वायुमण्डलीय दाब को प्रभावित करने वाले कारक
वायुमण्डलीय दाब को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं
1. तापक्रम (Temperature)-तापक्रम एवं वायुदाब घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। ताप बढ़ने के साथ-साथ वायु गर्म होकर फैलती है तथा भार में हल्की होकर ऊपर उठती है। वायु के ऊपर उठने के कारण उस स्थान का वायुदाब कम हो जाता है। तापक्रम कम होने पर इसके विपरीत स्थिति होती है; अतः स्पष्ट है कि गर्म वायु हल्की तथा विरल होती है, जबकि ठण्डी वायु भारी तथा सघन होती है। यदि तापमान हिमांक बिन्दु के समीप हो तो यह वायुमण्डल की उच्च वायुभार पेटी को प्रदर्शित करता है। उच्च अक्षांशों पर अर्थात् ध्रुवीय प्रदेशों में सदैव उच्च वायुभार रहता है, क्योंकि ताप की कमी के कारण सदैव हिम जमी रहती है। इसके अतिरिक्त हिम द्वारा सूर्यातप का 85 प्रतिशत भाग परावर्तित कर दिया जाता है।
2. आर्द्रता (Humidity)-आर्द्रता का वायुदाब पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वायु में जितनी अधिक आर्द्रता होगी, वायु उतनी ही हल्की होगी। इसीलिए यदि किसी स्थान पर आर्द्रता अधिक है। तो उस स्थान पर वायुदाब में कमी आ जाएगी। शुष्क वायु भारी होती है। वर्षा ऋतु में वायु में जलवाष्प अधिक मिले रहने के कारण वायुदाब कम रहता है। अत: मौसम परिवर्तन के साथ-साथ वायु में आर्द्रता की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है तथा वायुदाब भी बदलता रहता है। सागरों के ऊपर वाली वायु में जलवाष्प अधिक मिले होने के कारण यह स्थलीय वायु की अपेक्षा हल्की होती है।
3. ऊँचाई (Altitude)-ऊँचाई में वृद्धि के साथ-साथ वायुदाब में कमी तथा ऊँचाई कम होने के साथ-साथ वायुदाब में वृद्धि होती जाती है। वायुमण्डल की सबसे निचली परत में वायुदाब अधिक पाया जाता है। इसी कारण वायुदाब समुद्र-तल पर सबसे अधिक मिलता है। धरातल के समीप वाली वायु में जलवाष्प, धूल-कण तथा विभिन्न गैसों की उपस्थिति से वायुदाब अधिक रहती है। लगभग 900 फीट की ऊँचाई पर वायुदाब 1 इंच यो 34 मिलीबार कम हो जाता है। अधिक ऊँचाई पर वायुमण्डलीय दाब में कमी आती है, क्योंकि वायु की परतें हल्की तथा विरल होती हैं। यही कारण है कि अधिक ऊँचाई पर वायुयान एवं रॉकेट आदि आसानी से चक्कर काटते रहते हैं।
4. पृथ्वी की दैनिक गति (Rotation of the Earth)-पृथ्वी की दैनिक गति भी वायुदाब को प्रभावित करती है। इस गति के कारण आकर्षण शक्ति का जन्म होता है। यही कारण है कि विषुवत् रेखा से उठी हुई गर्म पवनें ऊपर उठती हैं तथा ठण्डी होकर पुनः मध्य अक्षांशों अर्थात् 40° से 45° अक्षांशों पर उतर जाती हैं। यही क्रम ध्रुवीय पवनों में भी देखने को मिलता है। इस प्रकार इन अक्षांशों पर वायुमण्डलीय दाब अत्यधिक बढ़ जाता है। इसके विपरीत विषुवत रेखा पर वायु का दबाव कम रहता है।
5. दैनिक परिवर्तन की गति (Rotation of Diurmal Change)-दैनिक परिवर्तन की गति द्वारा दिन एवं रात के समय वायुमण्डलीय दाब में परिवर्तन होते हैं। दिन के समय स्थलखण्डों एवं । समुद्री भागों के वायुदाब में भिन्नता पायी जाती है, जबकि रात के समय समुद्री भागों पर वायुदाब में कम परिवर्तन होता है। विषुवत्रेखीय भागों में यह परिवर्तन अधिक पाया जाता है। ध्रुवों की ओर बढ़ने पर इस परिवर्तन में कमी आती जाती है। धरातल दिन के समय ताप का अधिग्रहण करता है तथा उसी ताप को पृथ्वी रात्रि के समय उत्सर्जन करती है। इस प्रकार तापमान घटने-बढ़ने से वायुमण्डलीय दाब में भी परिवर्तन होता रहता है।
पृथ्वीतल पर वायुदाब पेटियाँ
वायुमण्डल में वायुदाब असमान रूप से वितरित है। वायुदाब का अध्ययन समदाब रेखाओं (Isobars) की सहायता से किया जाता है। वायुदाब का वितरण निम्नलिखित दो रूपों में पाया जाता है
