पारिवारिक व्यय का अर्थ
पारिवारिक आय का उद्देश्य पारिवारिक व्यय को सम्भव बनाना होता है। व्यक्ति एवं परिवार की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जो धन व्यय करना पड़ता है, उसी को पारिवारिक व्यय कहा जाता है। इस प्रकार, ‘एक निश्चित अवधि में अर्जित आय के उस भाग या अंश को पारिवारिक व्यय कहा जाता है जो परिवार की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय किया जाता है।” पारिवारिक आवश्यकताओं को मुख्य रूप से तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है-अनिवार्य आवश्यकताएँ, आरामदायक आवश्यकताएँ तथा विलासात्मक आवश्यकताएँ। इन तीनों प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति उनकी प्राथमिकता के क्रम से ही की जाती है। पारिवारिक व्यय का नियोजन सदैव पारिवारिक आय को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए। एक दृष्टिकोण से पारिवारिक व्यय के चार प्रकार माने गए हैं–निश्चित व्यय, अर्द्ध-निश्चित व्यय, अन्य व्यय तथा आकस्मिक व्यय
पारिवारिक व्यय को प्रभावित करने वाले कारक
जिस प्रकार प्रत्येक परिवार की आय भिन्न-भिन्न होती है, ठीक उसी प्रकार से प्रत्येक परिवार द्वारा किया जाने वाला व्यय भी भिन्न-भिन्न होता है। वास्तव में पारिवारिक व्यय को विभिन्न कारक निरन्तर रूप से प्रभावित करते हैं। पारिवारिक व्यय को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नवर्णित हैं
(1) परिवार की कुल आय-पारिवारिक व्यय को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है-
परिवार की कुल आय। यदि सम्बन्धित परिवार की आय अधिक होगी तो निश्चित रूप से पारिवारिक व्यय भी अधिक होता है। इसके विपरीत, यदि परिवार की आय कम हो या घट जाए तो निश्चित रूप से परिवार द्वारा किया जाने वाला व्यय भी कम हो जाता है।
(2) परिवार के रहन-सहन का स्तर-पारिवारिक व्यय को प्रभावित करने वाला एक मुख्य कारक है-परिवार के रहन-सहन का स्तर। रहन-सहन के स्तर को उन्नत बनाने के लिए निश्चित रूप से अधिक व्यय करना पड़ता है। इसके विपरीत, यदि परिवार के रहन-सहन के स्तर को सामान्य या सामान्य से निम्न रखा जाए तो पारिवारिक व्यय काफी कम हो सकता है।
(3) परिवार का स्वरूप-पारिवारिक व्यय को प्रभावित करने वाला एक कारक परिवार का स्वरूप भी है। सामान्य रूप से माना जाता है कि संयुक्त परिवार में पारिवारिक व्यय की कुछ बचत होती है, जबकि एकाकी परिवार में व्यय की दर अधिक होती है।
(4) परिवार में बच्चों की संख्या–वर्तमान परिस्थितियों में बच्चों की शिक्षा एवं पालन-पोषण पर पर्याप्त व्यय करना पड़ता है। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि यदि परिवार में बच्चों की संख्या अधिक हो तो निश्चित रूप से पारिवारिक व्यय अधिक होती है।
(5) रहने का स्थान—रहने के स्थान का भी पारिवारिक व्यय पर अनिवार्य रूप से प्रभाव पड़ता है। सामान्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को इस मद में अधिक व्यय करना पड़ता है। नगरीय क्षेत्रों में भी साधारण बस्तियों की तुलना में उच्च श्रेणी की बस्तियों में रहने वाले परिवारों को कुछ अधिक व्यय करना पड़ता है।
(6) सामाजिक-धार्मिक परम्पराएँ-पारिवारिक व्यय को विभिन्न सामाजिक-धार्मिक परम्पराएँ भी प्रभावित करती हैं। इन परम्पराओं को अधिक महत्त्व प्रदान करने वाले परिवारों को कुछ अधिक व्यय करना पड़ता है। तरह-तरह के धार्मिक अनुष्ठान, दान-दक्षिणा तथा तीर्थयात्रा आदि को प्राथमिकता देने वाले परिवारों को अन्य परिवारों की तुलना में कुछ अधिक व्यय करना पड़ता है।
(7) पारिवारिक व्यवसाय-पारिवारिक व्यय को प्रभावित करने वाला एक उल्लेखनीय कारक पारिवारिक व्यवसाय भी है। कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं जिन्हें सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है। उदाहरण के लिए–वकालत, चिकित्सा, नक्शानवीसी तथा पुस्तकलेखन जैसे व्यवसायों को चलाने के लिए कुछ अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है।
(8) गृहिणी की कुशलता एवं दक्षता–गृहिणी की कुशलता तथा दक्षता भी पारिवारिक व्यय को प्रभावित करती है। यदि गृहिणी गृह-प्रबन्ध एवं आर्थिक नियोजन में कुशल हो तो बहुत-से पारिवारिक व्यय बच जाते हैं। इसके विपरीत यदि गृहिणी अकुशल तथा फूहड़ हो तो पारिवारिक व्यय निश्चित रूप से बढ़ जाता है।