पर्यावरण-प्रदूषण की अवधारणा
पर्यावरण प्रदूषण की नवीनतम अवधारणा वर्तमान विज्ञान, औद्योगीकरण और नगरीकरण की देन है। प्रदूषण शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Pollute’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। ‘पोल्यूट’ का अर्थ होता है। ‘दूषित’ या ‘खराब हो जाना। प्रदूषण शब्द भ्रष्ट या खराब होने का भी सूचक है। इस प्रकार प्रदूषण का शाब्दिक अर्थ हुआ दूषित हो जाना। प्राकृतिक पर्यावरण हमारे लिए अत्यन्त लाभदायक है। जब यह प्रदूषकों के कारण अपना उपयोगी स्वरूप खोकर विकृत होने लगता है, तब उसे पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाता है। दूषित तत्त्व तथा गन्दगियाँ कल्याणकारी पर्यावरण को धीरे-धीरे हानिकारक बना रही हैं। पर्यावरण जब अपना मूल लाभकारी गुण खोकर दूषित हो जाता है, तब उसे पर्यावरण-प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है। प्रदूषण उत्पन्न होने से पर्यावरण के गुणकारी तत्त्वों का सन्तुलन बिगड़ जाता है। वह लाभ के स्थान पर हानि पहुँचाने लगता है। पर्यावरण में असन्तुलन आ जाने तथा पारिस्थितिकी-तन्त्र में विकृति की स्थिति को प्रदूषण कहा जाता है।
प्रदूषण की परिभाषा
प्रदूषण की विशेष जानकारी ज्ञात करने के लिए हमें उसकी विभिन्न परिभाषाओं पर दृष्टिपाते करना होगा। विभिन्न पर्यावरणविदों ने प्रदूषण को निम्नवत् परिभाषित किया है विज्ञान सलाहकार समिति के अनुसार, “पर्यावरण प्रदूषण मनुष्यों की गतिविधियों द्वारा, ऊर्जा, स्वरूपों, विकिरण स्तरों, रासायनिक तथा भौतिक संगठन, जीवों की संख्या में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न उप-उत्पाद हैं जो हमारे परिवेश में पूर्ण अर्थवा अधिकतम प्रतिकूल परिवर्तन उत्पन्न करता है।”
ओडम के अनुसार, “प्रदूषण हमारी हवा, मृदा एवं जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछनीय परिवर्तन है जो मानव जीवन तथा अन्य जीवों, हमारी औद्योगिक प्रक्रिया, जीवनदशाओं तथा सांस्कृतिक विरासतों को हानिकारक रूप में प्रभावित करता है अथवा जो कच्चे पदार्थों के स्रोतों को नष्ट कर सकता है, करेगा।”
पर्यावरण-प्रदूषण के रूप
पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य रूप हैं-जल-प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा-प्रदूषण तथा ध्वनि-प्रदूषण।
जल-प्रदूषण
जल में जीव रासायनिक पदार्थों तथा विषैले रसायन, खनिज ताँबा, सीसा, अरगजी, बेरियम, फॉस्फेट, सायनाइड, पारद आदि की मात्रा में वृद्धि होना ही जल-प्रदूषण है। प्रदूषकों के कारण जब जीवनदायी जल अपनी उपयोगिता खो देता है और उसका गुणकारी तत्त्व घातक बन जाता है तब उसे
जल-प्रदूषण की संज्ञा दी जाती है। जल-प्रदूषण दो प्रकार का होता है
(1) दृश्य प्रदूषण तथा
(2) अदृश्य प्रदूषण।
कारण: जल-प्रदूषण निम्नलिखित कारणों से होता है
⦁ औद्योगीकरण जल-प्रदूषण के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी है। चमड़े के कारखाने, चीनी एवं ऐल्कोहल के कारखाने, कागज की मिलें तथा अन्य अनेकानेक उद्योग नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं।
⦁ नगरीकरण भी जल-प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है। नगरों की गन्दगी, मल व औद्योगिक अवशिष्टों के विषैले तत्त्व भी जल को प्रदूषित करते हैं।
⦁ समुद्रों में जहाजरानी एवं परमाणु अस्त्रों के परीक्षण से भी जल प्रदूषित होता है।
⦁ नदियों के प्रति परम्परागत भक्ति-भाव होते हुए भी तमाम गन्दगी; जैसे-अधजले शव और जानवरों के मृत शरीर तथा अस्थि-विसर्जन आदि; भी नदियों में ही किया जाता है, जो नदियों के जल के प्रदूषित होने का एक प्रमुख कारण है। |
⦁ जल में अनेक रोगों के हानिकारक कीटाणु मिल जाते हैं, जिससे प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है।
⦁ भूमि-क्षरण के कारण मिट्टी के साथ रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक पदार्थों के नदियों
में पहुँच जाने से नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है।