1. उच्च वायुदाब (High Pressure) तथा
2. निम्न वायुदाब (Low Pressure)।
पृथ्वी पर उच्च एवं निम्न वायुदाब क्षेत्र एक निश्चित क्रम में वितरित मिलते हैं। यदि ग्लोब पर . स्थल-ही-स्थल हो या फिर जल-ही-जल हो तो वायुदाब पेटियाँ एक निश्चित क्रम से वितरित मिल सकती हैं। जल एवं स्थल की विभिन्नता महाद्वीपों एवं महासागरों के तापमान में विभिन्नता उपस्थित । करती है। फलस्वरूप धरातल पर विषुवत् रेखा से लेकर ध्रुव प्रदेशों तक वायुदाब का वितरण असमान एवं अनियमित पाया जाता है। पृथ्वी पर वायुदाब की सात पेटियाँ पायी जाती हैं। उत्पत्ति के आधार पर इन पेटियों को निम्नलिखित दो समूहों में रखा जा सकता है|
(i) तापजन्य वायुदाब पेटियाँ (Thermal Pressure Belts)-इन वायुदाब पेटियों पर ताप का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। इन पेटियों में विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब तथा ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों को सम्मिलित किया जाता है।
(ii) गतिक वायुदाब पेटियाँ (Dynamic Pressure Belts)-इन वायुदाब पेटियों पर पृथ्वी की परिभ्रमण गति का प्रभाव पड़ता है। इन पेटियों में उपोष्ण उच्च वायुदाब तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब को सम्मिलित किया जाता है।
वायुदाब पेटियाँ
1. विषुवतरेखीय निम्न वायुदाब पैटी (Equatorial Low Pressure Belt)-इस पेटी का विस्तार विषुवत् रेखा के दोनों ओर 5° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य है। सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायण स्थितियों के कारण ऋतुओं के अनुसार इस पेटी का स्थानान्तरण उत्तर-दक्षिण होता रहता है। स्थल की अधिकता के कारण अधिक तापमान की भाँति इस पेटी का विस्तार भी उत्तरी गोलार्द्ध की ओर अधिक है। इस पेटी में वर्ष-भर सूर्य की, किरणें सीधी चमकती हैं तथा दिन एवं रात । बराबर होते हैं। अतः सूर्यातप की अधिकता के कारण दिन के समय धरातल अत्यधिक गर्म हो जाता है, जिससे उसके सम्पर्क में आने वाली वायु भी गर्म हो जाती है। गर्म होकर वायु हल्की होती है। जिससे उसका फैलाव होता है तथा वह ऊपर उठ जाती है। इसी कारण वायु में संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ताप की अधिकता के कारण यहाँ पर निम्न वायुदाब सदैव बना रहता है। वायुमण्डल में अधिक आर्द्रता निम्न वायुदाब के कारण होती हैं।
इस प्रकार यह पेटी प्रत्यक्ष रूप में ताप से सम्बन्धित है। इस पेटी के दोनों ओर स्थित उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से विषुवत रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं तथा धरातलीय वायु में गति कम होने के कारण ये शान्त तथा अनिश्चित दिशा में | प्रवाहित होती हैं। इसी कारण इसे पेटी को ‘डोलड्रम’ अथवा ‘शान्त पवन की पेटी’ भी कहते हैं। सूर्य की उत्तरायण स्थिति में यह पेटी उत्तर की ओर खिसक जाती है तथा दक्षिणायण होने पर दक्षिण की ओर खिसक आती है।
2. उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटी (Sub-tropical High Pressure Belt)-विषुव॑त् रेखा के दोनों ओर दोनों गोलार्डों में 30° से 35° अक्षांशों के मध्य यह पेटी विकसित है। वर्ष में शीतकाल के दो माह छोड़कर इस पेटी में तापमान लगभग उच्च रहता है। ग्रीष्मकाल में इस पेटी में उच्चतम तापमान अंकित किया जाता है, परन्तु फिर भी वायुदाब उच्च रहता है, क्योकि इस वायुदाब पेटी की उत्पत्ति पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण होती है। उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी तथा विषुवत्रेखीय निम्न वायुदाब पेटी के ऊपर से आने वाली वायुराशियाँ इसी पेटी में नीचे उतरती हैं। धरातल पर नीचे उतरने के कारण तथा दबाव के फलस्वरूप इन वायुराशियों के तापमान में वृद्धि । हो जाती है। इस प्रकार इस पेटी को उच्च वायुदाब ताप से सम्बन्धित न होकर पृथ्वी की परिभ्रमण गति तथा वायु के अवतलन से सम्बन्धित है। इसीलिए इस पेटी में उच्च वायुदाब तथा स्वच्छ आकाश मिलता है।
पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ध्रुवों के समीप की वायु कर्क तथा मकर रेखाओं तक प्रवाहित होकर एकत्रित हो जाती है, जिससे इस पेटी के वायुदाब में वृद्धि हो जाती है। वायुदाब की इस पेटी को ‘अश्व अक्षांश’ (Horse Latitudes) के नाम से पुकारते हैं। इन वायुदाब पेटियों के मध्य वायु शान्त रहती है, जिससे इन अक्षांशों में वायुमण्डल भी शान्त हो जाता है। धरातल पर वायु बहुत ही मन्द-मन्द प्रवाहित होती है जो अनियमित होती है।
3. उपधृवीय निम्न वायुदाब पेटी (Sub-polar Low Pressure Belt)-उत्तरी एवं दक्षिणी गोलाद्ध में इस पेटी का विस्तार 60° से 65° अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। इस पेटी में निम्न वायुदाब ‘ मिलता है। इनका विस्तार उत्तर तथा दक्षिण में क्रमशः आर्कटिक तथा अण्टार्कटिक वृत्तों के समीप है। उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी में अनेक केन्द्र पाये जाते हैं, जिसके निम्नलिखित कारण हैं—
(i) इन पेटियों के दोनों ओर उच्च वायुदाब पेटियाँ स्थित हैं। ये पेटियाँ ध्रुवीय भागों में अधिक शीत के कारण तथा मध्य अक्षांशों में पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण विकसित हुई हैं।
(ii) इन पेटियों के सागरतटीय भागों में गैर्म जलधाराएँ प्रवाहित होती हैं जिनसे तापक्रम में अचानक वृद्धि हो जाती है तथा वायुदाब निम्न हो जाता है।
(iii) पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण उपध्रुवीय भागों में भंवरें उत्पन्न हो जाती हैं जिससे उपध्रुवीय भागों के ऊपर वायु की कमी के कारण न्यून वायुदाब उत्पन्न हो जाता है, परन्तु इस भाग में अधिक शीत पड़ने के कारण तापमान की अपेक्षा पृथ्वी की गति को प्रभाव बहुत ही कम रहता है। तापमान की कमी के कारण ध्रुवों पर उच्च वायुदाब की उत्पत्ति होती है तथा बाहर की ओर वायुदाब निम्न रहता है।
इस प्रकार इस वायुदाब पेटी का निर्माण पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण हुआ है। तापमान का बहुत ही कम प्रभाव इस निम्न वायुदाब पेटी पर पड़ता है।
4. ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी (Polar High Pressure Belt)-उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवीय वृत्तों के समीप उच्च वायुदाब पेटी का विस्तार मिलता है। सम्पूर्ण वर्ष तापमान निम्न रहने के कारण यह प्रदेश बर्फाच्छादित रहता है। इसी कारण धरातलीय वायु भारी तथा शीतल होती है। यद्यपि इस प्रदेश में पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण वायु की धाराएँ पतली हो जाती हैं, परन्तु अधिक शीत एवं भारीपन के कारण वर्ष-भर उच्च वायुदाब बना रहता है। इस उच्च वायुदाब की उत्पत्ति में ताप को अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।
ध्रुवीय प्रदेशों के वायुदाब में प्रायः समता पायी जाती है, क्योंकि वर्ष-भर ये प्रदेश हिम से ढके रहते हैं। उच्च वायुदाब वाले इन ध्रुवीय प्रदेशों से विषुवत रेखा की ओर शीत वाताग्र चलते हैं। इन वायुराशियों को। उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पूर्वी के नाम से पुकारा जाता है। इसका प्रमुख कारण पृथ्वी की आन्तरिक गतियाँ हैं, जो इन्हें मोड़ने में सहायता करती हैं। सामान्यतया इन। वायु-राशियों को ध्रुवीय पूर्वी पवनों के नाम से पुकारा जाता है। अत: इन प्रदेशों में सदैव उच्च वायुदाब बना रहता है।