विद्यालय का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of School)
शिक्षा के औपचारिक अभिकरणों में विद्यालय (School) मुख्यतम अभिकरण है। साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाली व्यवस्थित संस्था को विद्यालय या स्कूल कहते हैं। विद्यालय शब्द विद्या + आलय दो शब्दों का संयोग है। आलय का शाब्दिक अर्थ स्थान है। इस प्रकार विद्यालय से अभिप्राय उस स्थान से हैं जहाँ विद्यार्थियों को विद्या प्रदान की जाती है। अंग्रेजी के स्कूल शब्द की व्युत्पत्ति यूनानी शब्द ‘Schola’ से हुई है, जिसका अर्थ है-अवकाश (Leisure)। प्रत्यक्ष रूप से तो विद्यालय और अवकाश के बीच कोई समानता या सम्बन्ध नहीं जान पड़ता, किन्तु इतना अवश्य है कि प्राचीन यूनान में अवकाश का उपयोग आत्म-विकास के लिए किया जाता था। आत्म-विकास का अभ्यास एक विशिष्ट एवं सुनिश्चित स्थान पर होता था, जिसे ‘अवकाश’ कहकर पुकारा गया। इस भाँति, अवकाश-आत्म-विकास (अर्थात् शिक्षा) में जुड़ गया। कालान्तर में अवकाश शिक्षा का समानार्थी बन गया। इस विचार के समर्थन में ए० एफ० लीच ने लिखा है, “वाद-विवाद या वार्ता के स्थान, जहाँ एथेन्स के युवक अपने अवकाश के समय को खेलकूद, व्यवसाय और युद्ध के प्रशिक्षण में बिताते थे, धीरे-धीरे दर्शन और उच्च कलाओं के स्कूलों में बदल गए। एकेडेमी के सुन्दर उद्यानों में व्यतीत किए जाने वाले अवकाश के माध्यम से विद्यालयों का विकास हुआ।”
अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने विद्यालय की निम्नलिखित परिभाषाएँ प्रतिपादित की हैं
⦁ जॉन डीवी के अनुसार, “विद्यालय एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है जहाँ जीवन के कुछ गुणों और कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं तथा व्यवसायों की शिक्षा इस उद्देश्य से दी जाती है कि बालक का विकास वांछित दिशा में हो।”
⦁ ओटावे के अनुसार, “विद्यालय को एक ऐसा सामाजिक आविष्कार मानना चाहिए जो समाज के बालकों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा प्रदान करने में समर्थ हो।’
⦁ रॉस के अनुसार, “विद्यालय वे संस्थाएँ हैं, जिनको सभ्य मनुष्य के द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिए बालकों की तैयारी में सहायता मिले।”
⦁ टी० पी० नन के अनुसार, “विद्यालय को मुख्य रूप से इस प्रकार का स्थान नहीं समझा जाना चाहिए जहाँ किसी निश्चित ज्ञान को सीखा जाता है, वरन् ऐसा स्थान जहाँ बालकों को क्रियाओं के उन निश्चित रूपों में प्रशिक्षित किया जाता है जो इस विशाल संसार में सबसे महान् और सबसे अधिक महत्त्व वाली है।”
विद्यालय की आवश्यकता और उपयोगिता
(Need and Utility of School)
आज विद्यालय शिक्षा का एक आवश्यक, औपचारिक, शक्तिशाली एवं महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया है। आधुनिक समाज में विद्यालये की आवश्यकता तथा उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए एस० बालकृष्ण जोशी लिखते हैं, “किसी भी राष्ट्र की प्रगति का निर्माण विधानसभाओं, न्यायालयों और फैक्ट्रियों में नहीं, बल्कि विद्यालयों में होता है।”
उपर्युक्त विवेचन से निष्कर्ष निकलता है कि शिक्षा का सविधिक तथा औपचारिक साधन विद्यालय, व्यक्ति और समाज, दोनों की ही प्रगति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण, आवश्यक एवं उपयोगी है। किसी भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। टी० पी० नन का कहना है, एक राष्ट्र के विद्यालय उसके जीवन के वे अंग हैं, जिनका विशेष कार्य है उसकी आध्यात्मिक शक्ति को दृढ़ बनाना, उसकी ऐतिहासिक निरन्तरता को बनाए रखना, उसकी भूतकाल की सफलताओं को सुरक्षित रखना और उसके भविष्य की गारण्टी करना।”