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शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों का विवाद क्या है? शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके पक्ष तथा विपक्ष में प्रस्तुत किए गए तर्को का उल्लेख कीजिए।

या

शिक्षा के वैयक्तिक विकास के उद्देश्य से आप क्या समझते हैं। शिक्षा के वैयक्तिक विकास के उद्देश्य से आप क्या समझते हैं ?

या

इस परिप्रेक्ष्य में व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए विकास के किन पक्षों पर बल दिया जाता है ?

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शिक्षा के वैयक्तिक तथा सामाजिक उद्देश्य का विवाद
(Dispute of the Individual and Social Aims of Education)

व्यक्ति और समाज का एक-दूसरे से अटूट सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं और इस प्रकार एक-दूसरे के पूरक भी हैं। व्यक्तियों द्वारा समाज निर्मित होता है और समाज से पृथक् होकर व्यक्ति स्वयं को एकाकी, अशक्त, अयोग्य तथा निष्क्रिय अनुभव करता है। व्यक्ति और समाज के सापेक्षिक महत्त्व के विषय में काफी पहले से ही विभिन्न वैयक्तिक तथा सामाजिक समस्याओं पर विचार-विनिमय एवं वाद-विवाद चला आ रहा है। यह तर्क-वितर्क शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं को लेकर भी रहता है कि शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति है अथवा उसका समाज। शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्यों के सम्बन्ध में कुछ प्रश्नों को लेकर भारी मतभेद हैं; जैसे—शिक्षा पर पहला अधिकार व्यक्ति का है या समाज का? शिक्षा को व्यक्ति की आवश्यकताएँ पूरी करनी चाहिए या समाज की? शिक्षा व्यक्तियों के निर्माण की प्रक्रिया है या समाज के निर्माण की? आधुनिक विचारधारा शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों का समन्वय प्रस्तुत करती है। इस विचारधारा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का विकास इस भाँति होना चाहिए कि वह समाज के हित में अधिक-से-अधिक सहयोग दे सके।

शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्यों में विरोध है अथवा समन्वय–इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए। हमें वैयक्तिक तथा सामाजिक उद्देश्यों का अलग-अलग अध्ययन करना होगा।

वैयक्तिक उद्देश्य(Individual Aim)

वैयक्तिक उद्देश्य का अर्थ- शिक्षा एक व्यक्तिगत प्रयास है। व्यक्ति को केन्द्र मानकर दी जाने वाली शिक्षा ही वास्तविक एवं वैज्ञानिक शिक्षा है। शिक्षा के माध्यम से बालक के अन्तर्निहित गुणों का विकास होता है। और बालकों का सर्वांगीण विकास समाज की प्रगति का द्योतक है। अत: शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य बालक को स्वतन्त्र रूप से अपनी प्रगति का अवसर देना है। शिक्षा के माध्यम से बालकों की रुचियों, क्षमताओं, प्रवृत्तियों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ऐसी परिस्थिति पैदा की जानी चाहिए ताकि उनकी वैयक्तिकता का पूर्ण विकास हो और वह भविष्य में सुखमय जीवन बिता सके। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सुबोध अदावल का कथन इस मत की पुष्टि करता है, “बालक का निजत्व ही उसका जीवन है और वही न रहा तो उसका समूचा जीवन केवल यन्त्र बनकर रह जाएगा।” क्योंकि सृष्टि की समस्त रचनाओं में व्यक्ति ही सर्वश्रेष्ठ एवं प्रधान है; अतः शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तिगत’ ही होना अभीष्ट है।
शिक्षा की प्राचीन विचारधारा शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य की पक्षधर रही है। भारतीय मनीषियों ने व्यक्ति के विकास एवं हित में ही सम्पूर्ण समाज का कल्याण अनुभव किया। यूनान के सोफिस्टों (Sophists) ने भी शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का ही समर्थन किया। आधुनिक समय में रूसो, फ्रॉबेल, पेस्टालॉजी तथा टी० पी० नन आदि विचारकों ने शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य पर बल दिया है। रूसो ने व्यक्तिगत गुणों को शिक्षा को आधार मानते हुए बालक को केन्द्र मानकर शिक्षा की योजना बनाई। पेस्टालॉजी ने बालक को मनोवैज्ञानिक अध्ययन का विषय बनाकर उसकी नैसर्गिक प्रवृत्तियों पर आधारित शिक्षा-व्यवस्था दी। टी० पी० नन के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य बालक के जन्मजात गुणों का अभिप्रकाशन है। उनकी दृष्टि में शिक्षा की वही योजना उत्तम है जो व्यक्ति की उन्नति में सहयोग देती है। नन लिखते हैं, “वैयक्तिकता ही जीवन का आदर्श है। एक शिक्षा की योजना का मूल्यांकन इस बात पर निर्भर करता है कि उससे किसी व्यक्ति को चरम सीमा की कुशलता प्राप्त करने में कितनी सफलता मिली है?”

यूकेन (Eucken) ने वैयक्तिकता को आध्यात्मिक अर्थ देते हुए कहा है, “वैयक्तिक का अर्थ आध्यात्मिक वैयक्तिकता होना चाहिए, जिसे मनुष्य अपने सामने उपस्थित अन्तर्जगत द्वारा अपनी आन्तरिक शक्ति में वृद्धि कर प्राप्त करता है।

वैयक्तिक उद्देश्य का अर्थ समझाते हुए रॉस ने लिखा है, “शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य का अर्थ जो हमारे स्वीकार करने योग्य है, वह केवल यह है-महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व और आध्यात्मिक वैयक्तिकता का विकास।”

वैयक्तिक उद्देश्य को अर्थ स्पष्ट करने वाले विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों के विचार उसी शिक्षा को उचित एवं लाभकारी बताते हैं जो बालक के व्यक्तिगत विकास को ध्यान में रखकर प्रदान की जाती है। आधुनिक समय में मनोवैज्ञानिक शोधों के निष्कर्ष व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर आधारित शिक्षा का सशक्त समर्थन करते हैं। अतः कहा जा सकता है कि वैयक्तिक उद्देश्य ही शिक्षा का मौलिक एवं प्रमुख उद्देश्य है।

वैयक्तिक उद्देश्य के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क
(Arguments in Favour and Against the Individual Aim)

वैयक्तिक उद्देश्य के समर्थक तथा विरोधी विचारकों ने इसके पक्ष एवं विपक्ष में अपने-अपने तर्क दिए हैं, जो निम्न प्रकार प्रस्तुत हैं–

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