Use app×
Join Bloom Tuition
One on One Online Tuition
JEE MAIN 2025 Foundation Course
NEET 2025 Foundation Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
637 views
in Hindi by (43.6k points)
closed by

निम्नलिखित अवतरणों के आधार पर उनके साथ दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

सुन्दर प्रतिमा, मनभावनी चाल और स्वच्छन्द प्रकृति ये ही दो-चार बातें देखकर मित्रता की जाती है; पर जीवन-संग्राम में साथ देने वाले मित्रों में इनमें से कुछ अधिक बातें चाहिए। मित्र केवल उसे नहीं कहते, जिसके गुणों की तो हम प्रशंसा करें, पर जिससे हम स्नेह न कर सकें। जिससे अपने छोटे-छोटे काम तो हम निकालते जाएँ, पर भीतर-ही-भीतर घृणा करते रहें? मित्र सच्चे पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिए, जिस पर हमें पूरा विश्वास कर सकें, भाई के समान होना चाहिए, जिसे हम अपना प्रीति-पात्र बना सकें। हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए-ऐसी सहानुभूति, जिससे एक के हानि-लाभ को दूसरा अपना हानि-लाभ समझे।

(अ) प्रस्तुत अवतरण के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स) 1. प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक क्या कहना चाहता है ?

2. मित्र कैसा होना चाहिए ?

या

लेखक ने अच्छे मित्र की क्या विशेषताएँ बतायी हैं ?

3. किसे मित्र नहीं कहा जा सकता ?

4. मित्रों के बीच परस्पर क्या होना चाहिए ?

5. सामान्यतया क्या देखकर मित्रता की जाती है ?
[पथ-प्रदर्शक = मार्ग दिखाने वाला। प्रीति-पात्र = जो प्रेम के योग्य हो। सहानुभूति = दूसरों के सुख-दुःख में समान अनुभूति।]

1 Answer

+1 vote
by (43.1k points)
selected by
 
Best answer

(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण’ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित एवं हमारी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी’ के गद्य-खण्ड में संकलित ‘मित्रता’ नामक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा निम्नवत् लिखें-
पाठ का नाम – मित्रता। लेखक का नाम – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल।

(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या – शुक्ल जी कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं माना,जा सकता, जो हमारे गुणों की तो प्रशंसा करता हो लेकिन मन में हमसे प्रेम न रखता हो। ऐसे व्यक्ति को भी मित्र नहीं माना जा सकता, जो समय-समय पर अपने  छोटे-बड़े काम निकालकर स्वार्थ तो सिद्ध कर लेता है लेकिन अन्दर-ही-अन्दर अपने हृदय में हमसे घृणा करता हो। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मित्रता के आधार प्रेम-स्नेह होना चाहिए।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या – शुक्ल जी का कहना है कि मित्र के प्रति हृदय में प्रेम होना चाहिए। सच्चा मित्र विश्वास करने योग्य, सही मार्ग बताने वाला और भाई के समान निष्कपट प्रेम करने वाला होता है। हमारी और हमारे मित्र की आपस में सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए जिससे वह हमारे हानिलाभ को अपना हानि-लाभ समझे और हम उसके हानि-लाभ को अपना। तात्पर्य यह है कि सच्ची मित्रता में सच्चा स्नेह होना चाहिए। जिनके हृदय में परस्पर घृणा भरी हो, वे मित्र नहीं हो सकते।

(स) 1. शुक्ल जी का कहना है कि सामान्यतया व्यक्ति के बाह्य व्यक्तित्व को देखकर उससे मित्रता करं ली जाती है, जबकि मित्रता का आधार व्यक्ति का अन्तर्व्यक्तित्व होना चाहिए, जिसकी लोग प्रायः अनदेखी करते हैं।

2. मित्र उचित मार्ग को दिखाने वाला, पूर्णरूपेण विश्वसनीय, स्नेह के योग्य तथा भाई के समान होना चाहिए।

3. ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता, जो प्रत्यक्ष में हमारे गुणों का तो प्रशंसक हो लेकिन हमसे आन्तरिक स्नेह न रखता हो।

4. मित्रों के बीच परस्पर सहानुभूति होनी चाहिए और सहानुभूति भी ऐसी होनी चाहिए, जिससे प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे के हानि-लाभ को अपना हानि-लाभ समझे।

5. साधारणतया किसी को सुन्दर चेहरा, रंग-रूप, मन को लुभाने वाली चाल, स्वभाव में खुलापन आदि देखकर हम किसी से मित्रता कर लेते हैं लेकिन ऐसे मित्र जीवन में प्राय: काम नहीं आते।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...