मलेरिया (Malaria) एक व्यापक रूप से फैलने वाला संक्रामक रोग है। चिकित्सा सम्बन्धी ज्ञान के भरपूर विकास के उपरान्त भी प्रतिवर्ष हमारे देश में लाखों व्यक्ति इस रोग के शिकार होते हैं। जिनमें से अनेक की इस रोग के कारण मृत्यु तक हो जाती है। मलेरिया फैलाने का कार्य मच्छर करते हैं। ऐनोफेलीज जाति के मादा मच्छर मलेरिया के वाहक होते हैं। इस रोग की उत्पत्ति एक परजीवी या पराश्रयी कीटाणु प्लाज्मोडियम (Plasmodium) से होती है। मलेरिया की उद्भवन अवधि 9 से 12 दिन है। व्यक्ति के रक्त में कीटाणु सक्रिय होकर रोग के लक्षण उत्पन्न करते हैं।
लक्षण:
(1) रोग का संक्रमण होने के साथ-ही-साथ व्यक्ति को कंपकपी के साथ जाड़ा लगता है जिससे शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। इस स्थिति में व्यक्ति को 103° से 105° फारेनहाईट तक ज्वर हो सकता है।
(2) संक्रमण के साथ-ही-साथ सिर तथा शरीर के अन्य भागों में तेज दर्द होने लगता है।
(3) कभी-कभी तीव्र संक्रमण की दशा में जी मिचलाने लगता है तथा पित्त के बढ़ जाने से उबकाई या उल्टियाँ भी होने लगती हैं।
(4) जब मलेरिया का ज्वर उतरता है उस समय रोगी को पसीना भी आता है।
(5) छोटे बच्चों में मलेरिया के कारण प्लीहा या तिल्ली भी बढ़ जाती है।
बचाव के उपाय:
मलेरिया से बचाव का प्रमुख उपाय शरीर को मच्छरों से बचाना है। मच्छरों से बचाव के लिए दो प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं। प्रथम प्रकार के उपायों के अन्तर्गत मच्छरों को समाप्त करने या भगाने के उपाय किए जाते हैं तथा दूसरे प्रकार के उपायों के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं को मच्छरों से सुरक्षित करने के प्रयास करता है।
उपचार:
मलेरिया का सन्देह होने पर रक्त की जाँच करवानी चाहिए। मलेरिया का संक्रमण निश्चित हो जाने पर चिकित्सक से उपचार करवाना चाहिए। मलेरिया के उपचार की अनेक औषधियाँ उपलब्ध हैं। रोगी को पूरी तरह से आराम करना चाहिए। रोग पर शीघ्र नियन्त्रण पाया जा सकता है। रोगी को हल्का तथा सुपाच्य आहार दिया जाना चाहिए।