पक्षीय प्रक्रिया-जॉन डीवी (John Dewy) ने शिक्षा को त्रि-पक्षीय प्रक्रिया माना है। शिक्षा में शिक्षक और विद्यार्थी के अलावा एक तीसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष भी है और वह है ‘पाठ्यक्रम।

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