(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण’ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित एवं हमारी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी’ के गद्य-खण्ड में संकलित ‘मित्रता’ नामक निबन्ध से अवतरित है।
अथवा निम्नवत् लिखें-
पाठ का नाम – मित्रता। लेखक का नाम – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल।
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या – शुक्ल जी कहते हैं कि सच्चा मित्र वही है, जो आवश्यकता पड़ने पर अपनी शक्ति और सामर्थ्य से भी कहीं अधिक मित्र की सहायता करे। मित्र का कर्तव्य है कि वह मित्र के विपद्ग्रस्त होने पर उसकी इस प्रकार सहायता करे कि उसका साहस और उत्साह बना। रहे। वह अपने को नितान्त अकेला समझकर निराश न हो, वरन् उसका मनोबल बना रहे। इस प्रकार से सहायता करने पर वह अपनी शक्ति से भी कई गुना बड़े कार्य सरलता से कर लेगा।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या – शुक्ल जी कहते हैं कि मित्र के महान् कार्यों में सहायता देने, उत्साहित करने जैसे कर्तव्यों का निर्वाह वही व्यक्ति कर सकता है, जो स्वयं दृढ़ विचारों और सत्य संकल्पों वाला होता है। अत: मित्र बनाते समय हमें ऐसे व्यक्ति को खोजना चाहिए, जिसमें हमसे बहुत अधिक साहस एवं आत्मबल विद्यमान हो।
तृतीय रेखांकित अंश की व्याख्या – शुक्ल जी का कहना है कि हमें अपने मित्र ऐसे बनाने चाहिए जो समाज में आदरणीय और मान्य हों, हृदय से निर्विकार हों, मृदुभाषी एवं सत्यनिष्ठ हों तथा सभ्य एवं परिश्रमी हों। इन गुणों से युक्त मित्र पर ही स्वयं को छोड़ा जा सकता है, अर्थात् उन पर पूर्ण विश्वास किया जा सकता है। इस प्रकार के मित्रों को ही वास्तविक मित्र माना जा सकता है जिनसे कभी भी किसी भी प्रकार के धोखे या कपट की आशंका नहीं रहेगी।
(स) 1. मित्र के कर्तव्य हैं- उचित और श्रेष्ठकार्य में मित्र की सहायता करना, उसके उत्साह और साहस को इस प्रकार बढ़ाना कि वह अपनी सामर्थ्य से अधिक का काम कर सके।
2. हमारे मित्र इस प्रकार के होने चाहिए जो समाज में आदरणीय हों, शुद्ध हृदय के हों, मृदुभाषी हों, परिश्रमी हों, सभ्य हों और सत्यवादी हों। ऐसे ही मित्रों को वास्तविक मित्र माना जा सकता है।
3. मन बढ़ाना (उत्साहित करना)-जाम्बवन्त ने हनुमान का मन इस प्रकार बढ़ाया कि वे समुद्र लाँघकर लंका जाने के लिए तैयार हो गये।
पल्ला पकड़ना (सहारा लेना)-सुग्रीव ने बालि से मुक्ति पाने के लिए ही राम का पल्ला पकड़ा था।