⦁ घरों से बहकर निकलने वाला फिनाइल, साबुन, सर्फ आदि से युक्त गन्दा पानी तथा शौचालय का दूषित मल नालियों में प्रवाहित होता हुआ नदियों और झील के जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है।
⦁ नदियों और झीलों के जल में पशुओं को नहलाना, मनुष्यों द्वारा स्नान करना व साबुन आदि से गन्दे वस्त्र धोना भी जल-प्रदूषण का मुख्य कारण है।
नियन्त्रण के उपाय:
जल की शुद्धता और उसकी उपयोगिता को बनाए रखने के लिए प्रदूषण को नियन्त्रित किया जाना आवश्र प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाए जा सकते हैं
⦁ नगरों के दूषित जल और मल को नदियों और झीलों के स्वच्छ जल में सीधे मिलने से रोका जाए।
⦁ कल-कारखानों के दूषित और विषैले जल को नदियों और झीलों के जल में न गिरने दिया जाए।
⦁ मल-मूत्र एवं गन्दगीयुक्त जल का उपयोग बायोगैस निर्माण या सिंचाई के लिए करके प्रदूषण को रोकने का प्रयास किया जाए।
⦁ सागरों के जल में आणविक परीक्षण न कराए जाएँ।
⦁ नदियों के तटों पर दिवंगतों का अन्तिम संस्कार विधि-विधान से करके उनकी राख को प्रवाहित करने के स्थान पर दबा दिया जाए।
⦁ पशुओं के मृत शरीर तथा मानव शवों को स्वच्छ जल में प्रवाहित न करने दिया जाए।
⦁ जल-प्रदूषण नियन्त्रण के ध्येय से नियम बनाये जाएँ तथा उनका कठोरता से पालन कराया जाए।
⦁ नदियों, कुओं, तालाबों और झीलों के जल को शुद्ध बनाये रखने के लिए प्रभावी उपाय काम में लाये जाएँ।
⦁ जल-प्रदूषण के कुप्रभाव तथा उनके रोकने के उपायों का जनसामान्य में प्रचार-प्रसार कराया जाए।
⦁ जल उपयोग तथा जल संसाधन संरक्षण के लिए राष्ट्रीय नीति बनायी जाए।
मानव जीवन पर प्रभाव
जल-प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों अथवा हानियों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है
⦁ प्रदूषित जल के सेवन से जीवों को अनेक प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है।
⦁ जल-प्रदूषण अनेक बीमारियों; जैसे-हैजा, पीलिया, पेट में कीड़े, यहाँ तक कि टायफाइड; का भी जनक है। राजस्थान के दक्षिणी भाग के आदिवासी गाँवों के तालाबों का दूषित पानी पीने से ‘नारू’ नाम का भयंकर रोग होता है। इन सुविधाविहीन गाँवों के 6 लाख 90 हजार लोगों में से 1 लाख 90 हजार लोगों को यह रोग है।
⦁ प्रदूषित जल का प्रभाव जल में रहने वाले जन्तुओं और जलीय पौधों पर भी पड़ रहा है।जल-प्रदूषण के कारण ही मछली और जलीय पौधों में 30 से 50 प्रतिशत तक की कमी हो गई है। जो खाद्य पदार्थ के रूप में मछली आदि का उपयोग करते हैं उनके स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचती है।
⦁ प्रदूषित जल का प्रभाव कृषि उपजों पर भी पड़ता है। कृषि से उत्पन्न खाद्य पदार्थों को मानव व पशुओं द्वारा उपयोग में लाया जाता है, जिससे मानव व पशुओं के स्वास्थ्य को हानि होती है।
⦁ जल जन्तुओं के विनाश से पर्यावरण असन्तुलित होकर विभिन्न प्रकार के कुप्रभाव उत्पन्न करता है।
वायु-प्रदूषण :
वायु में विजातीय तत्त्वों की उपस्थिति चाहे गैसीय हो या पार्थक्य या दोनों का मिश्रण, जोकि मानव के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए हानिकारक हो, वायु-प्रदूषण कहलाता है। वायु-प्रदूषण मुख्य रूप से धूल-कण, धुआँ, कार्बन-कण, सल्फर डाइऑक्साइड, कुहासा, सीसा, कैडमियम आदि घातक पदार्थों के वायु में विलय से होता है। ये सब उद्योगों एवं परिवहन के साधनों के माध्यम से वायुमण्डल में मिलते हैं। वायु के कल्याणकारी रूप का विनाशकारी रूप में परिवर्तन ही वायु-प्रदूषण है। वर्तमान समय में मानव को प्राणवायु के रूप में वायु प्रदूषण के कारण शुद्ध ऑक्सीजन भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है।
कारण: वायु-प्रदूषण निम्नलिखित कारणों से होता है
⦁ नगरीकरण, औद्योगीकरण एवं अनियन्त्रित भवन-निर्माण से वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है।।
⦁ परिवहन के साधनों (ऑटोमोबाइलों) से निकलता धुआँ वायु-प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है।
⦁ नगरीकरण के निमित्त नगरों की बढ़ती गन्दगी भी वायु को प्रदूषित कर रही है।
⦁ वनों की अनियमित एवं अनियन्त्रित कटाई से भी वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है।
