यह रोग साधारणतः 5 वर्ष से कम आयु के शिशुओं को होता है। प्रायः खसरा होने के बाद असावधानी से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में बच्चे को रुक-रुककर खाँसी के दौरे पड़ते हैं। जो दिन में पाँच से लेकर बीस बार तक पड़ते हैं। प्रायः खाँसते-खाँसते उल्टी भी हो जाती है। इस रोग का उद्भवन काल 7 से 14 दिन तक होता है।
रोग फैलने के कारण:
काली खाँसी नामक रोग वायु एवं निकट सम्पर्क द्वारा फैलने वाला एक जीवाणु जनित रोग है। इस रोग की उत्पत्ति का कारण होमोकिट्स परटुसिस बेसिनस नामक रोगाणु होता है। रोगी की साँस में इस रोग के जीवाणु रहते हैं जो उसके सम्पर्क में आने से अथवा वायु द्वारा स्वस्थ शिशु को लग जाते हैं तथा उसे भी रोगी बना देते हैं। रोगी बच्चे के खिलौनों तथा वस्त्रों से भी यह छूत फैल जाती है। कुत्तों को यह रोग प्रायः होता रहता है; इसलिए इसे कुकुर खाँसी भी कहते हैं।
उपचार: (1) स्वस्थ बच्चों को रोगी बच्चे के सम्पर्क से बचाकर रखना चाहिए,
(2) रोगी के थूक आदि को जला देना चाहिए तथा नि:संक्रामकों से उसके वस्त्रों, खिलौनों व स्थान को साफ कर देना चाहिए,
(3) रोगी को हवादार कक्ष में रखना चाहिए,
(4) किसी अच्छे चिकित्सक के निर्देशानुसार औषधि लेनी चाहिए।