छोटी माता
छोटी माता भी चेचक के समान एक संक्रामक रोग है, परन्तु यह घातक नहीं है। यह शीत ऋतु का रोग है।
लक्षण: (1) रोग का आरम्भ 99° फारेनहाइट तापमान से होता है। कभी-कभी ज्वर नहीं होता है, चेहरा तथा आँखें लाल हो जाती हैं।
(2) सिर, पीठ में दर्द, बेचैनी व कॅपकपी लगती है। शरीर पर छोटे-छोटे सरसों के बराबर दाने निकलने लगते हैं।
(3) 4-5 दिन में दाने सूखने लगते हैं तथा उन पर पपड़ी बन जाती है।
(4) 6-7 दिन बाद पपड़ी सूखकर गिरने लगती है।
संक्रमण: इस रोग के विषाणु नाक और गले के स्राव में होते हैं। इसके अतिरिक्त फफोले के तरल पदार्थ में भी रहते हैं और यहीं से वायु अथवा सम्पर्क द्वारा स्वस्थ व्यक्तियों तक पहुँचते हैं। अतः दानों की पपड़ी को एकत्र करके जला देना चाहिए।
बचाव एवं उपचार:
⦁ त्वचा को स्वच्छ रखना चाहिए। इससे रोग का और अधिक विस्तार नहीं हो पाता।।
⦁ रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।
⦁ खुजलाहट दूर करने के लिए मरहम का प्रयोग करना चाहिए।
⦁ पपड़ियाँ सूखकर गिर जाने पर रोगी को किसी हल्के नि:संक्रामक विलयन से स्नान करो देना चाहिए।
⦁ रोगी के कमरे को रोगाणुनाशक पदार्थ से धो डालना चाहिए।
⦁ इस रोग में रोगी को ठण्डी और खट्टी चीजें खाने को नहीं देनी चाहिए। नमक, मिर्च, तेल आदि का परहेज रखना चाहिए।