⦁ रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशक ओषधियों के कृषि में अधिकाधिक उपयोग से भी वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है।
⦁ रसोईघरों तथा कारखानों की चिमनियों से निकलते धुएँ के कारण वायु-प्रदूषण बढ़ रहा है।
⦁ विभिन्न प्रदूषकों के अनियन्त्रित निस्तारण से वायु-प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है।
⦁ दूषित जल-मल के एकत्र होकर दुर्गन्ध फैलाने से वायु प्रदूषित हो रही है।
⦁ युद्ध, आणविक विस्फोट तथा दहन की क्रियाएँ भी वायु को प्रदूषित करती हैं।
⦁ कीटनाशक दवाओं के छिड़काव के कारण वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है।
नियन्त्रण के उपाय:
वायु मानव जीवन का मुख्य आधार है। वायु-प्रदूषण मानव जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है। वायु-प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी उपाय ढूँढ़ना आवश्यक है। वायु-प्रदूषण रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाए जा सकते हैं
⦁ कल-कारखानों को नगरों से दूर स्थापित करना तथा उनसे निकलने वाले धुएँ, गैस तथा राख पर नियन्त्रण करना। इसके लिए ऊँची चिमनियाँ लगाई जानी चाहिए तथा चिमनियों में उत्तम प्रकार के छन्ने लगाए जाएँ।
⦁ परिवहन के साधनों पर धुआँरहित यन्त्र लगाए जाएँ।
⦁ नगरों में हरित पट्टी के रूप में युद्ध स्तर पर वृक्षारोपण किया जाए।
⦁ नगरों में स्वच्छता, जल-मले निकास तथा अवशिष्ट पदार्थों के विसर्जन की उचित व्यवस्था की जाए।
⦁ वन रोपण तथा वृक्ष संरक्षण पर बल दिया जाए।
⦁ रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाए।
⦁ घरों में बायोगैस, पेट्रोलियम गैस या धुआँरहित चूल्हों का प्रयोग किया जाए।
⦁ खुले में मैला, कूड़ा-करकट तथा अवशिष्ट पदार्थ सड़ने के लिए न फेंके जाएँ।
⦁ गन्दा जल एकत्र न होने दिया जाए।
⦁ वायु-प्रदूषण रोकने के लिए कठोर नियम बनाए जाएँ और दृढ़ता से उनका पालन कराया जाए।
मानव जीवन पर प्रभाव
वायु-प्रदूषण के मानव जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं
⦁ वायु प्रदूषण से जानलेवा बीमारियाँ; जैसे छाती और साँस की बीमारियाँ यथा ब्रॉन्काइटिस, तपेदिक, फेफड़ों का कैन्सर आदि; उत्पन्न होती हैं।
⦁ वायु प्रदूषण मानव शरीर, मानव की खुशियों और मानव की सभ्यता के लिए खतरा बना हुआ है। परिवहन के विभिन्न साधनों द्वारा उत्सर्जित धुआँ नागरिकों पर विभिन्न प्रकार के कुप्रभाव डालता है।
⦁ वायु-प्रदूषण चारों ओर फैले खेतों, हरे-भरे पेड़ों व रमणीक दृश्यों को भी धुंधला कर देता है व उन पर झीनी चादर डाल देता है, बल्कि खेतों, तालाबों व जलाशयों को भी अपने कृमिकणों से विषाक्त करता रहता है, जिसका सीधा प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
⦁ चिकित्साशास्त्रियों ने पाया है कि जहाँ वायु-प्रदूषण अधिक है वहाँ बच्चों की हड्डियों का विकास कम होता है, हड्डियों की उम्र घट जाती है तथा बच्चों में खाँसी और साँस फूलना तो प्रायः देखा जाता है।
⦁ वायु-प्रदूषण का प्रभाव वृक्षों पर भी देखा जा सकता है। चण्डीगढ़ के पेड़ों और लखनऊ के दशहरी आमों पर वायु प्रदूषण के बढ़ते हुए खतरे को सहज ही देखा जा सकता है, जहाँ मानव को फल कम मात्रा में मिल रहे हैं और उनकी विषाक्तता का सीधा प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
⦁ दिल्ली के वायुमण्डल में व्याप्त प्रदूषण का प्रभाव आम नागरिकों के स्वास्थ्य पर तो पड़ा ही, दिल्ली की परिवहन पुलिस पर भी पड़ा है और यही दशा कोलकाता और मुम्बई की भी है, अर्थात् इससे मानव का जीवन (आयु) घट रहा है। दिल्ली नगर में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को देखते हुए ही सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषिद्ध कर दिया गया है।
⦁ वायु-प्रदूषण के कारण ओजोन की परत में छिद्र होने की सम्भावना व्यक्त होने से सम्पूर्ण विश्व भयाक्रान्त हो उठा है।
⦁ शुद्ध वायु न मिलने से शारीरिक विकास रुकने के साथ-साथ शारीरिक क्षमता घटती जा रही है।
⦁ वायु-प्रदूषण मानव अस्तित्व के सम्मुख एक गम्भीर समस्या बनकर खड़ा हो गया है, जिसे रोकने में भारी व्यय करना पड़ रहा है।