टिटनेस या धनु रोग अथवा हनुस्तम्भ रोग
कारण: यह रोग क्लॉस्ट्रीडियम टिटेनाइ नामक जीवाणु द्वारा होता है। ये जीवाणु घोड़ों की लीद, गोबर, मिट्टी व जंग खाए लोहे पर पनपते हैं। शरीर में कहीं भी चोट लगने, त्वचा के छिलने अथवा फटने पर तथा उपर्युक्त वस्तुओं के सम्पर्क में आने पर जीवाणु शरीर के अन्दर प्रवेश कर जाते
सम्प्राप्ति काल: 2 से 14 दिन तक।
लक्षण: इस रोग के निम्नलिखित लक्षण हैं
⦁ रीढ़ की हड्डी धनुष के आकार की हो जाती है। इसी कारण से इसका नाम धनु रोग अथवा हनुस्तम्भ रोग रखा गया है।
⦁ मांसपेशियों के फैलने व सिकुड़ने की क्षमता शून्य हो जाती है तथा ये अकड़ जाती हैं।
⦁ गर्दन की मांसपेशियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं तथा जबड़ा जकड़ जाता है। इस अवस्था को बन्द जबड़ा (लॉक्ड-जॉ) कहते हैं।
⦁ अन्तिम अवस्था में रोगी के फेफड़े व हृदय काम करना बन्द कर देते हैं तथा रोगी की मृत्यु हो जाती है।
⦁ यह रोग इतना भयानक है कि थोड़ी-सी भी असावधानी होने पर प्रसव के समय माँ व शिशु दोनों को अपना शिकार बना लेता है।
उपचार एवं बचाव: इस रोग के उपचार निम्नलिखित हैं
⦁ रोग के प्रथम लक्षण प्रकट होते ही रोगी को तुरन्त पास के अस्पताल में ले जाना चाहिए।
⦁ प्रसव के समय माँ को तथा इसके बाद 3 से 5 माह के बच्चे को टिटनेस का टीका लगवा देना चाहिए।
⦁ त्वचा फटने, छिलने व घाव होने पर 24 घण्टों के अन्दर टैटवैक का इन्जेक्शन लगवा लेना चाहिए। इस इन्जेक्शन का प्रभाव लगभग 6 माह तक रहता है।
⦁ किसी भी स्थिति में घाव खुला नहीं रहना चाहिए।
⦁ घाव अथवा त्वचा के फटने के स्थान को मिट्टी, लोहे व गोबर आदि के सम्पर्क से सुरक्षित । रखना चाहिए।
⦁ घाव अथवा त्वच के फटने अथवा छिलने के स्थान एवं इसके आस-पास के भाग को सैवलॉन अथवा डेटॉल से अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। जीवाणुमुक्त रुई से घाव को ढककर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
⦁ किसी भी रोग में इन्जेक्शन लगवाते समय इस बात को निश्चित कर लें कि इन्जेक्शन लगाने वाले चिकित्सक अथवा उसके परिचारक ने इन्जेक्शन-निडिल को भली प्रकार जीवाणुरहित (स्टेरीलाइज) कर लिया है।