खसरा
खसरा भी मुख्य रूप से बच्चों में फैलने वाला रोग है। यह रोग सामान्यतया छोटी आयु के बच्चों को होता है तथा कभी-कभी गम्भीर रूप धारण कर लेता है। खसरा को फैलाने का कार्य पैरामाइक्सोविरिडेयी वर्ग के मॉरबिलि वायरस ही करते हैं। ये जीवाणु व्यक्ति की नाक तथा गले पर आक्रमण करते हैं। रोगी बच्चे की छींक, खाँसी तथा साँस से यह रोग एक-दूसरे को लगता है।
लक्षण: खसरा के जीवाणुओं के प्रभाव से सर्वप्रथम व्यक्ति को जोड़ा लगता है तथा बुखार हो जाता है। इससे काफी बेचैनी होती है। रोगी की आँखें लाल हो जाती हैं तथा आँखों से पानी भी बहने लगता है। खाँसी एवं छींकें भी आने लगती हैं। इसके साथ-ही-साथ खसरा के दाने भी निकलने लगते हैं। पहले ये दाने कानों के पीछे निकलते हैं तथा धीरे-धीरे पूरे शरीर पर निकल आते हैं। पूरे शरीर पर दाने निकलने के साथ-ही-साथ बुखार हो जाता है। 4-5 दिन में ये दाने भी मुरझाने लगते हैं तथा बुखार भी उतर जाता है। लगभग 8-10 दिन में रोगी के सारे दाने समाप्त हो जाते हैं तथा वह स्वस्थ हो जाता है।
उपचार: यदि खसरा बिगड़े नहीं तो किसी खास उपचार की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु खसरा के रोगी की उचित देखभाल अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि कभी-कभी इस बात का डर रहता है कि कहीं निमोनिया न हो जाए। रोगी को अधिक गर्मी एवं अधिक ठण्ड से बचाना चाहिए।
बचाव के उपाय: खसरा से बचाव के लिए गन्दगी एवं अशुद्ध वातावरण से बचना चाहिए। सन्तुलित एवं पौष्टिक भोजन से बच्चों में रोग से बचने की क्षमता विकसित होती है। अब खसरा से बचने का टीका भी विकसित कर लिया गया है जो छोटे शिशुओं को लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त वे सभी उपाय करने चाहिए जो अन्य संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए किए जाते हैं।